Thursday 16 February 2017

हस्त रेखा और ज्योतिष

HVSRCSHARMAOCCULTSCIENCESUNIVERSALHINTS H2(HASTA REKHA VIGNAN)  harivsrcsharma 2 years ago 1)हस्त रेखाएं और ज्योतिष. हस्त रेखाएं और ज्योतिष हरबू लाल अग्रवाल ज्योतिषीय गणनाएं जटिल हैं और हस्तरेखाएं विधाता द्वारा बनायी गयी प्रत्येक व्यक्ति की जीवन की सरल रूप रेखा है तथापि जो ज्योतिष में है वही हाथ की रेखाओं में भी अंकित है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। क्योंकि समय के साथ आने वाले परिवर्तन हस्तरेखाओं में अंकित होते रहते हैं जिन्हें थोड़े ही अध्ययन से जाना जा सकता है। आइए, जानें कैसा है यह संबंध। हस्त रेखा शास्त्र द्रारत में आदि काल से प्रचलित है। नारद जी इसके बहुत बडे़ विशेषज्ञ थे। रामायण में वर्णन आता है कि राजा शीलनिधि ने अपनी पु़त्री विश्वमोहिनी का हाथ नारद जी को दिखाया। आनि दिखाई नारदहिं द्रूपति राज कुमारि, कहहु नाथ गुन दोष सब एह के हृदय विचारि। जो एहि बरइ अमर सोइ होइ, समर द्रूमि तेहि जीत न कोई। यानी, इसका पति अमर और अजेय होगा। इसी प्रकार हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती का हाथ नारद जी को दिखाया, तो उत्तर मिला कि इसके पति वैरागी, द्रिक्षा मांगने वाले, अनिकेतन, सर्पो की माला धारण करने वाले होंगे। ये सब गुण द्रगवान शंकर में हैं। ज्योतिष के नव ग्रह और रेखा शास्त्र के पर्वत, ज्योतिष के घर या द्राव और हस्त की रेखाएं आपस में संबंधित हैं। हथेली में तर्जनी के नीचे बृहस्पति का पर्वत है, मध्यमा के नीचे शनि का पर्वत, अनामिका के नीचे सर्यू का पर्वत, कनिष्ठिका के नीचे बुध का पर्वत तथा अंगूठे से मिला हुआ, हथेली के ऊपरी द्राग में शुक्र का पर्वत है। मंगल के दो पर्वत हैं- ऊपर का तथा नीचे वाला। मंगल (ऊपर वाला) का पर्वत अंगठूे के नीच,े बृहस्पति पर्वत से लगा हअु ा तथा मगं ल (नीचे वाला ) पर्वत बुध पर्वत से लगा हुआ, मंगल (ऊपर वाला) के ठीक सामने हथेली के निचले द्राग में है। ऐसा माना जाता है कि ऊपर वाले में मेष राशि और नीचे वाले में वृश्चिक राशि के स्थान हैं। चंद्रमा का पर्वत हथेली के बायीं तरफ, शुक्र पर्वत की दूसरी ओर, मणिबंध से लगा हुआ है। मंगल (नीचे वाले) के ऊपर की ओर, हृदय रेखा से मिला हुआ, हथेली के बीच में राहु (डै्रगन हेड) है। शुक्र पर्वत के नीचे, हथेली के बीच में, द्राग्य रेखा के उद्गम के पास, केतु (डै्रगन टेल ) होता है। का पर्वत है, मध्यमा के नीचे शनि का पर्वत, अनामिका के नीचे सर्यू का पर्वत, कनिष्ठिका के नीचे बुध का पर्वत तथा अंगूठे से मिला हुआ, हथेली के ऊपरी द्राग में शुक्र का पर्वत है। मंगल के दो पर्वत हैं- ऊपर का तथा नीचे वाला। मंगल (ऊपर वाला) का पर्वत अंगठूे के नीच,े बृहस्पति पर्वत से लगा हअु ा तथा मगं ल (नीचे वाला ) पर्वत बुध पर्वत से लगा हुआ, मंगल (ऊपर वाला) के ठीक सामने हथेली के निचले द्राग में है। ऐसा माना जाता है कि ऊपर वाले में मेष राशि और नीचे वाले में वृश्चिक राशि के स्थान हैं। चंद्रमा का पर्वत हथेली के बायीं तरफ, शुक्र पर्वत की दूसरी ओर, मणिबंध से लगा हुआ है। मंगल (नीचे वाले) के ऊपर की ओर, हृदय रेखा से मिला हुआ, हथेली के बीच में राहु (डै्रगन हेड) है। शुक्र पर्वत के नीचे, हथेली के बीच में, द्राग्य रेखा के उद्गम के पास, केतु (डै्रगन टेल ) होता है। जीवन रेखा बृहस्पति पर्वत के पास से निकल कर शुक्र पर्वत के नीचे से होती हुई, मणिबंध तक जाती है। इसी रखाो के ऊपरी द्राग में मगंल पर्वत (ऊपर वाले) के निचले द्राग में, लंबाई में कम, समानातं र मगंल रखाो हातेी है इन दानोें रेखाओं से अष्टम द्राव, यानी उम्र का पता लगता हैं। यह रेखा सूर्य पर्वत पर होती है तथा ज्यादातर हृदय रेखा तक जाती है। इससे परीक्षाओं में सफलता का बोध होता है; यानी पंचम स्थान का ज्ञान होता है। यह रेखा जीवन रेखा से निकल कर उसके निचले भाग से, मस्तिष्क तथा हृदय रखाोओं को काटती हुई, शनि पर्वत पर, मध्यमा तक जाती है। यही ज्योतिष में नवम द्राव है। यह रेखा बुध पर्वत पर हाते ी है तथा हृदय रेखा तक जाती हैं। इससे कुंडली में प्रथम द्राव को जानना चाहिए। यह रेखा बुध पर्वत पर आरै स्वास्थ्य रखे ाा से आड़ी, हथेली के निचले द्राग में है इससे कुंडली के सप्तम द्राव का पता लगता है। यह शत्रुओं तथा बीमारियों से होने वाली तकलीफों का द्योतक है। यही कुंडली का छठा स्थान है। जीवन रेखा, हृदय रेखा तथा मस्तिष्क रेखाओं के बीच में जो त्रिकोण बनते हैं, उनसे मकानों का पता लगता है। यही कुंडली में चौथा स्थान है। यह जीवन रेखा के अंत में, ऊपरी तरफ, मणिबंध के करीब से निकल कर, मछली की तरह होती है। इससे धन का पता लगता है। यह दूसरा स्थान है। शुक्र पर्वत पर जीवन रेखा के ऊपरी द्रागमे ं जितनी आड़ी रेखाएं हैं, उनसे भाई-बहनो ं का पता लगता है यह कुंडली का तीसरा स्थान है। चंद्र पर्वत के नीचे, हथेली के बायें द्राग में आड़ी रेखाएं ह,ैं जिनसे संतान का पता लगता है। यह कुंडली का पंचम स्थान है। यह रेखा चदं्र पर्वत के ऊपरी द्राग में मस्तिष्क तथा जीवन रेखाओं के मध्य में होती है। इससे आय का पता लगता है। यही ग्यारहवां स्थान है। उंगलियों को साधारण हालत में रखते हुए, उनके मध्य में जो रिक्त स्थान रहते हैं, वही धन का खर्चा बताते हैं। जिन व्यक्तियों की उगं लियों के बीच मे कोई रिक्त स्थान नही होता, वे कंजूस होते हैं तथा धन एकत्रित करते हैं यही कंडु ली का बारहवां स्थान है। जातक इंजीनियर कब बनेगा, इसका पता लगाने के लिए उंगलियों की बनावट, पवर्तों की बनावट, हथेली की बनावट, द्राग्य रेखा से निकल कर पर्वतों की आरे जाने वाली रखाोआ,ें मस्तिष्क रखाो से निकल कर पर्वतों की ओर जाने वाली रेखाओं आदि से अध्ययन किया जाता हैं। उसके लिए दबा हुआ शनि पर्वत हो, द्राग्य रेखा यहां आवे तथा बुध पर्वत पर शादी की रेखा से आड़ी छोटी-छोटी तीन-चार रेखाएं होती हैं। बृहस्पति पर्वत काफी उठा हुआ हो, उस पर ग का निशान हो, तो जातक धर्मोपदेशक होता है। यदि कनिष्ठिका अनामिका से जरा ही छोटी रह जाए तथा बुध पर्वत पर शादी की रेखा से आड़ी तीन-चार छोटी-छोटी रेखाएं हों, तो जातक डाक्टर हाते ा है। यदि मगंल पवर्त अच्छा हो, मंगल रेखा साफ-सुथरी हो, तो वह शल्य चिकित्सक होता है। मणिबंध से नीचे कलाई पर मां-बाप से संबद्ध रेखाएं होती हैं, जिनसें इनका बोध होना चाहिए। इन जानकारियों के लिए कुंडली में दशम भाव देखा जाता है। यदि बृहस्पति का पर्वत उठा हुआ हो, तो वह स्वगृही होता है। उस पर ग भी हो, तो वह और द्री बली हो जाता हैं। पर्वत यदि दबा हुआ है, तो वह नीच, अस्तगत अथवा शत्रुक्षेत्री होता है। यदि शनि का पर्वत दबा हुआ है, तो वह स्वगृही, या उच्च का हाते ा है; यदि उछला हुआ हो, तो नीच का होता हैं। सूर्य पर्वत साधारण तौर पर उठा हुआ हो, तो वह स्वगृही तथा उच्च का होता है। यदि इस पर ग आदि के निशान हों, तो वह बहुत कमजोर होता है। ठीक ऐसी ही दशा बुध के पर्वत की होती है। चंद्र और शुक्र के पर्वत उठे हुए हां,े ता े उच्च या स्वगृही होते हैं लेकिन दबे हुए कमजोर होते हैं। इन पर यदि असाधारण निशान हों, तो बहुत कमजोर मानने चाहिएं। जीवन रेखा पूर्ण हो, कहीं द्री कटी-फटी न हो, कोई ग आदि का निशान न हो, तो अस्सी वर्ष की आयु होती है। इसके साथ समानांतर मंगल रेखा भी साफ-सुथरी हो, तो सौ वर्ष की आयु होती है। जीवन रेखा पर गए गालो आदि के निशान हों तो वे दघ्ुार्ट ना के द्याते क हाते हैं रखाो के दानोें तरफ धब्बे हों, तो वे उम्र के साथ-साथ, बीमारियों के द्री द्योतक हैं। मंगल रेखा प्रबल हो, तो ऐसा व्यक्ति शाप अथवा आशीर्वाद देने में सक्षम होता है। जीवन रेखा तथा मस्तिष्क रेखाएं उद्गम स्थान पर जुड़ी हुई न हों, यानी उनमें दूरी हो, तो दांपत्य जीवन अंशातिमय होता है। हृदय रेखा हृदय की सूचक है। यदि यह रेखा न हो, अथवा कटी-फटी हो, लहरदार हो, तो वह हृदयहीनता को दिखाती है। जातक कातिल तक हो सकता हैं। जिसकी मस्तिष्क रेखा मध्यमा तथा तर्जनी के बीच तक चली जाए, उसके हृदय की घड़कन आसानी से रुकती नहीं है तथा पूर्ण आयु सौ वर्ष तक हो सकती है। मस्तिष्क रखाो बुद्धि एवं ज्ञान की प्रतीक है। यदि रेखा साफ-सुथरी हो, तो प्रखर बुद्धि होनी चाहिए, टूटी-फूटी कटी हुई हो, असाधारण निशान हों, तो बुद्धि की कमी होती है तथा ऐसे जातक शारीरिक परिश्रम करने वाले हो सकते हैं। यदि यह रेखा चंद्र पर्वत से निकले, अथवा वहां से निकल कर सहायक रेखा इसमें मिले, तो विदेश गमन होता है। शादी की रेखा के समानांतर जितनी रखाोए ं हातेी ह,ैं उतनी ही शादिया ं हातेी ह,ैं जसैे मीन, धनु राशि का शनि सप्तम द्राव में हा।े यदि एक ही स्पष्ट, बलवान, साफ-सुथरी रेखा हो, तो केवल एक ही शादी होती है। बृहस्पति पर्वत, या उसके नीचे से निकल कर काई रख ाा, धनष्ुा का आकार बनाती हुई, सूर्य पर्वत पर पहुंचे, तो ऐसे व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है। सूर्य रेखा जहां-जहां कटी हो, या उस पर ग हो, या कोई और रेखा उसे काटे, तो उतनी ही परीक्षाओं में असफलता मिलती है। यह रेखा जितनी गहरी, मोटी, स्पष्ट होती है, उतना ही शिक्षा का लाभ मिलता है और जितनी पतली, कम दिखाई देने वाली होती है, तो योग्यता काम नहीं आती। जहां-जहां यह माडे ़ लतेी है, वहीं काम में तबदीली आती है। मच्छ रेखा से निकल कर केतु क्षेत्र तक जाने वाली रेखा साफ-सुथरी हो, तो उसे उच्च पद की प्राप्ति होती है, जैसे किसी के दशम में स्वगृही या उच्च का ग्रह मौजूद हो। स्वास्थ्य रेखा स्पष्ट, मोटी, बिना कटी-फटी हो, तो मनुष्य नीरोग होता है, अन्यथा बीमारी लगती है। यदि बुध पर्वत पर कई छोटी-छोटी समानांतर रेखाएं हों, तो स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा। स्वास्थ्य रेखा हृदय रेखा को काट कर आगे जाए तो, भी स्वास्थ्य कष्टदायक होता है। द्राग्य रेखा का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है। यह रेखा जीवन रेखा के पास से निकल कर, मस्तिष्क आरै हृदय रखाोओं को काटती हुई शनि पर्वत पर जाती है। मस्तिष्क रेखा तक पैंतीस साल, हृदय रेखा तक पचपन साल, हृदय रेखा से अंत तक अवकाश का समय होता हैं। जहां-जहां यह रेखा नहीं होती, वहां भाग्य साथ नहीं देता। किसी-किसी हाथ में इस रेखा के समानांतर, ऊपर की तरफ, सहायक द्राग्य रेखा भी होती है। ऐसे लोग दो या दो से अधिक काम करते हैं कडुंली में भाग्य स्थान में बृहस्पति, शुक्र, बुध आदि कई शुभ ग्रह हा,ें तो यही स्थिति होती है। जिस क्षेत्र में मोटी, चमकदार रेखा हो, वहीं भाग्य विशेष रूप से साथ देता हैं, जैसे भाग्येश की दशा चल रही हो। शनि पर्वत पर पहुंचने से पहले द्राग्य रेखा दो हिस्सों में बंट जाए, एक शनि पर्वत पर जाए तथा दूसरा बृहस्पति पर्वत पर जाए, तो व्यक्ति अत्यंत द्राग्यशाली होता है। इस रेखा को काटने वाली आड़ी या तिरछी रेखाएं द्राग्य में बाधक बनती हैं, जैसे नवम स्थान मं े शनि, राह,ु कते ु हो अगर यह रखाो अंत में तीन रेखाओं में बंट जाए और एक सूर्य पर्वत की ओर, दूसरी शनि पर्वत की ओर और तीसरी बृहस्पति की ओर जाए, तो ऐसा व्यक्ति मिट्टी छूने पर सोना बनता है। यहां रेखा शनि पर्वत को पार कर के आगे उंगली पर चढ़ जाए, तो दुर्घटना से मृत्यु होती है। उंगलियों के अंत में या तो शंख हागो अथवा चक्र। चक्र का होना शुभ माना जाता हैं; खास तौर से अनामिका पर। शंख बेकार होते हैं। जिसकी दसों उंगलियों पर चक्र हो ऐसा व्यक्ति रणभूिम से अवश्य जिंदा लौटता हैं। उसे या तो गोली लगती नहीं और यदि लगगेी द्री, तो केवल उसे घायल करेगी।. 2)हस्त रेखा द्वारा जन्मकुंडली. प्रश्न: यदि किसी जातक के पास अपना जन्म विवरण न हो तो क्या हस्तरेखा के द्वारा जन्म विवरण जानकर जन्मकुंडली बनायी जा सकती है। यदि हां तो विस्तृत वर्णन करें अथवा प्रश्न कुंडली द्वारा वांछित प्रश्न का उत्तर कैसे देंगे, विस्तार पूर्वक वर्णन करें। यदि किसी जातक के पास अपना जन्म विवरण (जन्म दिनांक, समय व स्थान) न हो तो वह हस्तरेखा द्वारा जन्म विवरण की जानकारी हासिल कर जन्मकुंडली बनाकर भविष्य कथन जान सकता है। हस्तरेखा शास्त्र द्वारा जन्म विवरण (तारीख, समय, स्थान) की जानकारी: 1. चंद्र राशि से जन्मदिन/तारीख, सूर्य चिह्न से जन्ममास (महीना) एवं गुरु व शनि से जन्म वर्ष का पता लगाया जा सकता है। 2. पक्ष तथा समय (दिन, रात्रि) का निर्धारण – यदि जातक के एक अंगूठे में यव चिह्न हो तो कृष्णपक्ष व दोनों अंगूठों में यव चिह्न हो तो शुक्ल पक्ष का जन्म होता है। – यदि दाएं हाथ के अंगूठे में यव चिह्न हो तो शुक्ल पक्ष व दिन का जन्म होता है। – यदि बाएं हाथ के अंगूठे में यव चिह्न हो तो शुक्ल पक्ष व रात्रि का जन्म होता है। – यदि दोनों हाथ के अंगूठों में यव हो तो कृष्ण पक्ष में दिन का जन्म होता है। जैन सामुद्रिक शास्त्रानुसार यदि दाएं अंगूठे में यव हो तो शुक्ल पक्ष व दिन का जन्म तथा बाएं हाथ के अंगूठे में यव हो तो कृष्ण पक्ष व रात का जन्म होता है। 3. जन्म मास व राशि का निर्धारण – दोनों हाथों की तर्जनी अंगुलियों के दूसरे व तीसरे पोर में स्थित दोष रहित लम्बवत् रेखाओं के योग को 23 से गुणा करने पर जो संख्या आए इसमें 12 का भाग देने पर जो संख्या शेष बचे वही जन्ममास और राशि होती है। उदाहरण यदि शेष 1 बचे तो जातक का जन्म मेष राशि, वैशाख मास में माना जाता है। इसी प्रकार क्रमशः आगे भी। – इसके अलावा, अनामिका अंगुली (सूर्य की) के नीचे सूर्य क्षेत्र में जिस भी राशि का स्पष्ट चिह्न यदि हो तो, इससे भी जन्ममास ज्ञात कर सकते हैं। 4. जन्मतिथि का निर्धारण – मध्यमा अंगुली के दूसरे व तीसरे पोर मंे स्थित लंबी रेखा का योग कर उसमें 32 जोड़कर 5 से गुणा कर फिर गुणनफल में 15 का भाग देने से जो शेष संख्या आए, वही जन्मतारीख (तिथि) होगी। – अंगूठे के नीचे स्थित शुक्र क्षेत्र पर स्थित दोषरहित कुल लंबवत् रेखाओं को 6 से गुणा कर उसमें 15 का भाग देने पर जो शेष बचता है वह तिथि होगी। यदि शेष शून्य बचता है तो जन्म पूर्णिमा का होता है। 15 के बाद 30 के अंदर का क्रम होने पर जन्म कृष्ण पक्ष का होता है। 5. जन्म वार का निर्धारण अनामिका के दूसरे व तीसरे पर्व में स्थित दोषरहित कुल रेखाओं में 517 जोड़कर 5 से गुणा कर गुणनफल में 7 का भाग देने पर शेष बची संख्या उसका वार होगी। यदि शेष 1 तो रविवार, 2 सोमवार, 3 मंगलवार, 4 बुधवार, 5 गुरुवार, 6 शुक्रवार व 7 शेष आने पर शनिवार होगा। 6. वर्ष/जन्म सन् का निर्धारण हस्तरेखा में बृहस्पति व शनि क्षेत्र में सभी दोषरहित लंबवत् रेखाओं का अलग-अलग योग करें। ये रेखाएं अंगुलियों के मूल के अंतिम (तृतीय) पर्व से निकलती हुई मिलेगी। इस तरह बृहस्पति की कुल रेखाओं को डेढ़ से व शनि की कुल रेखाओं को ढाई से गुणा करके आपस में जोड़ दें। इस जोड़ में मंगल पर्वत की रेखाओं का योग करने पर जातक का जन्म वर्ष आ जायेगा। इससे जातक की वर्तमान आयु/उम्र का भी पता चल जायेगा। 7. जन्म लग्न/ समय का निर्धारण अनामिका व मध्यमा पर्व पर तथा सूर्य व गुरु पर्वत पर जितनी दोषरहित खड़ी रेखायें हों, उन्हें गिनकर इसमें 811 जोड़कर, 124 से गुणा कर, 60 से भाग देने से जो भागफल आएगा उससे जन्म का समय घंटे में तथा शेष मिनट में स्पष्ट होगा। योगफल 24 से अधिक होने पर पुनः 24 का भाग दें। पंचांग देखकर लग्न निकालें। 8. जन्म लग्न का अन्य विवेचन अंगूठा जातक की कुंडली का ‘लग्नेश’ कहलाता है। यदि तर्जनी व अंगूठे के बीच न्यूनकोण है तो जातक में ईच्छा शक्ति की कमी है। फलतः लग्नेश निर्बल होगा। यदि दोनों के बीच समकोण या अधिक कोण है तो प्रबल ईच्छा शक्ति है तथा लग्नेश बली (उच्च, स्वगृही, मित्रराशि का) होगा। अतः अंगूठा ‘लग्न’ का दर्पण है। – यदि अंगूठे पर मशाल या अग्नि जैसी जलती हुई लपटें ऊपर की ओर उठती हांे तो जातक का लग्न मेष, सिंह या धनु होगा। – यदि अंगूठे में तंबू या वायु के गुब्बारे जैसा बीच से उठा हुआ भाग हो तो जातक का लग्न, मिथुन, तुला या कुंभ होगा। – यदि अंगूठे से उठती हुई लहरें, पर्वत या टेकरी जैसा कोई चिह्न या आकृति हो तो जातक का लग्न वृष, कन्या या मकर होगा। – यदि अंगूठे में चक्र या समुद्री लहरों के चिह्न जैसी कोई आकृति हो तो लग्न, कर्क, वृश्चिक या मीन होता है। हाथ – – चर लग्न (मेष, कर्क, तुला, मकर) में जन्मे जातकों का हाथ चपटा या वर्गाकार होता है। – यदि किसी जातक का हाथ नुकीला व लंबा हो तो लग्न ‘स्थिर’ (वृष, सिंह, कुंभ, वृश्चिक) होता है। – हाथ-दार्शनिक हो तो जातक का लग्न ‘द्विस्वभाव’ (मिथुन, कन्या, धनु, मीन) होता है। 9. कुंडली में सूर्य की स्थिति का विवेचन जन्म मास का निर्धारण – यदि मस्तिष्क रेखा, चंद्र पर्वत पर समाप्त होकर दो या तीन भागों में विभक्त हो जाये या यव, क्राॅस का चिह्न बने तो जातक के जन्म के समय सूर्य, कर्क या सिंह राशि में होता है। – यदि मष्तिष्क रेखा, मंगल पर्वत पर समाप्त हो तो सूर्य, मेष या वृश्चिक राशि में होता है। हस्त रेखा के उदाहरण-2 में मस्तिष्क रेखा, मंगल क्षेत्र पर समाप्त हो रही है इनकी कुंडली में सूर्य उच्च (मेष) का है। अतः इनका जन्म मास चैत्र या अप्रैल है। – यदि मस्तिष्क रेखा, शनि पर्वत के नीचे समाप्त हो तो सूर्य मकर, कुंभ या बुध की राशि मिथुन अथवा कन्या में होता है। उदाहरण -1, सायं का सूर्य दशम भाव में कन्या राशि में है, मस्तिष्क रेखा, शनि के नीचे समाप्त हो रही है आदि। इस तरह जन्म मास की गणना कर सकते हैं। – यदि अनामिका, तर्जनी से बड़ी हो तो सूर्य की स्थिति कुंडली में चतुर्थ भाव से नवम भाव के बीच में होती है। उदाहरण 2 में सूर्य मेष का होकर सप्तम भाव में स्थित है क्योंकि इनकी अनामिका लंबी है। सप्तम भाव में मेष राशि आने पर लग्न ‘तुला’ हो जाता है। – यदि तर्जनी, अनामिका से बड़ी हो तो सूर्य 10 से 3 भाव में होता है। उदाहरण 1 में मनमोहन जी की कुंडली में सूर्य दशम भाव में है। इनकी तर्जनी लंबी है। 10. चंद्र स्थिति – यदि चंद्र पर्वत से कोई रेखा, सूर्य पर्वत की ओर जाती हो तो चंद्र बली, (उच्च, स्वगृही, मित्र राशि) होता है। – चंद्र पर्वत पर उभार, आकृति व चिह्न की जांच करते हैं। 11. मंगल स्थिति – यदि शुक्र पर्वत से रेखायें मंगल पर्वत पर आती हों तो मंगल की स्थिति कुंडली में शत्रु राशिस्थ जैसे- शुक्र की राशि आदि अथवा नीचस्थ होती है। अर्थात् मंगल निर्बल होता है। -पपद्ध मंगल-पर्वत दबा या कटा-फटा अशुभ हो तो मंगल निर्बल होता है। 12. बुधादित्य योग यदि दोनां पर्वत हाथ में एक दूसरे की तरफ झुके हां तो जन्मपत्री में बुध एवं सूर्य साथ-साथ होते हैं। 13. बुध स्थिति यदि बुध पर्वत उन्नत है तो बुध ग्रह बली है। निर्बल होने पर बुध पर्वत दबा होगा। 14. गुरु स्थिति – यदि गुरु पर्वत पर क्रास हो तथा यह पर्वत दबा हो एवं जीवन रेखा से कोई रेखा गुरु पर्वत पर जाती हो तो कुंडली में गुरु ग्रह की स्थिति चर राशियों-मेष, कर्क, तुला, मकर में होती है। – बिंदु upper में यदि गुरु पर्वत उठा हो तथा बाकी सारी स्थितियां हों तो गुरु ग्रह द्विस्वभाव राशि में होता है। – गुरु का क्षेत्र बड़ा, उन्नत, साफ-सुथरा हो तो गुरु स्थिर राशियों में होता है। 15. शुक्र स्थिति – यदि शुक्र पर्वत पर आड़ी-तिरछी रेखायें या जाल हो तथा बुध पर्वत से कोई रेखा शुक्र पर्वत पर जाती हो तो शुक्र द्विस्वभाव में होता है। – यदि शुक्र पर्वत उठा हुआ हो तो शुक्र वृष अथवा तुला मंे होता है। – यदि शुक्र पर्वत दबा हो, सूक्ष्म धारियां नजर आयं तो शुक्र ग्रह निर्बल, अस्त, शत्रुराशि में होता है। 16. शनि स्थिति – शनि पर्वत मांसल, उन्नत होने तथा शनि, सूर्य रेखा सुस्पष्ट होने पर शनि बली होता है। – शनि पर्वत दबा हुआ, शनि रेखा टूटी हुई हो तो शनि नीच, शत्रु, अस्त तथा निर्बल होता है। ग्रहों की कुंडली में विभिन्न स्थानों पर स्थिति – यदि पर्वत हाथ में अपने स्थान से बायीं ओर झुके हों तो उनसे संबंधित ग्रह जन्मपत्री में 2, 3, 5, 6 भावों में होते हैं। – दायीं ओर झुके होने पर – 8, 9, 11, 12 भावों में होते हैं। – यदि पर्वत हाथ में अपनी सही जगह पर उभार लिये हैं तो 1, 4, 7, 10 केंद्र स्थानों में ग्रह स्थित होते हैं। उपर्युक्त विवेचन के आधार पर जातक का जन्म विवरण ज्ञात कर जन्मपत्रिका बना सकते हैं। 3)हस्तरेखा से जानें कैरियर. सभी अंगुली में प्रायः तीन पोर होते हैं, और यदि यह ज्यादा कटे-फटे न हो तो अच्छी गुणवत्ता के व्यक्तित्व को दर्शाती है तथा सामान्यतः धनाढय योग बताती है। अंगूठे में प्रायः चार पोर हो सकते हैं और यह उच्च इच्छा शक्ति की द्योतक है। तर्जनी उंगली से गुरु पर्वत से होते हुए बुध पर्वत तथा कनिष्ठका उंगली के नीचे से जाती हुई रेखा को हृदय रेखा कहा गया है। हाथ में B से B दिखाया गया है। इससे जाती हुई रेखा को मस्तिष्क रेखा कहते हैं, जो हमारी सोच और अच्छे दिमाग का द्योतक है। A से E को हृदय रेखा से दिखाया गया है। हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा के बीच का राहु का भाग कहलाता है। हाथ में K से दर्शाया क्षेत्र राहु है। शुक्र और चंद्रमा के क्षेत्र से बीचो-बीच जाती हुई रेखा क से क को भाग्य रेखा कहा गया है। यह रेखा जितनी स्पष्ट होगी व्यक्ति उतना भाग्यशाली होगा। भाग्य रेखा के बीच में पड़ने पर क्षेत्र मंगल तथा नीचे चंद्र के ठीक सामने केतु का क्षेत्र है। हाथ में इन्हें प् और J से दर्शाया गया है। आयु रेखा और बुध पर्वत की ओर जाने वाली रेखा को स्वास्थ्य रेखा कहते हैं, यह प्रायः सभी हाथों में नहीं पाई जाती। कुछ लोग अंतज्र्ञान रेखा तथा भाग्य रेखा को ही स्वास्थ्य रेखा समझ लेते हैं जो कि गलत होती है। हथेली में ब् से ब् के क्षेत्रीय रेखा को आयु रेखा कहा गया है। जो व्यक्ति की आयु सीमा निर्धारित करती है। हथेली में कलाई के पास मणिबंध रेखा से दर्शाया गया है। प्रायः यह तीन भागों में होती है तथा थोड़ा चेननुमा हो सकती है। वैवाहिक जीवन में यह रेखा मुख्य भूमिका निभाती है। जिनके हाथ में यह रेखा होती है उनका स्वभाव गुस्से वाला तो होता ही है तथा शादी के बाद अच्छा बदलाव देखने को मिलता है। प्रायः महिलाएं थोड़ा चिड़चिड़ी होती है और गहनों की बहुत शौकीन होती है। थ् से थ् का क्षेत्र चंद्रमा को दर्शाता है। यह व्यक्ति विशेष की वैवाहिक क्षमता को दर्शाता है तथा जितनी रेखाएं आड़ी-तिरछी चंद्रमा में रहती है, उतने छोटे-छोटे प्रेम प्रसंग को दर्शाती है। प्रायः ऐसी रेखा वाले हाथ थोड़ा चंचल पाए गए हैं। हाथ प् से मंगल के क्षेत्र को दर्शाया गया है। सूर्य रेखा: किसी भी व्यक्ति के हाथ में सूर्य रेखा अथवा पर्वत का उतना ही महत्व है जितना एक मजबूत जिगर का। किसी के मजबूत जिगर का होना मतलब अच्छा सूर्य होना। हाथ ठ की अजीबो-गरीब सूर्य रेखा है। सूर्य रेखा क से क की ओर जाती हुई दिखायी गई है। क से क की ओर जाने वाली रेखा उस व्यक्ति को बहुत ऊंची सोच दिखाती है तथा ब से ब रेखा प्रलोभन में आना, झूठा दिखावा करना, बड़ाई करना आदि दिखाती है। चूंकि क से क रेखा नीचे राहु को छू रही है इसलिए सूर्य राहु के साथ मिलकर राजनीतिज्ञ बनाती है, चूंकि क से क रेखा सूर्य को दिखाती है तो व्यक्ति ज्यादा छलिया नहीं होता है। ब से ब की रेखा एकदम से जोश और आवेश को दिखाती है। क से क की रेखा जो कि नीचे की ओर जा रही है। आत्म विश्वास में कमी करती है। अचानक से मन को हताश करती है और लक्ष्य से विचलित करती है। च से च की रेखा अचानक धन लाभ दिखाती है और किसी भी व्यवसायिकता में धन लाभ दिखाती है, धन लाभ निजी हो सकता है। द से । वलय सामाजिक बदनामी दिखाती है। चूंकि यह वलय शुक्र मुद्रिका भी दर्शाती है इसलिए सम्मान में कमी कर सकती है और व्यवहारिक तौर पर बदनामी भी दे सकती है। वलय की तरफ जो उध्र्वाधर रेखाएं जाती है, जो अनावश्यक प्रेम संबंध दर्शाती है जो स्वार्थवश हो सकती है। व् दर्शाया गया प्वाइंट है जो त्रिभुज के आकार का होता है। यह बिना किसी उपलब्धि के उपलब्धि दिलवा सकता है। नीचे दर्शाये गए चतुर्भुज पैतृक घर और संपत्ति को दर्शाते हैं, यह रेखा सूर्य पर्वत से जितनी दूरी पर होती है घर उतनी ही देरी से बनता है। सूर्य राहु की तरफ बढ़ता है तो सूर्य और राहु की युति भी दर्शायी जा सकती है। सूर्य में तिल का निशान अधिक रुपये को न दिखाकर ग्रहण का योग दिखाता है। मिली-जुली और द्वीप वाली रेखा पराक्रम को कम करके स्वभाव को चंचल तथा धन के प्रति लालची बनाती है तथा किसी न किसी माध्यम से धन को कमाने की कोशिश करते है, चूंकि स्वाभिमान कहीं न कहीं आड़े आता है, इसलिए धन के लेन-देन में चिंता करते हैं और प्रायः ईमानदार होते हैं। बीमारी के तौर पर इन्हें कई रोग होते हैं। इनका स्वभाव कभी-कभी उग्र पाया गया है। क्योंकि इनकी माता-पिता से प्रायः कम ही पटती है। खाने-पीने के शौकीन होते हैं तथा स्वाद के प्रायः पसंदीदा होते हैं। 8 प्रकार के हाथों की विवेचना करते समय अनामिका को खास प्रकार से ध्यान देते हैं। यह प्रायः चतुर्भुज आकार के होते हैं। अनामिका के प्रथम पोर क से क का जाल राशियां। यह जाल प्रायः पतले सिरे से शुरु होकर चैड़े क शिरे तक जा सकता है। जाल की रेखाएं बहुत धनी न होकर थोड़ी दूर-दूर भी हो सकती है। जिन हाथों में यह जाल पाया जाता है उन्हें प्रायः पिता का सुख कम ही नसीब होता है। उनके अस्तित्व में आने के साथ ही उनके पिता की मृत्यु हो जाती है। या यूं कह सकते हैं कि उनके होते ही पिता की मृत्यु हो जाती है। पिता की मृत्यु के बाद धीरे-धीरे चिन्ह खत्म प्रतीत होता है। फिर भी खत्म होते होते 10 से 15 साल भी लग सकते हैं। हृदय रेखा का चित्र जो आपको दिखाया गया है, वह बहुत ही संवेदनशील लोगों के लिए होता है, प्रायः इनकी तबियत भी नरम होती है। ज्यादातर पेट संबंधी तथा सांस संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। ऐसी हृदय रेखा वाले व्यक्ति प्रायः तुनक मिजाज तथा कभी खुशी कभी गम वाले होते हैं। हृदय रेखा को काटती हुई एक रेखा ब से ब को जाती है जो शनि पर्वत की ओर जाती है। इसे हम गुरु शनि युति अथवा गुरु शनि का संबंध कह सकते हैं। इस रेखा के होने से अंतज्र्ञान ज्ञान में वृद्धि होती है तथा इनकी अपने माता-पिता से ज्यादा नहीं बनती है। मस्तिष्क रेखा जो चंद्रमा क्षेत्र की ओर जाने वाली मस्तिष्क रेखा हर रोज में थोड़ा-थोड़ा ज्ञान दिखाती है तथा उच्च शिक्षा को दिखाती है। इस तरह की रेखा कई बार सीधी चंद्रमा की तरफ निकलती है, यह रेखा अहंकार को दिखाती है तथा व्यक्ति के अधूरे ज्ञान का संकेत देती है। मस्तिष्क रेखा में एक व रेखा दिखाई गई है। झुकी हुई मस्तिष्क रेखा का अचानक उठना, बड़ाई करने वाला स्वभाव बताता है, ऐसे व्यक्ति प्रायः क्रोधी, मुंहफट तथा अपनी बड़ाई खुद ही करते हैं। आयु रेखा में द्वीप का निशान बीमारी देता है, बीमारी भी ऐसी जो पकड़ में न आवे। आयु रेखा में द्वीप जिंदगी में बेवजह तनाव देता है तथा कोई भी काम आसानी से नहीं हो पाते हैं। प्रायः जीवन तनावपूर्ण होता है। मस्तिष्क रेखा जितनी छोटी उतनी कष्टदायी होती है तथा व्यक्ति के तुच्छ विचारों को दर्शाती है, ऐसे व्यक्ति में खुद के निर्णय लेने की क्षमता नहीं रहती है तथा पढ़ाई भी प्रायः कम ही रहती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें दूरदर्शिता प्रायः कम पाई जाती है। ये अपने तुच्छ विचारों से कुछ भी कर सकते हैं तथा किसी को कुछ भी कह सकते हैं। इनमें दूरदर्शिता की कमी पायी जाती है और जिन व्यक्तियों में दूरदर्शिता नहीं रहती उनका दिल बहुत मजबूत रहता है। क्योंकि वे आगे और गहराई से विचार करके अपनी दिमाग नहीं खपाते हैं। दिल से कठोर निर्दयी होते हैं। हाथ में दिखायी गई भाग्य रेखा एक नहीं कई कामों और विचारों को व्यक्त करती है, उस तरह की भाग्य रेखा में न जानें कितनी उथल-पुथल रहती है। पढ़ाई भी ठीक से नहीं हो पाती है, मन एकाग्र नहीं रहता है, किसी भी काम की शुरुआत महज एक इत्तेफाक होती है और भाग्य से चलता हुआ काम अचानक रुक जाता है या दूसरा काम शुरु हो जाता है। स्थिरता मिलना थोड़ा मुश्किल रहता है। फिर भी जैसे तैसे करके अपना जीवन यापन करते हैं और आखिरकार अपनी जिंदगी जी ही लेते हैं। अगर बात चरित्र की करते हैं तो अपने जीवन साथी से प्रायः नाराज होते रहते हैं। मानसिकता इतनी मजबूत नहीं रहती है। हर समय अपने भाग्य को कोसते रहते हैं, दरअसल मेहनती थोड़ा कम ही रहते हैं, यदि भाग्य रेखा सीधी हो ठीक नहीं हो तो भाग्य रेखा न हो तो ज्यादा अच्छा है। भाग्य रेखा में बना त्रिशूल व्यक्ति को अंतज्र्ञान तथा तंत्र, मंत्र को दर्शाता है। ऐसा व्यक्ति तंत्र, मंत्र साधना में प्रायः लीन रहता है या कह सकते हैं कि धर्म तथा ज्योतिष के प्रति रुझान ज्यादा रहता है। प्रायः ऐसे व्यक्ति मूडी देखे गए हैं। जल्दी ही किसी भी चीज़ से ऊब जाते हैं तथा किसी से दोस्ती भी उतनी ही जल्दी से करते हैं जितनी जल्दी बोर हो जाते हैं। शनि रेखा सीधी हो तो जातक अधिक उम्र तक जवान दिखता है। लेकिन मेहनती प्रायः कम होता है। सीधी शनि (भाग्य रेखा) वाला व्यक्ति प्रायः भाग्य पर निर्भर होता देखा गया है। आलस्य प्रवृत्ति का होता है, कर्म से ज्यादा भाग्य पर यकीन करता है, प्रायः खूबसूरत तथा घुंघराले बाल होते हैं, क्योंकि शनि (भाग्य) रेखा प्रधान होती है। यदि यह शनि रेखा छोटे हाथों में होती है तो व्यक्ति कुंठित प्रवृति का होता है, सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करता है। क से क भाग्य रेखा को दर्शाती है। बीच से टूटा हुआ भाग व अचानक से कार्य में बदलाव लाता है। किसी एक व्यवसाय अथवा कार्य का परिवर्तन दर्शाता है। अचानक कार्य करते-करते आप कोई दूसरा व्यवसाय भी कर सकते हैं। टूटी हुई भाग्य रेखा संतुष्टि को नहीं दर्शाता है, व से च रेखा अचानक कार्य करते-करते बोरियत महसूस करना कार्य परिवर्तन करना दिखाता है। यदि क से क रेखा की बात करें तो शादीशुदा जिंदगी इनकी इतनी सफल नहीं होती है। लंबी शनि रेखा में सपने काफी बड़े होते हैं, राजनीतिज्ञ योग्यताएं तथा विलक्षण बुद्धि पायी जाती है। गाड़ियों का शौक रहता है तथा कभी-कभी बड़ाई करने वाले भी होते हैं। अपने मुंह से अपनी तारीफ करने वाले होते हैं। चंद्रमा पर्वत ा से ा में खींची गई रेखाएं असमय तथा बिना कारण के यात्रा दर्शाती है। सीधी रेखा श्र पर आधी रेखा छ प्रेम संबंध (गुप्त) दर्शाती है। यह प्रेम संबंध गुप्त भी हो सकता है। जो कभी उजागर नहीं होता है। ब से ब प्रेम रेखा तथा यात्रा प्रिय रेखा कहलाती है। ये व्यक्ति प्रायः यात्रा के शौकीन होते हैं तथा ब से ब रेखा गुप्त प्रेम संबंध तथा रोमांटिक स्वभाव का भी द्योतक है। यदि वह सारी रेखाएं वर्गाकार हाथ में होती है तो व्यक्ति अपना निजी व्यवसाय चलाता है तथा नाम कमाता है। यदि यह रेखाएं दार्शनिक हाथ में होती है तो व्यक्ति उमंगशील प्रवृत्ति का तथा कला प्रेमी होता है। उसे पैसों का आभाव प्रायः कम ही होता है। 4) विवाह रेखा ही बता देती है विवाह सुख . हथेली में विवाह रेखा बहुत ही छोटी होती है परंतु व्यक्ति के जीवन में बहुत प्रभावशाली होती है। हाथ की रेखाओं का अध्ययन करते समय हम विवाह रेखा की उपेक्षा नहीं कर सकते। हृदय रेखा एवं जीवन रेखा की तरह यह रेखा इतनी गहरी एवं बड़ी नहीं होती। विवाह रेखा बुध की उंगली के नीचे शुरु होकर अनामिका उंगली की तरफ जाती है। यह हृदय रेखा के ऊपर छोटी उंगली के नीचे स्थित होती है। सुखी जीवन का आधार दाम्पत्य सुख ही है। परिवार का सुचारू संचालन पति-पत्नी में आकर्षण, प्रेम, समर्पण एवं विश्वास पर टिका हुआ होता है। इनका अभाव दाम्पत्य जीवन को नरक तुल्य बना देता है। विवाह मुहूर्त, कुंडली मिलान, जन्मांग में दाम्पत्य सुख आदि संदर्भ से अलग मनुष्य की हथेली में उपस्थित विवाह रेखा की चर्चा की जा रही है। हथेली में विवाह रेखा: हथेली में यह रेखा सबसे छोटी लेकिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। इस रेखा को विवाह रेखा, वासना रेखा, प्रणय रेखा आदि नाम से जाना जाता है। कनिष्ठा अंगुली के नीचे हृदय रेखा के ऊपर एवं बुध पर्वत के बगल में यह रेखा होती है। हथेली में विवाह रेखाओं की संख्या चार तक हो सकती है। इनमें से एक रेखा ही सर्वाधिक पुष्ट एवं लंबी होती है। विवाह रेखा हृदय रेखा के ऊपर ही सर्वाधिक पुष्ट एवं लंबी होती है। विवाह रेखा हृदय रेखा के ऊपर ही होना चाहिए। जिन व्यक्तियों के हाथों में यह हृदय रेखा के नीचे होती है उनका विवाह प्रायः नहीं होता है। विवाह रेखाओं का अधिक होना इस बात का संकेत है कि विवाह पूर्व या विवाह बाद उतने स्त्री/पुरुषों से प्रणय संबंध बनेंगे कारण विवाह रेखा के साथ जो छाटी-छोटी रेखाएं हैं वे प्रणय रेखाएं है। यदि हथेली में प्रणय रेखाओं का अभाव है तो व्यक्ति काम लोलुप न होकर संयमित जीवन जीता है। दाम्पत्य सुख के लिए हथेली में विभिन्न पर्वत विशेष कर गुरु/शुक्र पर्वत तथा अन्य रेखाओं की स्थिति भी विचारणीय रहती है। विवाह रेखा लक्षण: 1. यदि विवाह रेखा पूर्ण पुष्ट तथा लालिमा युक्त हो तो व्यक्ति का दाम्पत्य सुखमय व्यतीत होता है। यदि विवाह रेखा कनिष्ठा अंगुली के दूसरे पोर तक चढ़े तो व्यक्ति को पत्नी की प्राप्ति नहीं होती है। 2. खंडित विवाह रेखा जीवन के मध्य काल में पत्नी वियोग देती है यह योग पत्नी की मृत्यु होने या तलाक होने से बनता है। विवाह रेखा नीचे की ओर जाकर हृदय रेखा को छुए तो पत्नी की मृत्यु हो जाती है। 3. शुक्र पर्वत से कोई रेखा निकलकर विवाह रेखा को स्पर्श करे तो वैवाहिक जीवन अत्यंत दुखमय हो जाता है। अंत में दो मुंही विवाह रेखा भी दाम्पत्य जीवन को कलह युक्त बनाती है। 4. हथेली में विवाह रेखा का चैड़ा होना विवाह के प्रति कोई उत्साह न होने का संकेत है। विवाह रेखा से प्रारंभ होकर कोई पतली रेखा हृदय रेखा की ओर जाये तो पति पत्नी के साथ जीवन भर बना रहता है। 5. विवाह रेखा का अंत में कई भागों में बंट जाना अत्यंत दुखी दाम्पत्य का संकेत है। दो मुंही विवाह रेखा की एक शाखा हृदय रेखा को स्पर्श करे तो व्यक्ति का प्रेम संबंध पत्नी की बहन से भी हो जाता है। रेखा की ऐसी स्थिति यदि स्त्री के हाथ में हो तो उसका प्रेम संबंध पति के भाई से हो जाने की आशंका रहती है। 6. विवाह रेखा सूर्य रेखा को स्पर्श कर नीचे की ओर जाये तो अनमेल विवाह होता है। यदि बुध पर्वत पर विवाह रेखा कई भागों में बंट जाये तो कई बार सगाई टूटती है। यदि विवाह रेखा मस्तक रेखा को स्पर्श करे तो पति अपनी पत्नी की हत्या कर देता है। 7. विवाह रेखा पर काला धब्बा पत्नी सुख का अभाव बताता है। यदि विवाह रेखा से कोई रेखा निकल कर शुक्र पर्वत को स्पर्श कर ले तो पत्नी में चारित्रिक दोष हो सकता है। 8. यदि विवाह रेखा आयु रेखा को काटे या विवाह रेखा भाग्य रेखा एवं मस्तक रेखा परस्पर मिले तो दाम्पत्य दुख एवं कलह से परिपूर्ण रहता है। आड़ी रेखा से विवाह रेखा का कटना भी वैवाहिक सुख हानि देता है। 9. विवाह रेखा में झुकाव और झुकाव पर क्राॅस बना हो तो पति/पत्नी की आकस्मिक मृत्यु हो सकती है। विवाह रेखा के उद्गम पर द्वीप का चिन्ह दाम्पत्य सुख बिगाड़ता है। 10. विवाह रेखा पर एक से अधिक द्वीप शादी सुख से वंचित रखते हैं। यदि विवाह रेखा का झुकाव कनिष्ठा की ओर हो तो जीवन साथी की मृत्यु उससे पूर्व होती है। यह लक्षण पति के हथ में हो तो पत्नी की और स्त्री के हाथ में हो तो पति की मृत्यु। 11. बुध क्षेत्र पर दो सामानांतर पुष्ट रेखाओं का होना दो विवाह होने का संकेत है। दो हृदय रेखाएं होने पर विवाह नहीं होता है। 12. चंद्र पर्वत से कोई रेखा आकर विवाह रेखा से मिले तो व्यक्ति भोगी एवं कामुक होता है। मंगल रेखा से आकर कोई रेखा विवाह रेखा को स्पर्श करे तो विवाह सुख नहीं मिलता। 13. भाग्य रेखा और मस्तक रेखा में यव का चिन्ह हो, भाग्य रेखा टेढ़ी हो, विवाह रेखा ऊपर की ओर मुड़ी हो तो व्यति विवाह नहीं करना चाहता है। 14. व्यक्ति आदर्श पति सिद्ध होगा यदि तर्जनी सुंदर सुडौल हो गुरु पर्वत पर एपैक्स केंद्र में हो, शुक्र, चंद्र पर्वत अपने केंद्र में हो, मस्तक रेखा पतली हो तथा आयु रेखा से मिली हो, हृदय रेखा से एक रेखा तर्जनी की ओर तथा दूसरी तर्जनी और मध्यमा के बीच में हो। 15. विवाह रेखा पर फोर्क हो, शुक्र पर्वत उभार लिए हुए हो, मस्तक रेखा जंजीरनुमा हो, शुक्र मुद्रिका दोहरी हो एवं कटी हो तथा हृदय रेखा में यव हो तो व्यक्ति इश्कबाज होता है। 16. निम्न लक्षण होने पर चारित्रिक पतन होने की पूरी संभावना रहती है। शुक्र पर्वत उभरा हुआ हो, उस पर नक्षत्र हो, अंगूठा सुदृढ़ हो, भाग्य रेखा के प्रारंभ से दो समानांतर रेखाएं आयु रेखा को काटती हुई आगे बढ़े, हृदय रेखा गोलाई लिए हुए हो, हृदय रेखा लंबी हो तथा गुरु पर्वत की गहराई को पार कर जाये। आयु रेखा भी गोलाई लिए हो तो ये लक्षण अति काम वासना होने के स्पष्ट संकेत है। 17. यदि हथेली में चंद्र क्षेत्र विकसित हो तो व्यक्ति काम लोलुप तथा स्त्रियों के पीछे लगने वाला होता है। हथेली में प्रणय रेखाएं हों सूर्य पर्वत उभार लिए हो तो व्यक्ति काफी सोच विचार के बाद ही अन्य स्त्रियों से प्रेम संपर्क स्थापित करता है। 18. यदि शनि पर्वत अधिक उभार लिए हुए हो तो व्यक्ति अपने से बड़ी आयु की स्त्रियों से प्रेम संबंध स्थापित करता है उसे स्त्रियों से धन लाभ भी होता है। 19. गहरी प्रणय रेखा गहरे प्रेम संबंध होना बताती है एवं कमजोर प्रणय रेखा अल्प समय के लिए प्रेम संबंध होना व्यक्त करती है। प्रणय रेखा पर क्राॅस हो तो प्रेम संबंध शीघ्र समाप्त हो जाता है और यदि द्वीप हो तो व्यक्ति को प्रेम में बदनामी सहना पड़ता है। प्रणय रेखा सूर्य पर्वत की ओर जाये तो व्यक्ति का प्रेम संबंध ऊंचे घराने की स्त्रियों से होता है। 20. कामान्ध व्यक्ति के लक्षण देखिए कोई रेखा मध्यमा एवं तर्जनी के मध्य से प्रारंभ होकर बुध पर्वत को पार करती हुई कनिष्ठा के नीचे तक चली जाये मस्तक रेखा सूर्य पर्वत के नीचे दो भागों में हो जाये एक शाखा हृदय रेखा के उद्गम स्थल को छुए, दूसरी शाखा चंद्र पर्वत को छुए। 21. स्त्री के हाथ में विवाह रेखा जंजीरनुमा हो तो वह अपने विलास हेतु प्रेम के मामले में चारित्रिक पतन पाती है तथा उसका स्वभाव क्रूरता एवं निष्ठुरता का होता है। 22. मस्तक रेखा छोटी हो हृदय रेखा उसके नजदीक हो शुक्र पर्वत ऊंचा तथा हृदय रेखा छोटी होकर शनि पर्वत के पहले ही समाप्त हो तो व्यक्ति कुकर्मी होता है। 23. शुक्र पर्वत उभरा हुआ हो उस पर जाली हो, अंगूठे के प्रथम पर्व पर नक्षत्र तथा तर्जनी की तीसरी संधि पर तारे का चिन्ह हो तो व्यक्ति दुश्चरित्र होता है। 24. पतिब्रता स्त्री के लक्षण देखें – गुरु पर्वत अच्छा तथा उस पर एक रेखा हो, अनामिका के प्रथम पर्व पर क्राॅस हो, मंगल मैदान में स्पष्ट रेखाएं हों, अंगुलियों की रेखाएं लालिमा युक्त हों, हाथ छोटा एवं साफ रेखाओं वाला हो। 25. आदर्श पति का लक्षण देखें – हथेली सुदृढ, तर्जनी सीधी हो मस्तक रेखा महीन, गहरी एवं सीधी हो, शुक्र एवं चंद्र पर्वत अच्छे हों, अंगूठा चैकोर हो तथा हृदय रेखा गुरु पर्वत पर दो मुंही हो गई हो तथा शाखाएं लंबी हों। 26. स्त्री के हाथ में विवाह रेखा पर नक्षत्र, विवाह रेखा झुक कर हृदय रेखा को स्पर्श करे, विवाह रेखा पर काला धब्बा, विवाह रेखा हृदय रेखा से मिलकर बारीक रेखाएं दोनों रेखाओं को काटे तो वैधव्य घटित हो सकता है। 27. सुखद विवाह के लक्षण हैं यदि चंद्र पर्वत से आकर कोई रेखा भाग्य रेखा में मिले, भाग्य रेखा चंद्र पर्वत से निकल कर हृदय रेखा तक जाये, मणिबंध से रेखा निकलकर शनि पर्वत तक पहुंचे तथा चंद्र पर्वत से कोई रेखा आकर उसमें मिले। कुंडली मिलान के साथ-साथ यदि संभव हो तो हथेली में मौजूद विवाह रेखा, अन्य रेखाओं, पर्वतों एवं विभिन्न चिन्हों द्वारा स्थापित दाम्पत्य सुखदायक एवं दुखदायक योगों पर अवश्य ही विचार कर लेना चाहिए जिससे भावी दंपत्ति का वैवाहिक जीवन पूर्ण सुखद रहे। 5) हस्त रेखाएं और ज्योतिष. हस्त रेखाएं और ज्योतिष हरबू लाल अग्रवाल ज्योतिषीय गणनाएं जटिल हैं और हस्तरेखाएं विधाता द्वारा बनायी गयी प्रत्येक व्यक्ति की जीवन की सरल रूप रेखा है तथापि जो ज्योतिष में है वही हाथ की रेखाओं में भी अंकित है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। क्योंकि समय के साथ आने वाले परिवर्तन हस्तरेखाओं में अंकित होते रहते हैं जिन्हें थोड़े ही अध्ययन से जाना जा सकता है। आइए, जानें कैसा है यह संबंध। हस्त रेखा शास्त्र द्रारत में आदि काल से प्रचलित है। नारद जी इसके बहुत बडे़ विशेषज्ञ थे। रामायण में वर्णन आता है कि राजा शीलनिधि ने अपनी पु़त्री विश्वमोहिनी का हाथ नारद जी को दिखाया। आनि दिखाई नारदहिं द्रूपति राज कुमारि, कहहु नाथ गुन दोष सब एह के हृदय विचारि। जो एहि बरइ अमर सोइ होइ, समर द्रूमि तेहि जीत न कोई। यानी, इसका पति अमर और अजेय होगा। इसी प्रकार हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती का हाथ नारद जी को दिखाया, तो उत्तर मिला कि इसके पति वैरागी, द्रिक्षा मांगने वाले, अनिकेतन, सर्पो की माला धारण करने वाले होंगे। ये सब गुण द्रगवान शंकर में हैं। ज्योतिष के नव ग्रह और रेखा शास्त्र के पर्वत, ज्योतिष के घर या द्राव और हस्त की रेखाएं आपस में संबंधित हैं। हथेली में तर्जनी के नीचे बृहस्पति का पर्वत है, मध्यमा के नीचे शनि का पर्वत, अनामिका के नीचे सर्यू का पर्वत, कनिष्ठिका के नीचे बुध का पर्वत तथा अंगूठे से मिला हुआ, हथेली के ऊपरी द्राग में शुक्र का पर्वत है। मंगल के दो पर्वत हैं- ऊपर का तथा नीचे वाला। मंगल (ऊपर वाला) का पर्वत अंगठूे के नीच,े बृहस्पति पर्वत से लगा हअु ा तथा मगं ल (नीचे वाला ) पर्वत बुध पर्वत से लगा हुआ, मंगल (ऊपर वाला) के ठीक सामने हथेली के निचले द्राग में है। ऐसा माना जाता है कि ऊपर वाले में मेष राशि और नीचे वाले में वृश्चिक राशि के स्थान हैं। चंद्रमा का पर्वत हथेली के बायीं तरफ, शुक्र पर्वत की दूसरी ओर, मणिबंध से लगा हुआ है। मंगल (नीचे वाले) के ऊपर की ओर, हृदय रेखा से मिला हुआ, हथेली के बीच में राहु (डै्रगन हेड) है। शुक्र पर्वत के नीचे, हथेली के बीच में, द्राग्य रेखा के उद्गम के पास, केतु (डै्रगन टेल ) होता है। का पर्वत है, मध्यमा के नीचे शनि का पर्वत, अनामिका के नीचे सर्यू का पर्वत, कनिष्ठिका के नीचे बुध का पर्वत तथा अंगूठे से मिला हुआ, हथेली के ऊपरी द्राग में शुक्र का पर्वत है। मंगल के दो पर्वत हैं- ऊपर का तथा नीचे वाला। मंगल (ऊपर वाला) का पर्वत अंगठूे के नीच,े बृहस्पति पर्वत से लगा हअु ा तथा मगं ल (नीचे वाला ) पर्वत बुध पर्वत से लगा हुआ, मंगल (ऊपर वाला) के ठीक सामने हथेली के निचले द्राग में है। ऐसा माना जाता है कि ऊपर वाले में मेष राशि और नीचे वाले में वृश्चिक राशि के स्थान हैं। चंद्रमा का पर्वत हथेली के बायीं तरफ, शुक्र पर्वत की दूसरी ओर, मणिबंध से लगा हुआ है। मंगल (नीचे वाले) के ऊपर की ओर, हृदय रेखा से मिला हुआ, हथेली के बीच में राहु (डै्रगन हेड) है। शुक्र पर्वत के नीचे, हथेली के बीच में, द्राग्य रेखा के उद्गम के पास, केतु (डै्रगन टेल ) होता है। जीवन रेखा बृहस्पति पर्वत के पास से निकल कर शुक्र पर्वत के नीचे से होती हुई, मणिबंध तक जाती है। इसी रखाो के ऊपरी द्राग में मगंल पर्वत (ऊपर वाले) के निचले द्राग में, लंबाई में कम, समानातं र मगंल रखाो हातेी है इन दानोें रेखाओं से अष्टम द्राव, यानी उम्र का पता लगता हैं। यह रेखा सूर्य पर्वत पर होती है तथा ज्यादातर हृदय रेखा तक जाती है। इससे परीक्षाओं में सफलता का बोध होता है; यानी पंचम स्थान का ज्ञान होता है। यह रेखा जीवन रेखा से निकल कर उसके निचले भाग से, मस्तिष्क तथा हृदय रखाोओं को काटती हुई, शनि पर्वत पर, मध्यमा तक जाती है। यही ज्योतिष में नवम द्राव है। यह रेखा बुध पर्वत पर हाते ी है तथा हृदय रेखा तक जाती हैं। इससे कुंडली में प्रथम द्राव को जानना चाहिए। यह रेखा बुध पर्वत पर आरै स्वास्थ्य रखे ाा से आड़ी, हथेली के निचले द्राग में है इससे कुंडली के सप्तम द्राव का पता लगता है। यह शत्रुओं तथा बीमारियों से होने वाली तकलीफों का द्योतक है। यही कुंडली का छठा स्थान है। जीवन रेखा, हृदय रेखा तथा मस्तिष्क रेखाओं के बीच में जो त्रिकोण बनते हैं, उनसे मकानों का पता लगता है। यही कुंडली में चौथा स्थान है। यह जीवन रेखा के अंत में, ऊपरी तरफ, मणिबंध के करीब से निकल कर, मछली की तरह होती है। इससे धन का पता लगता है। यह दूसरा स्थान है। शुक्र पर्वत पर जीवन रेखा के ऊपरी द्रागमे ं जितनी आड़ी रेखाएं हैं, उनसे भाई-बहनो ं का पता लगता है यह कुंडली का तीसरा स्थान है। चंद्र पर्वत के नीचे, हथेली के बायें द्राग में आड़ी रेखाएं ह,ैं जिनसे संतान का पता लगता है। यह कुंडली का पंचम स्थान है। यह रेखा चदं्र पर्वत के ऊपरी द्राग में मस्तिष्क तथा जीवन रेखाओं के मध्य में होती है। इससे आय का पता लगता है। यही ग्यारहवां स्थान है। उंगलियों को साधारण हालत में रखते हुए, उनके मध्य में जो रिक्त स्थान रहते हैं, वही धन का खर्चा बताते हैं। जिन व्यक्तियों की उगं लियों के बीच मे कोई रिक्त स्थान नही होता, वे कंजूस होते हैं तथा धन एकत्रित करते हैं यही कंडु ली का बारहवां स्थान है। जातक इंजीनियर कब बनेगा, इसका पता लगाने के लिए उंगलियों की बनावट, पवर्तों की बनावट, हथेली की बनावट, द्राग्य रेखा से निकल कर पर्वतों की आरे जाने वाली रखाोआ,ें मस्तिष्क रखाो से निकल कर पर्वतों की ओर जाने वाली रेखाओं आदि से अध्ययन किया जाता हैं। उसके लिए दबा हुआ शनि पर्वत हो, द्राग्य रेखा यहां आवे तथा बुध पर्वत पर शादी की रेखा से आड़ी छोटी-छोटी तीन-चार रेखाएं होती हैं। बृहस्पति पर्वत काफी उठा हुआ हो, उस पर ग का निशान हो, तो जातक धर्मोपदेशक होता है। यदि कनिष्ठिका अनामिका से जरा ही छोटी रह जाए तथा बुध पर्वत पर शादी की रेखा से आड़ी तीन-चार छोटी-छोटी रेखाएं हों, तो जातक डाक्टर हाते ा है। यदि मगंल पवर्त अच्छा हो, मंगल रेखा साफ-सुथरी हो, तो वह शल्य चिकित्सक होता है। मणिबंध से नीचे कलाई पर मां-बाप से संबद्ध रेखाएं होती हैं, जिनसें इनका बोध होना चाहिए। इन जानकारियों के लिए कुंडली में दशम भाव देखा जाता है। यदि बृहस्पति का पर्वत उठा हुआ हो, तो वह स्वगृही होता है। उस पर ग भी हो, तो वह और द्री बली हो जाता हैं। पर्वत यदि दबा हुआ है, तो वह नीच, अस्तगत अथवा शत्रुक्षेत्री होता है। यदि शनि का पर्वत दबा हुआ है, तो वह स्वगृही, या उच्च का हाते ा है; यदि उछला हुआ हो, तो नीच का होता हैं। सूर्य पर्वत साधारण तौर पर उठा हुआ हो, तो वह स्वगृही तथा उच्च का होता है। यदि इस पर ग आदि के निशान हों, तो वह बहुत कमजोर होता है। ठीक ऐसी ही दशा बुध के पर्वत की होती है। चंद्र और शुक्र के पर्वत उठे हुए हां,े ता े उच्च या स्वगृही होते हैं लेकिन दबे हुए कमजोर होते हैं। इन पर यदि असाधारण निशान हों, तो बहुत कमजोर मानने चाहिएं। जीवन रेखा पूर्ण हो, कहीं द्री कटी-फटी न हो, कोई ग आदि का निशान न हो, तो अस्सी वर्ष की आयु होती है। इसके साथ समानांतर मंगल रेखा भी साफ-सुथरी हो, तो सौ वर्ष की आयु होती है। जीवन रेखा पर गए गालो आदि के निशान हों तो वे दघ्ुार्ट ना के द्याते क हाते हैं रखाो के दानोें तरफ धब्बे हों, तो वे उम्र के साथ-साथ, बीमारियों के द्री द्योतक हैं। मंगल रेखा प्रबल हो, तो ऐसा व्यक्ति शाप अथवा आशीर्वाद देने में सक्षम होता है। जीवन रेखा तथा मस्तिष्क रेखाएं उद्गम स्थान पर जुड़ी हुई न हों, यानी उनमें दूरी हो, तो दांपत्य जीवन अंशातिमय होता है। हृदय रेखा हृदय की सूचक है। यदि यह रेखा न हो, अथवा कटी-फटी हो, लहरदार हो, तो वह हृदयहीनता को दिखाती है। जातक कातिल तक हो सकता हैं। जिसकी मस्तिष्क रेखा मध्यमा तथा तर्जनी के बीच तक चली जाए, उसके हृदय की घड़कन आसानी से रुकती नहीं है तथा पूर्ण आयु सौ वर्ष तक हो सकती है। मस्तिष्क रखाो बुद्धि एवं ज्ञान की प्रतीक है। यदि रेखा साफ-सुथरी हो, तो प्रखर बुद्धि होनी चाहिए, टूटी-फूटी कटी हुई हो, असाधारण निशान हों, तो बुद्धि की कमी होती है तथा ऐसे जातक शारीरिक परिश्रम करने वाले हो सकते हैं। यदि यह रेखा चंद्र पर्वत से निकले, अथवा वहां से निकल कर सहायक रेखा इसमें मिले, तो विदेश गमन होता है। शादी की रेखा के समानांतर जितनी रखाोए ं हातेी ह,ैं उतनी ही शादिया ं हातेी ह,ैं जसैे मीन, धनु राशि का शनि सप्तम द्राव में हा।े यदि एक ही स्पष्ट, बलवान, साफ-सुथरी रेखा हो, तो केवल एक ही शादी होती है। बृहस्पति पर्वत, या उसके नीचे से निकल कर काई रख ाा, धनष्ुा का आकार बनाती हुई, सूर्य पर्वत पर पहुंचे, तो ऐसे व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है। सूर्य रेखा जहां-जहां कटी हो, या उस पर ग हो, या कोई और रेखा उसे काटे, तो उतनी ही परीक्षाओं में असफलता मिलती है। यह रेखा जितनी गहरी, मोटी, स्पष्ट होती है, उतना ही शिक्षा का लाभ मिलता है और जितनी पतली, कम दिखाई देने वाली होती है, तो योग्यता काम नहीं आती। जहां-जहां यह माडे ़ लतेी है, वहीं काम में तबदीली आती है। मच्छ रेखा से निकल कर केतु क्षेत्र तक जाने वाली रेखा साफ-सुथरी हो, तो उसे उच्च पद की प्राप्ति होती है, जैसे किसी के दशम में स्वगृही या उच्च का ग्रह मौजूद हो। स्वास्थ्य रेखा स्पष्ट, मोटी, बिना कटी-फटी हो, तो मनुष्य नीरोग होता है, अन्यथा बीमारी लगती है। यदि बुध पर्वत पर कई छोटी-छोटी समानांतर रेखाएं हों, तो स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा। स्वास्थ्य रेखा हृदय रेखा को काट कर आगे जाए तो, भी स्वास्थ्य कष्टदायक होता है। द्राग्य रेखा का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है। यह रेखा जीवन रेखा के पास से निकल कर, मस्तिष्क आरै हृदय रखाोओं को काटती हुई शनि पर्वत पर जाती है। मस्तिष्क रेखा तक पैंतीस साल, हृदय रेखा तक पचपन साल, हृदय रेखा से अंत तक अवकाश का समय होता हैं। जहां-जहां यह रेखा नहीं होती, वहां भाग्य साथ नहीं देता। किसी-किसी हाथ में इस रेखा के समानांतर, ऊपर की तरफ, सहायक द्राग्य रेखा भी होती है। ऐसे लोग दो या दो से अधिक काम करते हैं कडुंली में भाग्य स्थान में बृहस्पति, शुक्र, बुध आदि कई शुभ ग्रह हा,ें तो यही स्थिति होती है। जिस क्षेत्र में मोटी, चमकदार रेखा हो, वहीं भाग्य विशेष रूप से साथ देता हैं, जैसे भाग्येश की दशा चल रही हो। शनि पर्वत पर पहुंचने से पहले द्राग्य रेखा दो हिस्सों में बंट जाए, एक शनि पर्वत पर जाए तथा दूसरा बृहस्पति पर्वत पर जाए, तो व्यक्ति अत्यंत द्राग्यशाली होता है। इस रेखा को काटने वाली आड़ी या तिरछी रेखाएं द्राग्य में बाधक बनती हैं, जैसे नवम स्थान मं े शनि, राह,ु कते ु हो अगर यह रखाो अंत में तीन रेखाओं में बंट जाए और एक सूर्य पर्वत की ओर, दूसरी शनि पर्वत की ओर और तीसरी बृहस्पति की ओर जाए, तो ऐसा व्यक्ति मिट्टी छूने पर सोना बनता है। यहां रेखा शनि पर्वत को पार कर के आगे उंगली पर चढ़ जाए, तो दुर्घटना से मृत्यु होती है। उंगलियों के अंत में या तो शंख हागो अथवा चक्र। चक्र का होना शुभ माना जाता हैं; खास तौर से अनामिका पर। शंख बेकार होते हैं। जिसकी दसों उंगलियों पर चक्र हो ऐसा व्यक्ति रणभूिम से अवश्य जिंदा लौटता हैं। उसे या तो गोली लगती नहीं और यदि लगगेी द्री, तो केवल उसे घायल करेगी।. 6)हस्तरेखाओं में छिपा करोड़पति बनने का राज . हस्तरेखाओं में छिपा करोड़पति बनने का राज भारती आनंद हाथ की रेखाएं निश्चित करती है कि लक्ष्मी या संपदा के मामले में आप कितने भाग्यशाली हैं। ईश्वर ने हस्तरेखाओं के माध्यम से मानव के भाग्य को संजोया है। यह सभी की अलग-अलग किस्मत है कि किसको क्या मिला। आपकी हस्तरेखाओं में अथाह धन-संपत्ति मिलने के योग हैं अथवा नहीं। आइये, इस बारे में विस्तार से चर्चा करें। यदि हाथ में भाग्य रेखा एक से अधिक है। गुरु, सूर्य अथवा शनि ग्रह उत्तम हैं तो आप एक से अधिक कारोबार कर सकते हैं और इसके विपरीत यदि दूसरी भाग्यरेखा खंडित हो तो इससे भारी नुकसान भी हो सकता है। आपका हाथ भारी हो, भाग्य रेखा मणिबंद्ध से लेकर शनि पर्वत तक जाती हो, सभी ग्रह उन्नत हो या जीवन रेखा से शनि रेखाएं निकलती हों, तो आप बहुत बड़ी संपत्ति के मालिक बन सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यदि शनि पर्वत पर कट, फट हो और यह ग्रह हाथ में दबा हो तो आपके पास आई हुई लक्ष्मी भी चली जाती है। मोटी से पतली होती भाग्य रेखा और जीवन रेखा से दूर हो तो 25 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति भरपूर सुख और वैभव प्राप्त करता है। लेकिन यदि हृदय रेखा टूट जाए या उसकी एक मोटी शाखा मस्तिष्क रेखा पर आ जाए तो बनी बनाई संपत्ति भी नष्ट हो जाती है। हाथ में यदि जीवन रेखा गोल हो, शुक्र पर तिल हो और अंगुलिया सीधी हों अथवा आधार बराबर हों तो मनुष्य के भाग्य में निश्चित रूप से अथाह धन-संपत्ति का मालिक बनना तय होता है। लेकिन यदि गुरु, बुध, शुक्र या चंद्र ग्रह में से किसी एक ग्रह की भी स्थिति खराब हो जाए तो आए दिन आपको धन संबंधी परेशानियों से जूझना पड़ सकता है। इसके विपरीत यदि हाथ में अंगुलियां लंबी, हाथ भारी एवं विशेष भाग्य रेखा हो और शनि एवं बुध ग्रह उत्तम हों तो आकस्मिक धन लाभ के अवसर मिलते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि यदि हाथ सखत हो और ग्रहों में दोष आ जाए तो मनुष्य अपने जीवन की शीर्ष ऊंचाईयों को छूते-छूते रह जाता है। यदि भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर हो, चंद्र पर्वत पर ज्ञान रेखा मिले एवं शनि ग्रह उन्नत हो तो मनुष्य को देश-विदेश दोनों ही स्थानों से लाभ एवं धन अर्जन की स्थिति बनती है। लेकिन यदि चंद्र पर्वत पर जाल आ जाए तो मनुष्य की कमाए हुए धन एवं सपंत्ति को धोखे द्वारा जब्त करने की आशंका भी बन जाती है। इस तरह न जाने हमारे हाथ में कितने ही ऐसे लक्षण और भी हैं जिनसे यह पता चलता है कि यह व्यक्ति करोड़पति बन सकता है अथवा नहीं। साथ ही यह भी पता चलता है कि व्यक्ति के हाथ में रेखाओं से संबंधित कुछ दोष भी हैं, जिनके चलते उक्त व्यक्ति अथाह धन-संपत्ति का मालिक नहीं बन पा रहा। ऐसे दोषों से मुक्ति पाकर मानव अपने जीवन में आने वाले कष्टों से बच सकता है। पारे का शिवलिंग एवं श्रीयंत्र स्थापित करके, प्रतिदिन शिव रुद्राष्टक का पाठ विधिवत् करने से एवं लक्ष्मी के मंत्र का नित्य प्रति जप करने से लक्ष्मी व्यक्ति का साथ देना शुरू कर देती है।. 7)अंक ज्योतिष एवं हस्तरेखा. अंक ज्योतिष व हस्त रेखा डॉ. सर्वोत्तम दीक्षित वैसे तो अंक ज्योतिष और हस्तरेखा ज्योतिष की दो एक दम अलग विधाएं हैं लेकिन दोनों के संगम बिंदु भी हैं जो एक दूसरे के पूरक हैं। कैसे, आइए, जानें इस लेख से। अंक ज्योतिष से यह बताया जा सकता है कि आने वाला समय लाभदायक है या कष्टदायक तथा कौन-कौन से वर्ष महत्वपूर्ण रहेंगे। भविष्य फल कथन में हस्त-रेखा विज्ञान तथा अंक ज्योतिष एक दूसरे के लिये सहायक हो सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति हमें अपना हाथ दिखाये और उस े अपना जन्म दिनाकं भी ज्ञात हो तो दोनों की सहायता से विशेष नतीजे पर पहुंचा जा सकता है। हस्त रेखा विशेषज्ञ ‘कीरो’ ने अपनी पुस्तक ‘लैंग्वेज ऑफ हैंड’ के पृष्ठ 184 व 188 पर लिखा है कि आयु के किस वर्ष में विशेष घटना होगी। यह निश्चय करने के लिये वह (कीरो) आयु को 7-7 वर्ष के भागों में बांटते थे। प्रति सातवें वर्ष में, जीवन में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन होता है। ‘कीरो’ ने लिखा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार करने से भी पता चला कि सात-सात वर्ष का समय विेशेष परिवर्तन उत्पन्न करने वाला होता है। कीरो के मतानुसार अनादिकाल से पृथ्वी के समस्त देशों में ‘सात’ की संखया का बहुत महत्व रहा है। कीरो के मतानुसार जन्म से शुरू करके पहले सात वर्ष के बाद, दूसरे सात वर्ष के समय को छोड़कर तीसरे, 5 वे, 7वे व 9 वे भाग में समानता होती है। इसी प्रकार जीवन के चौथे, छठे, 8वे, 10वे व 12वां भाग एक समान होते हैं। उदाहरण के लिये यदि एक बालक अपने 7वें वर्ष में बीमार व कमजोर रहा है तो वह अपने जीवन के 21 वें वर्ष में भी बीमार और कमजोर रहेगा। इसके विपरीत यदि कोई बालक बचपन में बीमार था लेकिन सातवें वर्ष से उसका स्वास्थ्य अच्छा रहने लगा है और यदि वह आपके पास बीस वर्ष की आयु में अपना हाथ दिखाकर पूछता है कि उसका स्वास्थ्य कब ठीक होगा? तो आप कह सकते हैं कि 21 वें वर्ष से आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। उपरोक्त चित्र में जीवन व भाग्य रेखा को सात-सात वर्ष के खंड में बांटा गया है। कीरो के मतानुसार यह दर्शाता है कि युवावस्था के जीवन को दो प्रधान भागो में बांटना चाहे तो पहला खंड 21 वर्ष की अवस्था से 35 वर्ष की अवस्था तक रहेगा। जहां भाग्य रेखा शीर्ष रेखा को काटती है वहां से दूसरा खंड प्रारंभ होकर 56 वर्ष पर समाप्त होता है। भाग्य रेखा व जीवन रेखा को सात-सात वर्ष के खंडो में बांट कर यह बताया गया है कि किस समय भाग्य की स्थिति कैसी रहेगी। हाथ की रेखाओं में कौन सी रेखा से कौन सा वर्ष समझना चाहिये, इसका ‘अंक ज्योतिष‘ से कैसे तालमेल बिठाया जा सकता है, अब इसकी चर्चा करेंगे। उदाहरण के लिये एक मनुष्य आप के पास आता है। उस व्यक्ति के हाथ के निरीक्षण के उपरांत आप इस नतीजे पर पहुंचे कि आयु के 39 वें व 41 वें वर्ष के पास जीवन रेखा पर अशुभ चिन्ह है और भाग्य रेखा भी लगभग इसी अवस्था पर कमजोर हो रही है। इस व्यक्ति की वर्तमान आयु 37 वर्ष है और वह 26वें वर्ष में अधिक बीमार रहा था और वर्ष भर उसका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहा किंतु 28वें वर्ष से उसका स्वास्थ्य अच्छा रहने लगा था। आप विचार करके अगर 26 में 14 वर्ष जोड़ेगे तो कह सकते हैं कि वह व्यक्ति 40 वें वर्ष में अधिक बीमार रहेगा। तदुपरांत 54 वें वर्ष में भी बीमारी के असर रहेंगे। जब हस्त रेखा से हम किसी निर्णय पर पहुंचे और हमें यह निश्चय करना हो कि किस वर्ष में यह घटना होगी तो उसके लिये हम अंक ज्योतिष का सहारा लेकर समय को सुनिश्चित कर सकते हैं। प्रथम महायुद्ध के समय लार्ड किचनर भारत के प्रधान सेनापति थे। इनकी हस्त रेखा से कीरो ने बताया कि 66 वर्ष की आयु में वह समुद्र में डूब कर मरेंगे। हथेली देखकर यह पता चलता था कि 66 वर्ष की आयु में यात्रा रेखा द्वारा भाग्य रेखा और अभ्युदय रेखा खंडित हो रही थी। लार्ड किचनर के जीवन की मुखय घटनायें सन् 1896, 1897, 1898, 1914, 1915 व 1916 में घटित हुई। इनसे कीरो ने निष्कर्ष निकाला कि जिन वर्षों का जोड़ 6, 7 या 8 होता है वे वर्ष लार्ड किचनर के जीवन में विशेष महत्व के थे। इस कारण 66 वर्ष की अवस्था सन् 1916 में पूरी होने व आयु के वर्ष में 6 का अंक दो बार आने से उनके जीवन में विशेष घटना घटी। कीरो की इस भविष्यवाणी का आधार अंक ज्योतिष था। उदाहरण के लिये एक स्त्री का जन्म दिनांक 20-8-1973 है। इसके अनुसार उसका मूलांक 2+0 = 2 अंक हुआ व भाग्यांक 2+0+8+1+9+7+3 = 30 = 3+0 = 3 अंक हुआ। बहुत से जातकों पर भाग्यांक के बजाय मूलांक का विशेष प्रभाव होता है। इस स्त्री की हस्त रेखा देखकर उससे पूछा गया कि आप का विवाह किस अवस्था में हुआ तो उसने उत्तर दिया 22वें वर्ष में। 22 वें वर्ष में 2 अंक दो बार आ रहा है। उसे बताया गया कि 29 वर्ष में उसे पुत्र प्राप्त हुआ होगा। यह भविष्य कथन अक्षरशः सत्य निकला। इसका थोड़ा-थोड़ा इशारा हस्तरेखा में भी था। परंतु 29 वर्ष की जगह 28वां या 30वां वर्ष भी कहा जा सकता था। जीवन रेखा या भाग्य रेखा पर आयु का वर्ष निश्चित करना केवल दृष्टि के अंदाज पर निर्भर रहता है। परंतु अंक विद्या के प्रभाव से जिस जातक का जन्म 20 अगस्त को हुआ है तो उसके लिये 20 वां, 29वां 38वां वर्ष महत्वपूर्ण होगा। न कि 28वां या 30वां वर्ष। इस प्रकार अंक ज्योतिष व हस्तरेखा विज्ञान के ताल-मेल से फलादेश का वर्ष निश्चित करना आसान हो जाता है। 8)हस्तरेखा में सूर्य पर्वत . हस्तरेखा में सूर्य पर्वत डॉ. अशोक शर्मा, हथलेी में जो स्थान सबसे अधिक बली होता है वह ग्रह सर्वाधिक बली माना जाता है। अलग-अलग ग्रह के स्वतंत्र प्रभाव तो है ही एक से अधिक ग्रह के पर्वत यदि अच्छा उभार लिए हुए है तो संयुक्त प्रभाव भी पृथक रूप से फलकारी होते हैं। अनामिका अंगुली के मूल में सूर्य का स्थान होता है। सूर्य का उभार जितना अधिक होगा, प्रभाव भी उतना ही अधिक प्राप्त होता है। सूर्य पर्वत का उभार अच्छा हो तथा स्पष्ट और सरल सूर्य रखाो हो तो व्यक्ति श्रष्ेठ पशासक, सवो या पुलिसकर्मी, सफल उद्यागे पति हातो है। पर्वत अधिक उभार वाला हो तथा रेखा कटी या टूटी हुई हो तो व्यक्ति घमंडी, अभिमानी, स्वार्थी, क्रूर, कंजूस तथा अविवेकी होता है। यदि हथेली में सूर्य पर्वत शनि की ओर झुका या संयुक्त होता है तो व्यक्ति न्यायाधीश, पंच या सफल अधिवक्ता होता है। दूषित पर्वत की स्थिति में अपराधी, कुखयात अपराधी या बदनाम व्यक्तित्व वाला होता है। सूर्य पर्वत तथा बुध पर्वत के संयुक्त उभार की स्थिति में योग्यता, चतुराई तथा निर्णय शक्ति अधिक होती है। श्रेष्ठवक्ता सफल व्यापारी या उच्च स्थानों का प्रबंधक होता है। ऐसे व्यक्तियों की धन पा्रप्ति की महत्वाकाक्षां असीमित होती है। दूषित उभार या अव्यवस्थित रेखाएं धनाभाव की स्थिति बनाती है तथा व्यक्ति जीवन के उत्तरार्ध में अवसाद से पीड़ित हो सकता है। हथेली में सूर्य पर्वत के साथ यदि बृहस्पति का पर्व उन्नत है तो व्यक्ति विद्वान, ज्ञानवान, मेधावी और धार्मिक विचारों वाला होता है और यदि सूर्य तथा शुक्र पर्वत उभार वाले है तो विपरीत लिंग के प्रति शीघ्र व स्थायी प्रभाव डालने वाला, धनवान, परोपकारी, सफल प्रशासक, सौंदर्य और विलासिताप्रिय होता है तथा दूषित पर्वत से कामी, लाभेी, लम्पट तथा घमडंी आरै दश्ुचरित्र वाला हो जाता है। सूर्य पर्वत पर जाली हो तो गर्व करने वाला किंतु कुटिल स्वभाव वाला होता है तथा किसी पर भी विश्वास न करने वाला होता है। तारा का चिन्ह हो तो धनहानि कारक किंतु प्रसिद्धि, अप्रत्याशित रूप से प्राप्त होती है। गुणा का चिन्ह हो तो सट्टा या शयेर में धन का नाश हो सकता है। सूर्य पर्वत पर त्रिभुज हो तो उच्च पद की प्राप्ति, प्रतिष्ठा तथा प्रशासनिक लाभ होते हैं। सूर्य पर्वत पर बिंदु या वृत्त हो तो निश्चित रूप से सूर्योदय के पहले या बाद का जन्म समय तथा आंखों में विशेष परेशानी होती है। सूर्य पर्वत पर चौकड़ी हो तो सर्वत्र लाभ तथा सफलता की प्राप्ति होती है। त्रिशूलाकार चिन्ह यश, आनंद, विलासिता व सफलता प्रदान करता है। 9)हथेली में पाए जाने वाले चिन्ह और उनका प्रभाव. क्या आपने कभी जीवन में हर कार्य को करने के लिए आगे बढ़ने वाले अपने हा¬थों की हथेलियों को ध्यान से देखा! इनमें बने हुए त्रिभुज, वर्ग, वृत्त आदि चिह्नों में भविष्य की तस्वीर अंकित होती है, बस जरूरत है इन चिह्नों के महत्व को पहचानने की, इस आलेख में इन्हीं के फलों का विस्तृत वर्णन किया गया है… हस्तरेखा विज्ञान मे रेखाओं, पर्वतों, उंगलियों, अंगूठों, नाखूनों आदि के साथ-साथ चिह्नों का भी अपना अलग महत्व है। मात्र हस्त-चिह्न देख कर किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व, भाग्य या स्वास्थ्य संबंधी अनेक बातें मालूम हो सकती हैं। भ¬ारतीय मत के अनुसार हस्त चिह्नों से स्वभाव और सौभाग्य का पता चलता है। किंतु पाश्चात्य मतानुसार इनसे स्वास्थ्य संबंधी बातें मालूम होती हैं। हथेली में ऐसे चिह्न मुख्यतः आठ होते हैं। 1-त्रिभुज, 2. क्रास, 3. बिंदु, 4 वृत्त, 5. द्वीप, 6. वर्ग, 7. जाल, 8. नक्षत्र। त्रिभुज: हथेली में किसी स्थान पर तीन तरफ से आकर रेखाएं परस्पर मिलती हों तो त्रिभुज का आकार बनता है। यह त्रिभुज छोटा या बड़ा हो सकता है। ये त्रिभुज अलग-अलग स्थानों पर देखे जा सकते हैं। यहां अलग-अलग स्थानों पर पाए जाने वाले त्रिभुजों के प्रभाव का उल्लेख किया जा रहा है। बड़ा त्रिभुज व्यक्ति के विशाल हृदय का परिचायक है। यदि त्रिभुज का चिह्न स्वास्थ्य रेखा पर हो तो व्यक्ति का स्वास्थ्य उत्तम होता है। भाग्य रेखा पर त्रिभुज का चिह्न हो तो वह भाग्यहीन तथा असफल होता है। यदि चंद्र रेखा पर त्रिभुज का चिह्न हो, तो वह कई बार विदेश यात्राएं करता है तथा सफलता प्राप्त करता है। मस्तिष्क रेखा पर त्रिभुज का चिह्न हो तो व्यक्ति तीव्रबुद्धि तथा उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाला होता है। यदि किसी के शुक्र पर्वत पर त्रिभुज हो तो वह सरल और मधुर स्वभाव, रसिक मिजाज, शान-शौकत से रहने वाला तथा ऊंचे स्तर का व्यक्ति होता है। संकीर्ण और अस्पष्ट त्रिभुज व्यक्ति की संकीर्ण मनोवृत्ति को स्पष्ट करता है। यदि हृदय रेखा पर त्रिभुज का चिह्न हो तो व्यक्ति का भाग्योदय बुढ़ापे में होता है। यदि आयु रेखा पर त्रिभुज का चिह्न दिखाई दे तो व्यक्ति दीर्घायु होता है। क्रोस: क्रोस चिह्न केवल गुरु पर्वत पर ही शुभ माना गया है। शेष स्थान पर हानिकारक माना गया है। गुरु क्षेत्र पर क्रोस का चिह्न हो तो व्यक्ति का जीवन सुखमय होता है और वह कार्य सोच-समझ कर करने वाला होता है। यदि जीवन रेखा पर क्रोस का चिह्न हो तो आयु के उस भाग में वह मृत्यु-तुल्य कष्ट उठाता है। यदि भाग्य रेखा पर क्रोस हो तो व्यक्ति की उन्नति में बराबर बाधाएं बनी रहती हैं। यदि हृदय रेखा पर क्रोस हो तो वह हृदयाघात का मरीज होता है तथा बराबर कमजोर बना रहता है। यदि विवाह रेखा पर क्रोस का चिह्न दिखाई दे तो विवाह या तो नहीं होता या होता है तो उसका गृहस्थ जीवन अत्यंत दुखमय होता है। संतान रेखा पर क्राॅस का चिह्न संतान के अभाव का सूचक होता है। यदि मस्तिष्क रेखा पर क्राॅस का चिह्न हो तो वह जीवन भर मानसिक बीमारियों से परेशान रहता है तथा अंत में पागल हो जाता है। यात्रा रेखा पर यदि क्राॅस का चिह्न दिखाई दे तो यात्रा में उसकी आकस्मिक मृत्यु हो सकती है। केतु पर्वत पर क्राॅस का चिह्न इस बात का सूचक है कि वह व्यक्ति दुख में बड़ा हुआ है तथा उसकी शिक्षा भली प्रकार से नहीं हो सकी है। यदि राहु पर्वत पर क्राॅस का चिह्न दिखाई दे तो उसकी युवावस्था दुखमय व्यतीत होती है तथा वह चेचक के रोग से पीड़ित रहता है। बिंदु या तिल हथेली में बिंदुओं का प्रभाव भी महत्वपूर्ण देखा गया है। सफेद बिंदु हमेशा उन्नतिकारक माने जाते हैं। लाल रंग के बिंदु व्यक्ति की बीमारियों के सूचक होते हैं। पीले रंग के बिंदु शरीर में रक्ताल्पता के द्योतक होते हैं। यदि बिंदु काले रंग के हांे तो लक्ष्मीदायक होते हैं। यदि सूर्य पर्वत पर काला तिल हो तो व्यक्ति प्रतिष्ठित नहीं होता है तथा समाज में निंदनीय कार्य करने को बाध्य होता है। यदि चंद्र क्षेत्र पर काला तिल हो तो व्यक्ति का विवाह विलंब से होता है। जीवन में उसे एक से अधिक बार जलाघात से भी पीड़ित होना पड़ता है। यदि यात्रा रेखा पर तिल हो तो यात्रा में ही उस व्यक्ति की मृत्यु होती है। यदि मध्यमा पर तिल हो तो उसके भाग्य में बराबर बाधा बनी रहती है तथा उन्नति के लिए उसे बराबर भटकना पड़ता है। यदि तिल हथेली में हो तथा मुट्ठी बंद करने पर मुट्ठी में रहता हो तो व्यक्ति के पास धन की कमी नहीं रहती। मस्तिष्क रेखा पर काला तिल हो तो सिर पर गंभीर चोट लगती है तथा मस्तिष्क से संबंधित रोग बराबर बने रहते हैं। केतु क्षेत्र पर काला तिल व्यक्ति के बचपन को दुखमय बनाता है। जीवन रेखा पर यदि काला तिल हो तो व्यक्ति लंबे समय तक टी. बी. रोग से ग्रस्त रहता है। वृत्त: हथेली में जो छोटे-छोटे गोल घेरे पाए जाते हैं, उन्हें वृत्त या सूर्य या कन्दुक कहते हैं। यदि जीवन रेखा पर वृत्त का चिह्न हो तो आंखंे कमजोर होती हैं। विवाह रेखा पर द्वीप का चिह्न हो तो मृत्युतुल्य संकट का सामना करना पड़ता है। भाग्य रेखा पर वृत्त का चिह्न व्यक्ति को भाग्यहीन बनाता है। वह जीवन भर गरीब रहता है। यदि शनि पर्वत पर वृत्त का चिह्न हो तो व्यक्ति को अनायास धन प्राप्त होता है। बुध पर्वत पर वृत्त का चिह्न व्यक्ति को कारोबार में भारी सफलता प्रदान करता है। ऐसे व्यक्ति का जीवन ऐश्वर्यपूर्ण होता है। यदि हथेली में गुरु पर्वत पर वृत्त का चिह्न हो तो व्यक्ति प्रभावशाली होता है तथा अपने जीवन में भारी सफलता प्राप्त करता है। यदि चंद्र पर्वत पर वृत्त का चिह्न हो तो स्वास्थ्य कमजोर रहता है। द्वीप: हथेली में जिस स्थान पर हो उसे कमजोर करता है। स्वास्थ्य रेखा पर द्वीप का चिह्न हो, तो कई प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। मस्तिष्क रेखा पर द्वीप हो, तो व्यक्ति मानसिक रोगों से पीड़ित रहता है। शुक्र पर्वत पर द्वीप का चिह्न पारवारिक जीवन में घातक माना गया है। व्यक्ति को जीवन भर निराशा का सामना करना पड़ता है। हृदय रेखा पर यदि द्वीप का चिह्न हो तो व्यक्ति हृदयाघात से पीड़ित होता है। चंद्र पर्वत पर द्वीप का चिह्न व्यक्ति के दिमाग को कुंद बना देता है। वर्ग: चार भुजाओं से घिरे हुए स्थान या क्षेत्र को वर्ग कहते हैं। यदि सूर्य पर्वत पर वर्ग का चिह्न हो, तो व्यक्ति उच्च सफलता प्राप्त करता रहता है तथा धन, मान, यश, पद, प्रतिष्ठा की दृष्टि से अत्यंत उच्च स्तरीय जीवन व्यतीत करता है। यदि शनि पर्वत पर वर्ग का चिह्न हो, तो व्यक्ति बार-बार मृत्यु के मुंह से आश्चर्यजनक रूप से बच जाता है। यदि भाग्य रेखा पर वर्ग का चिह्न हो, तो व्यक्ति का भाग्योदय छोटी अवस्था में ही हो जाता है। यदि जीवन रेखा पर वर्ग का चिह्न हो, तो व्यक्ति दीर्घायु होता है। यदि हृदय रेखा पर वर्ग का चिह्न हो, तो उसका गृहस्थ जीवन सुखमय होता है तथा वह हृदय से परोपकारी एवं दयालु होता है। यात्रा रेखा पर वर्ग का चिह्न हो तो व्यक्ति जीवन में बहुत यात्राएं करता है तथा यात्राओं में विशेष धन प्राप्त करता है। यदि स्वास्थ्य रेखा पर वर्ग हो तो व्यक्ति का व्यक्तित्व आकर्षक और जीवन भर स्वास्थ्य अनुकूल बना रहता है। नोट: वर्ग का चिह्न हथेली में कहीं पर भी हो, पूर्णतः शुभ माना जाता है। जाल: खड़ी रेखाओं पर आड़ी रेखाएं होने से एक तरह का जाल सा बन जाता है। जाल का निशान हानिकारक माना जाता है। यदि मणिबंध रेखा पर जाल का चिह्न हो तो व्यक्ति का पतन होता है। यदि मंगल पर्वत पर जाल हो तो वह जीवन भर मानसिक दृष्टि से अशांत रहता है। यदि राहु पर्वत पर जाल का चिह्न हो तो व्यक्ति दुर्भाग्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य होता है। यदि केतु पर्वत पर जाल हो तो वह जीवन भर बीमारियों से ग्रस्त रहता है। यदि शनि पर्वत पर जाल का निशान हो तो व्यक्ति आलसी होता है। तथा उसके जीवन में दरिद्रता बनी रहती है। यदि गुरु क्षेत्र पर जाल का चिह्न हो तो व्यक्ति क्रूर, निर्दयी, स्वार्थी तथा घमंडी होता है। नक्षत्र या तारा: हथेली में सूक्ष्मतापूर्वक देखने से तारे या नक्षत्र दिखाई देते हैं। तर्जनी पर नक्षत्र का चिह्न सभी प्रकार से शुभ माना गया है। यदि मंगल रेखा पर नक्षत्र का चिह्न हो, तो व्यक्ति की हत्या होती है। यदि सूर्य रेखा पर नक्षत्र का चिह्न हो, तो व्यक्ति को व्यापार में सफलता मिलती है। यदि राहु पर्वत पर नक्षत्र का चिह्न हो, तो भाग्य हमेशा साथ देता है तथा जीवन में पूर्ण यश और सम्मान मिलता है। यदि शनि पर्वत पर नक्षत्र या तारे का चिह्न हो तो व्यक्ति का भाग्योदय शीघ्र ही होता है। वह अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहता है तथा उसे मान-सम्मान मिलता है। यात्रा रेखा पर नक्षत्र का चिह्न होने से व्यक्ति की मृत्यु घर से दूर तीर्थ स्थान पर होती है। यदि अंगूठे पर नक्षत्र का चिह्न हो तो व्यक्ति परिश्रमी, सहनशील तथा सफल व्यक्तित्व का धनी होता है। 10) हस्त रेखाओं की रहस्यपूर्ण भाषा. हस्त रेखाओं की रहस्यपूर्ण भाषा भोला राम कपूर हस्त रेखाएं मानव के हाथों में प्रकृति द्वारा लिखित गूढ़ रहस्यों भरी वह भाषा है, जिसे विद्वान ही पढ़ कर समझ सकते हैं। हाथों और उंगलियों की बनावट भी मनुष्य के स्वभाव, आचार-विचारों का संकेत देती है। अंगूठे को मन-मस्तिष्क की भावनाओं का दर्पण कहा जा सकता है। पतला एवं नोकदार अंगूठा, जो पीछे की ओर मडु ़ रहा हा,े मनुष्य को गुस्सेबाज, जिद्दी तथा कद्री-कद्री हत्यारा द्री बना दतो है उन्नत बहृ स्पति पर्वत मनुष्य को दयालु, ईमानदार, धमर्श् ाील और समाज में सम्मानित व्यक्ति बनने की प्रेरणा देता है। साथ ही ऊर्ध्व मंगल के विकसित होने पर व्यक्ति स्वाद्रिमानी होता है। वह अपने एवं संबंधियों और मित्रों के सम्मान पर चोट किये जाने पर सीधा मुकाबला करता है आरै अपने साथियों के सम्मान की रक्षा करता है। यदि वर्गाकार हाथ हो, बृहस्पति और ऊर्ध्व मंगल पर्वत दोनों विकसित हां,े तो व्यक्ति सत्यवादी व ईमानदार हातो है एवं अपने सिद्धातांें और सम्मान के लिए अपार धन और संपत्ति को द्री ठोकर मारता है, परंतु अपने सम्मान और सच्चाई की रक्षा करता है। शनि पर्वत विकसित हो, साथ ही भाग्य रेखा सीधी शनि पर्वत पर आ कर रुके, तो मनुष्य लगन से अपने कार्य में जुटा रहता है और व्यापार तथा नौकरी में, धन एवं मजदूरी में किसी पक्रार की रियायत या छूट दसूरों को नहीं देता। जीवन के प्रत्येक कार्य को निजी लाद्र और हानि सोच कर करता है, अर्थात जिस कार्य से उस तत्काल या द्रविष्य में कोई आर्थिक लाद्र होने की संभावना न हो, उसे करता ही नहीं। वह केवल लाद्रकारी कामों में ही रुचि लतो है वगार्कार हाथों में यदि बहृ स्पति पवर्त विकसित हो, तो उस पर अक्सर स्वस्तिक का चिह्न देखने को मिलता है मनष्ुय के हाथ में स्वस्तिक का चिह्न जहां द्री हो, वह धर्म-कर्म की द्रावना और देव कृपा को दर्शाता है। साथ ही उसका जीवन साथी द्री उसके प्रित वफादार आरै इर्मानदार हातो है यह व्यक्ति अपनी आजीविका ईमानदारी से कमाता है। वह बेइमानी और रिश्वत के प्रलाद्रे न में नहीं पडत़ा। सूर्य रेखा का विकसित होना और सूर्य पर्वत पर पहुंचना, साथ ही यदि सूर्य पर्वत द्री विकसित हो, तो मनुष्य जीवन में मान-सम्मान प्राप्त करता है। जीवन में द्राग्य रखाो का पर्ण्ूा फल तद्री पा्रप्त हातो है, जब सूर्य पर्ण्ूा विकसित एवं निर्दाषे हो। सूर्य रेखा पर द्वीप का चिह्न होने पर उस व्यक्ति पर झूठा लांछन लगता है आरै नाकै री करने वाले लागों की तरक्की मं,े उसके साथियों द्वारा झूठी बरुाई करने के कारण, रुकावट आती है। यदि कोई रखाो सूर्य रखाो को काटती ह,ै तो उस आयु काल में उस व्यक्ति की साख आरै यश मं ें कमी आती है सर्यू रेखा पर उल्टा यू का चिह्न अथवा त्रिद्रुज का चिह्न व्यक्ति को सामाजिक और धार्मिक कार्यों की पर्रेणा दतो है शुक्र मुद्रिका रेखा कनिष्ठिका मूल से तर्जनी मूल तक धनुषाकार रूप में पायी जाती है यदि यह रेखा निर्दोष हो, तो व्यक्ति को सद्री द्रौतिक पदार्थ जीवन में उपलब्ध होते हैं, जैसे मकान, सुंदर स्त्री, धन, वाहन इत्यादि। परंतु रेखा के टूटे होने, या अन्य छोटी रेखाओं द्वारा काटे जाने पर व्यक्ति के द्रौतिक सुखों में रुकावट आती है ऐसा व्यक्ति द्रौतिक सुख की कल्पना अधिक करता है, परंतु यथार्थ में जीवन द्रर सद्री द्रौतिक सुखों को प्राप्त नहीं कर पाता। कई हाथों में त्रिशूल का चिह्न द्री पाया जाता है। हस्त रेखा पर त्रिशूल का चिह्न (प्रारंद्र में) हृदय एवं इच्छा शक्ति को बलवान बनाता है। ऐसे व्यक्ति का हृदय दुखाने वाले व्यक्ति, अर्थात शत्रु परश्े ाान रहते हैं इसका कारण है त्रिशलू का चिह्न शिव एवं शक्ति का प्रमुख अस्त्र है। यह चिह्न व्यक्ति की शत्रुओं से रक्षा करता है; साथ-साथ शत्रुओं को प्रताड़ित द्री करता है। द्राग्य रेखा पर त्रिशूल का चिह्न व्यक्ति की द्राग्यान्ेनति तथा काम-धधंे में सहायक हातो है एवं उसके द्राग्य की शत्रअुों से रक्षा कर के शत्रअुां ेको परशोन द्री रखता है। जीवन रखाो ऊर्ध्व मगंल पर्वत से शुरू हो कर, मणिबंध को छूती हुई, शुक्र पर्वत को घरे ती हुई, कलाई तक जाती है। जीवन रखाो से मुखयतः मनुष्य की आयु आरै जीवन की समस्याओ के बारे में जानकारी मिलती है यदि यह रखाो किसी स्थान पर टटूी हुई हो तो उस आयु समय में व्यक्ति पर विशषे सकंट आता है, जैसे मृत्यु अथवा मृत्यु समान कष्ट। परंतु यदि टूटी हुई रेखा के सामने द्राग्य या मंगल रेखा शुक्र पर्वत पर द्राग्य रेखा के समानांतर चल रही हो, तो व्यक्ति की मृत्यु नहीं हातेी है लेकिन उस पर मृत्यु समान कष्ट अवश्य आता है। अशुभ समय में व्यक्ति को उपाय, जैसे तुला दान(अनाज) औषधि दान, महामत्ृयजुं य मत्रं का जप आरै अनष्ुठान आदि उपाय करने चाहिएं। अष्टमेश एवं मारक ग्रहों की दशा-अंतर्दशा में ग्रह शांति द्री अवश्य करवानी चाहिए, ताकि व्यक्ति अकाल मृत्यु से मुक्त हो कर पूर्णायु को प्राप्त कर सके। निर्दोष विवाह रेखा जीवन में सुखी विवाहित जीवन प्रदान करती है। विवाह रेखा पर द्वीप अथवा क्रॉस का चिह्न विवाहित सुख को दुख में परिवर्तित कर देता है। यदि दोनों हाथों में दो विवाह रेखाएं समांतर चल रही हों, तो जीवन में दो विपरीत लिंगी, अर्थात यदि पुरुष के हाथ में ये रेखाएं हों, तो उसके जीवन में पत्नी के अलावा द्री दूसरी स्त्री होती है और यदि स्त्री के हाथ मं े ये रेखाए ं हां,े तो पति के अतिरिक्त द्री उसका दूसरा पुरुष मित्र अवश्य होता है। 11)उंगलियाँ और उँगलियों के बीच दूरी का फल . उंगलियों का सीधा संबंध मस्तिष्क से होता है। यदि उंगलियों में विशेष बोझ पड़ता है तो मस्तिष्क की धमनियां भी बोझल होने लगती है। उंगलिया देख कर व्यक्ति के स्वभाव के बारे में कुछ जानकारी हो सकती है। इसके लिये उंगलियों की लंबाई, मोटापन, पतलापन टेढ़ापन ध्यान से देखने पर उसके बारे में भविष्यवाणी किया जा सकता है। उंगलियां चार प्रकार की होती हैं। 1. तर्जनी: अंगूठे के साथ वाली ऊंगली। इसका स्वामी गुरु है। 2. मध्यमा: तर्जनी के साथ वाली दूसरी ऊंगली। इसका स्वामी शनि है। 3. अनामिका: तीसरी ऊंगली, इसका स्वामी सूर्य है। 4. कनिष्ठिका: चैथी और सबसे छोटी ऊंगली। इसका स्वामी बुध है। तर्जनी अधिकतर हाथों में यह ऊंगली अनामिका से छोटी होती है। यह व्यक्ति के अहं भाव, सम्मान पाने की ईच्छा बताती है। यदि यह ऊंगली अनामिका से बड़ी हो तो व्यक्ति उत्तरदायित्व वाले पदों पर काम करने वाला होता है। अधीनस्थ कर्मचारी से कड़ाई से काम लेने वाला तथा घंमंडी होता है। यदि यह सामान्य से छोटी हो तो व्यक्ति में कोई महत्वाकांक्षा नहीं होती। यदि यह अनामिका से छोटी हो तो व्यक्ति चालाक होता है। यदि यह ऊंगली लंबी हो और ऊपर से नुकीली हो तो व्यक्ति अंधविश्वासी, धर्म पर आस्था रखने वाला होता है। यदि तर्जनी और मध्यमा दोनों बराबर हों तो व्यक्ति पूरे संसार में प्रसिद्धि प्राप्त करता है। यदि यह ऊंगली अनामिका से लंबी हो और वर्गाकार हो तो ऐसे व्यक्ति सच्चरित्र तथा उदार होते हैं। मध्यमा ऊंगली यह ऊंगली तर्जनी और अनामिका से बड़ी होती है। परंतु लंबाई 1/4 इंच (6 एम. एम.) से बड़ी नहीं होनी चाहिए। यदि यह 1/4 इंच से बड़ी है तो सामान्यतः ऐसे व्यक्ति का जीवन दुखमय, अभाव एवं परेशानियों से व्यतीत होता है। मध्यमा ऊंगली तर्जनी से 1/2’’ या इससे बड़ी हो तो जातक निश्चय ही हत्यारा होता है। यदि मध्यमा ऊंगली लंबी हो तो जातक रोगी एवं कामी होता है। मध्यमा ऊंगली लंबी होने के साथ-साथ यदि गांठेदार और फूली हुई हो तो व्यक्ति स्वार्थी, चिंताओं से ग्रस्त रहने वाला होता है। यदि यह पहली ऊंगली तर्जनी या तीसरी ऊंगली अनामिका के बराबर हो तो इसे छोटी मध्यमा कहते हैं। सामान्य से छोटी मध्यमा वाले व्यक्ति में छिछोरापन होता है और सामान्य से लंबी मध्यमा ऊंगली वाला व्यक्ति सोसाइटी के मेल जोल से दूर रहता है। यदि मध्यमा ऊंगली लंबी हो और ऊदर का सिरा वर्गाकार हो तो व्यक्ति गंभीर स्वभाव वाला तथा उत्तरदायी पदों पर काम करने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति कला के क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त करते हैं। यदि मध्यमा ऊंगली लंबी तथा चपटी हो तथा मध्यमा ऊंगली के ऊपर का सिरा तर्जनी की तरफ झुका हुआ हो या मुड़ा हो तो ऐसे जातकों में जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास होता है। यदि मध्यमा ऊंगली के ऊपर का सिरा अनामिका की तरफ झुका हो तो व्यक्ति भाग्य पर भरोसा करने वाला तथा संगीत प्रेमी होता है। अनामिका ऊंगली यह मध्यमा से छोटी तथा तर्जनी से अपेक्षाकृत लंबी होती है। तर्जनी से बड़ी होने पर ऐसा व्यक्ति उन्नति करता है तथा उसमें दया, स्नेह, प्रेम आदि गुण जरूरत से ज्यादा होते हैं। यदि यह ऊंगली सामान्य से अधिक लंबी हो अर्थात तर्जनी से अधिक लंबी हो तो व्यक्ति का दिखावा आडंबर बन जाता है और जोखिम में रस लेने की उसकी ईच्छा बढ़ जाती है। यदि यह ऊंगली मध्यमा के बराबर पहुंच जाती है तो व्यक्ति पूरे स्वार्थी होते हैं तथा अपने स्वार्थ के लिये सामने वाले का अहित करने से नहीं चूकते। ये भाग्यवादी होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने धन का अधिकांश भाग जुआ सट्टा आदि में लगा देते हैं। यदि अनामिका का झुकाव कनिष्ठिका की ओर हो तो व्यापार में विशेष लाभ मिलता है। यदि झुकाव मध्यमा की ओर हो तो जातक चिंता ग्रस्त और आत्म केंद्रित होता है। वह जीवन में कुछ ऐसे कार्य कर जाता है जो समाज उसे याद रखता है। अनामिका तर्जनी के बराबर हो तो उस व्यक्ति को विशेष ख्याति की भूख बनी रहती है। यदि अनामिका ऊंगली मध्यमा के बराबर हो या उस से थोड़ी छोटी हो तो उसके जीवन में कई कार्य अचानक होते हैं और अंत में ऐसे व्यक्तियों को सफलता मिलती है। यदि अनामिका ऊंगली सीधी हो तो जातक को सम्मानित होने के योग, पारिवारिक संबंध अच्छे, लेखक, साहित्यकार आदि के रूप में प्रसिद्धि पाते हैं। कनिष्ठिका ऊंगली यह हाथ में सबसे छोटी ऊंगली होती है। यह ऊंगली व्यक्ति की वाक्पटुता और चातुर्य बताती है। यदि यह ऊंगली अनामिका के नाखून तक पहुंच जाये तो व्यक्ति जीवन में अत्यंत उच्चस्तरीय सफलता प्राप्त करता है। कनिष्ठिका ऊंगली जितनी अधिक लंबी होती है उतना ही शुभ होता है। यदि यह अनामिका के ऊपरी पोर के आधे भाग पर पहुंच जाये जो ऐसा व्यक्ति सचिव अथवा आई. ए. एस. अधिकारी तक होता है तथा जीवन का उत्तरार्द्ध सुखपूर्वक बीतता है। यदि यह ऊंगली साधारण से छोटी हो तो इनके जीवन में संघर्ष बहुत होता है। यदि यह टेढ़ी हो तो ऐसे व्यक्ति गुप्त रहस्य ढूंढ निकालते हैं। सामान्य से छोटी कनिष्ठिका वाले व्यक्तियों में हीनता की भावना होती है और ये अपनी बात खुलकर नहीं कह पाते। यदि यह ऊंगली सीधी हो तो व्यक्ति बहुत सीधा होता है और जीवन के दौड़ में पीछे रह जाता है। और यदि यह ऊंगली बहुत अधिक छोटी हो तो व्यक्ति बात के मर्म को बहुत शीघ्र समझ लेता है तथा तुरंत निर्णय लेने में समर्थ होता है। यदि उंगलियों के आगे सिरे नुकीले हों तो व्यक्ति बुद्धिमान, सूक्ष्म दृष्टि संपन्न तथा वाक्पटु होता है। यदि आगे का भाग वर्गाकार हो तो व्यक्ति बोलने की कला में निपुण होता है। यदि आगे का भाग चपटा हो तो व्यक्ति वैज्ञानिक, मशीनरी संबंधी कार्यों में विशेष रूचि रखने वाला होता है। यदि कनिष्ठिका ऊंगली अनामिका के बराबर हो तो ऐसे व्यक्ति ऊंचे स्तर के दार्शनिक तथा बुद्धिमान होते हैं। कनिष्ठिका ऊंगली मध्यमा के बराबर हो तो व्यक्ति अपने कार्यों से विश्वविख्यात होता है। साहित्यकार, कथावाचक, बड़े-बड़े व्यापारी, राजनीतिज्ञों की यह ऊंगली टेढ़ी होती है। उंगलियों के बीच की दूरी तर्जनी और मध्यमा के बीच में खाली जगह हो तो जातक अपने विचारों में स्वतंत्र होता है तथा अपनी बात को कहने में नहीं हिचकचाता। मध्यमा और अनामिका के बीच खाली जगह हो तो व्यक्ति लापरवाह और असभ्य होता है। अनामिका और कनिष्ठका के बीच खाली स्थान व्यक्ति को क्रूर और हत्यारा बनाता है। उंगलियों के (पर्व) पोरो का फल 1. तर्जनी ऊंगली का पहला पोर लंबा होने पर जातक आत्म विश्वासी होता है। दूसरा पोर बड़ा होने पर व्यक्ति उच्चाभिलाषी होता है। तीसरा पर्व (पोर) बड़ा होने पर जातक घमंडी और अभिमानी होता है। 2. मध्यमा ऊंगली का पहला पर्व (पोर) बड़ा होने पर व्यक्ति आत्म हत्या करता है। दूसरा पर्व बड़ा होने पर जातक व्यापार के क्षेत्र में मशीनों का व्यापार करता है और इसे लाभ मिलता है। तीसरा पर्व बड़ा होने पर व्यक्ति जरूरत से ज्यादा कंजूस एवं अपयश का भागी होता है। 3. अनामिका ऊंगली का पहला पर्व बड़ा होने पर जातक में कलात्मक रूचि होती है। दूसरा पर्व बड़ा होने पर जातक अपनी प्रतिभा के बल पर ऊंचाई तक पहुंचता है। अनामिका का तीसरा पर्व बड़ा होने पर (लंबा एवं चैड़ा हो) व्यक्ति राष्ट्रव्यापी सम्मान प्राप्त करता है। 4. कनिष्ठिका कनिष्ठिका ऊंगली का पहला पर्व बड़ा होने पर जातक वैज्ञानिक एवं खोजी प्रवृत्ति का होता है। दूसरा पोर बड़ा होने पर जातक परिश्रम के आधार पर व्यापारिक सफलता प्राप्त करता है। तीसरा पर्व बड़ा होने पर व्यक्ति चालाक, चतुर एवं झूठ बोलने में माहिर होता है। 12)हस्त रेखाओं पर सूक्ष्म चिह्नों का विवेचन. हस्त सामुद्रिक शास्त्र हमारे पूर्वजों की महान तथा वैज्ञानिक उपलब्धि है और यह बात ढृढ़तापूर्वक कही जा सकती है कि इस शास्त्र द्वारा भावी एवं भविष्य की घटनाओं का वर्णन सोलह आने सही किया जा सकता है। आवश्यकता है इसकी परीक्षा एकाग्रचित्त हो कर करने की। हथेली पर पाये जाने वाले सभी चिह्नों का महत्वपूर्ण स्थान है। यद्यपि भविष्य कथन की दृष्टि से हथेली पर बनने वाली रेखाएं, पर्वत, अंगुलियां, अंगुष्ठ और हाथ की त्वचा का रंग तथा हाथ की त्वचा का कोमल या कठोर होना आदि भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं, पर सूक्ष्म रेखाओं द्वारा निर्मित ये चिह्न भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। भारतीय हस्त सामुद्रिक शास्त्र की पद्धति के अनुसार हाथ की हथेली पर अनेक सूक्ष्म चिह्न बनते हं। अतः इनकी परीक्षा अत्यंत सावधानी से तथा एकाग्रचित्त हो कर करने से फल कथन में प्रामाणिकता और पूर्णता आ जाएगी। यह एक श्रमसाध्य कार्य तो है, परंतु असंभव नहीं। क्रास ;ग्द्ध जब दो सूक्ष्म रेखाएं आपस में एक दूसरे को काटें, तो क्राॅस का चिह्न बनता है। यह गणित के गुणा चिह्न की तरह होता है। यह चिह्न मुख्य रेखाओं के काटने से नहीं बनता, बल्कि दो अलग-अलग सूक्ष्म रेखाओं के काटने से बनता है। क्राॅस के चिह्न को हस्त रेखा शास्त्र में अशुभ चिह्न माना जाता है। यह चिह्न पर्वत, या क्षेत्र, अथवा रेखा पर बनेगा, तो उसके गुणों को न्यूनतम विपरीत गुण वाला बना देगा। यदि यह क्रास का चिह्न बुध पर्वत पर होगा, तो जातक बुद्धिमान तो होगा, पर अपनी बुद्धि का उपयोग लोगों को ठगने में करेगा। यदि बुध क्षेत्र पर क्रास के साथ-साथ बुध की अंगुली टेढ़ी भी हो तो जातक पक्का ठग एवं चोर तथा टुच्चा तथा दूसरों के धन पर निगाह रखने वाला होता है। यदि क्रास का यह चिह्न सूर्य पर्वत पर हो तो व्यक्ति सट्टेबाज होगा तथा सट्टे अथवा जुए में नुकसान उठाता है जिस कारण घर में क्लेश भी होता रहता है। यदि क्रास का चिह्न शनि क्षेत्र पर होता है तो यह जातक के अस्वस्थ रहने का संकेत है तथा जातक तंत्र-मंत्र, जादू और टोने की साधना करने के प्रति रुचि रखता है तथा कभी-कभी साधना करते हुए मृत्यु को प्राप्त होता है। यह चिह्न गुरु पर्वत पर कुछ शुभ होता है। जातक मनचाही शादी करने में सफल होता है। यदि कोई रेखा जीवन रेखा से आकर इस गुरु पर्वत के क्राॅस को काटे, या काट कर आगे निकल जाए तो जिस आयु में यह रेखा जीवन रेखा से बाहर निकलेगी, उस आयु में जातक धनहीन एवं पदहीन हो जाएगा। मंगल के दो पर्वत होते हैं। एक जीवन रेखा के अंदर अंगूठे के नीचे एवं शुक्र पर्वत के ऊपर होता है जिसे निम्न मंगल पर्वत कहते हैं। दूसरा बुध पर्वत के नीचे तथा चंद्र पर्वत के ऊपर, हृदय तथा मस्तिष्क रेखा के बीच में होता है, जिसे उच्च का मंगल कहा जाता है। ऊच्च के मंगल पर क्राॅस का चिह्न होने से जातक से लड़ाई-झगड़े में शत्रु मारा जाता है। चंद्र के पर्वत पर क्राॅस पानी में डूबने से मृत्युभय का चिह्न है तथा जातक आत्महत्या तक कर सकता है। शुक्र पर क्रास व्यभिचारी तथा स्त्रियों के कारण बदनाम होने का संकेत है। गृहस्थ जीवन दुखदायी होता है। यदि यह क्रास शुक्र पर्वत पर जीवन रेखा के निकट हो, तो संबंधियों से मुकद्दमा एवं झगड़ा होता है। मस्तिष्क रेखा पर सिर में चोट एवं दुर्घटना से मस्तिष्क शक्ति कमजोर हो जाती है। हृदय रेखा पर क्रास होने से किसी प्रिय संबंधी की मृत्यु होती है। भाग्य रेखा पर क्रास होने से जातक धनहीन होता है एवं बदनामी से उसकी मृत्यु होती है या वह आत्महत्या करता है। सूर्य रेखा पर क्रास से पद एवं प्रतिष्ठा की हानि होती है। विवाह रेखा पर क्रास हो तो पत्नी-पति मं झगड़ा होता रहता है और अंत में तलाक हो जाता है। हृदय और मस्तिष्क रेखा के बीच के क्षेत्र में क्रास हो तो जातक भक्त आदमी और गुप्त विधाओं की जानकारी रखने वाला होता है। वृत्त सूर्य पर्वत को छोड़ कर अन्य पर्वतों पर वृत्त का चिह्न अशुभ ही होता है। सूर्य पर्वत पर वृत्त का चिह्न हो तो जातक सौभाग्यशाली एवं आसानी से सफलता पाने वाला होता है। गुरु पर वृत्त का चिह्न होने से जातक घमंडी तथा तानाशाह होता है और अपने मिजाज के कारण सदा हानि उठाता है। बुध पर क्राॅस होने से जातक चालाक, झूठा एवं ठग होता है। पैसा कमाना उसका आदर्श होता है; चाहे भले कार्यों से कमाया जाए, या बुरे कार्यों से। साथ ही जब बुध की अंगुली टेढ़ी हो, तो यह गुण और भी बढ़ जाते हैं तथा जातक अपराधी तक बन जाता है। शनि क्षेत्र पर वृत्त चिह्न हो तो जातक जीवन भर दुःखी रहता है। संबंधी उसका साथ छोड़ जाते हैं तथा उसकी वृद्ध अवस्था कष्टदायक ही होती है। चंद्र पर वृत्त होने से पानी में डूब कर मृत्यु होती है। जातक को हमेशा गहरे जल से बच कर रहना चाहिए। शुक्र पर वृत्त होने से जातक भोगी, कामी और वासनारत जीवन बिताता है। उसे कई प्रकार के रति रोग हो जाते हैं। निम्न मंगल पर वृत्त जातक को डरपोक बनाता है, जबकि उच्च मंगल पर वृत्त जातक को क्रोधी बनाता है। अपने क्रोध पर उसका नियंत्रण न होने से जातक हत्या जैसा अपराध तक कर बैठता है। यदि वृत्त भाग्य रेखा पर हो तो जातक उस उम्र तक भाग्यहीन होगा, जब तक यह भाग्य रेखा पर दिखाई देगा। कमाई के रास्ते में सदा बाधाएं आएंगी तथा जातक कुछ धन भी नहीं बचा पाएगा। उसे सदा धन की हानि होती रहेगी। सूर्य रेखा पर वृत्त होने से जातक बदनाम होता है तथा प्रतिष्ठा की हानि होती है। यदि हृदय रेखा पर वृत्त का चिह्न नजर आए, तो हृदय की कमजोरी एवं दिल के दौरे की भविष्यवाणी करनी चाहिए। जीवन रेखा पर वृत्त हो, तो जातक तब तक रोगी रहेगा, जब तक यह वृत्त का चिह्न रहेगा। स्वास्थ्य रेखा पर होने से भी उसे यही फल मिलता है। मस्तिष्क रेखा पर वृत्त हो तो यह मस्तिष्क के विकारों का द्योतक है। जातक पागलों जैसा व्यवहार करने लग जाता है। यदि इस वृत्त के बाद मस्तिष्क रेखा पुष्ट हो तो जातक कुछ समय बाद अपने आप ठीक हो जाएगा। यदि वृत्त के बाद वह रेखा और भी कमजोर नजर आए तो जातक रोगी ही रहता है। त्रिकोण तीन रेखाओं के आपस में मिलने से बनी आकृति को त्रिकोण या त्रिभुज कहते हैं। यह मुख्य रेखाओं के काटने या मिलने से नहीं बनता, अपितु सूक्ष्म रेखाओं द्वारा इसका निर्माण होता है। यह चिह्न हथेली में जितना साफ एवं निर्दोष बना होगा, उतना ही शुभ माना जाएगा। गुरु पर्वत पर त्रिकोण होने से जातक सदैव उन्नति की ओर अग्रसर होता है; शनि पर एकांतवासी, तंत्र-मंत्र साधक होता है। सूर्य पर्वत पर त्रिकोण होने से जातक कलाकार होता है एवं उच्च पद प्राप्त करता है तथा हर कार्य में सफल हो जाता है। बुध क्षेत्र पर त्रिकोण जातक को सफल व्यापारी, धनी एवं प्रतिष्ठावान बनाता है। उच्च के मंगल पर्वत पर त्रिकोण होने से युद्ध में शौर्य द्वारा सम्मान प्राप्त होता है तथा निम्न मंगल पर आत्मरक्षा करने वाला लड़ाकू होता है। शुक्र पर्वत पर त्रिकोण हो तो जातक श्रेष्ठ कलाकार परंतु धन का लोभी होता है। चंद्र पर्वत पर त्रिकोण होने से जातक गुप्त विद्या का जानकार तथा मारण आदि प्रयोगों को जानने एवं करने वाला होता है। स्पष्ट त्रिकोण या त्रिभुज शुभ फलदायी होते हैं तथा अस्पष्ट त्रिकोण अशुभ फलदायी होता है। यदि हथेली पर अस्पष्ट और टूटा हुआ त्रिकोण बना दिखाई दे, तो उपर्युक्त गुणों में कमी तथा उपर्युक्त गुणों का उल्टा फल होता है। द्वीप यह अभागा चिह्न है तथा जिस पर्वत अथवा रेखा पर यह पाया जाता है उसके गुणों को प्रभावित करता है। हृदय रेखा पर द्वीप होने से हृदय रोग होने की संभावना होती है तथा जातक हृदय रोगों से पीड़ित रहता है। मस्तिष्क रेखा पर द्वीप हो तो मस्तिष्क की कमजोरी एवं पागलपन दिखाता है। भाग्य रेखा पर द्वीप हो तो यह एक अभागे तथा दुर्भाग्यपूर्ण भाग्य का सूचक है। जातक असफल तथा व्यवसाय में हानि उठाता है। सूर्य रेखा पर चिह्न होने से जातक कुल को कलंक लगाने वाले कार्य करते हैं। जीवन रेखा पर यह चिह्न हो तो जातक को रोगों से ग्रस्त रहना पडे़गा। जब यह चिह्न बृहस्पति के पर्वत पर होगा तो जातक घमंडी, झगड़ालू एवं फिजूल बोलने वाला होगा। शनि पर द्वीप का चिह्न दुर्भाग्य का सूचक है तथा जातक की वृद्धावस्था दुखमयी रहती है। सभी संबंधी एक-एक कर के, अंत में उसका साथ छोड़ देते हैं। सूर्य पर्वत पर यह चिह्न दुर्भाग्य का सूचक है। सूर्य पर्वत पर यह चिह्न बदनामी का कारण एवं प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचाने वाला माना जाता है। बुध क्षेत्र पर यह बुरे गुणों में वृद्धि का द्योतक है तथा जातक अशुभ पापी कार्य करता है। शुक्र पर यह चिह्न परस्त्रीगामी तथा स्त्री के हाथों अंत का संकेत है। इस कारण जातक का गार्हस्थ्य जीवन क्लेशपूर्ण ही रहता है। मंगल के दोनों पर्वतों पर यह युद्ध में मृत्यु तथा चंद्र पर यह जल द्वारा मौत का सूचक है। बिंदु हथेली में बिंदु प्रायः काले रंग के पाये जाते हैं। बिंदु के बारे में विचार प्रकट किया जाता है कि मुट्ठी बंद करने पर जो बिंदु या तिल हथेली के अंदर मुट्ठी में आ जाए, वह प्रायः अशुभ प्रभाव नहीं करता अन्यथा सदा इन बिंदुओं का प्रभाव अशुभ ही होता है। यह चिह्न जिस किसी भी पर्वत पर या जिस रेखा पर नजर आएगा, उसके गुणों को एकदम विपरीत कर देगा। स्वास्थ्य रेखा अथवा जीवन रेखा पर यह जातक के रुग्ण रहने का सूचक है। भाग्य रेखा पर यह अमंगलकारी भाग्य की सूचना देता है। सूर्य रेखा पर यह चिह्न पद एवं प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचाने वाला तथा कलंक लगवाने वाला एक अशुभ चिह्न माना गया है। चतुष्कोण यह एक मंगलदायक तथा शुभ चिह्न है। जीवन रेखा पर यह चिह्न बीमारियों से रक्षा करता है। मस्तिष्क रेखा पर यह चिह्न मस्तिष्क में होने वाले रोग, पागलपन और मस्तिष्क को दुर्घटना से होने वाली हानि या सिर में चोट लगने से बचाता है। यह भाग्य रेखा पर होने से बुरे समय से रक्षा करता है तथा सूर्य रेखा पर हो तो पद एवं प्रतिष्ठा को कोई हानि नहीं होने देता; भले ही उस चतुष्कोण के समय में सूर्य रेखा टूटी-फूटी क्यों न हो। चंद्र पर्वत पर यह जल यात्रा में अथवा पानी में डूबने से रक्षा करता है। मंगल पर्वत पर यह चिह्न शत्रु से रक्षा करता है एवं युद्ध में विजय दिलाता है। बृहस्पति पर्वत पर यह हर प्रकार के संकटों से रक्षा करता है। बुध के पर्वत पर यह चिह्न व्यापार में हानि होने से रक्षा करता है। शुक्र क्षेत्र पर यह जातक की काम वासना के कार्यों से होने वाली हानि से रक्षा करता है। शनि पर यदि यह चिह्न हो, तो जातक हर संकट से उबर कर बच जाता है। तारा यह एक महत्त्वपूर्ण चिह्न है। इसके महत्व तथा गुणों को इसके पाये जाने वाले स्थान से आंका जाता है क्योंकि यह भिन्न-भिन्न जगह एवं क्षेत्रों पर भिन्न-भिन्न प्रभाव और फल देता है। गुरु पर्वत पर तारे का चिह्न होने से जातक सफल राजनेता एवं राजदूत होता है। जातक हर तरफ से कामयाब एवं सफल जीवन जीता है। शनि पर तारे का चिह्न थोड़ा अशुभ होता है। जातक की हत्या तक हो सकती है। ऐसा जातक तंत्र-मंत्र की सिद्धि करते हुए मौत को प्राप्त हो सकता है। सूर्य पर्वत पर तारे का चिह्न होना मान की प्राप्ति तथा उच्च लोगों से संपर्क होने का चिह्न है। जातक प्रतिष्ठा एवं पद को आसानी से प्राप्त कर लेता है। परंतु कई जातकांे के लिए आंखों में कमजोरी का चिह्न होने से वे अपनी सफलता से कभी भी संतुष्ट नहीं होते। पैसा कमाना एवं पैसे का पुजारी, ऐसा जातक अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए कत्ल जैसे अपराध तक कर देता है। चंद्र पर तारे का चिह्न होने से जातक कविता तथा साहित्य में सफलता प्राप्त करता है तथा कवि होता है। परंतु जातक को सदैव गहरे जल से परे रहना चाहिए, क्योंकि यह तारा (चंद्र पर) जल में डूब कर मृत्यु होना भी बताता है। शुक्र के पर्वत पर तारे का चिह्न हो, तो जातक स्त्री के द्वारा दुःख भोगता है। यदि जीवन रेखा पर तारा दिखे, तो जातक कठिन रोगों का शिकार होता रहता है। हृदय रेखा पर तारा दिल के दौरे की सूचना देता है। मस्तक रेखा पर यदि तारा हो तो दुर्घटना से सिर में चोट लगती है। जाली यह चिह्न आड़ी- टेढ़ी रेखाओं के आपस में एक दूजे को काटने से बनता है। यह अशुभ, बुरा और अभागा चिह्न है सो इसका हाथ में न होना ही उत्तम होगा। गुरु पर्वत पर यह जातक को स्वार्थी एवं घमंडी बना देता है। शनि पर जाली वाले जातक की मृत्यु जहर, कत्ल या हत्या द्वारा होती है। सूर्य पर्वत पर यदि जाली का चिह्न हो तो जातक पद एवं प्रतिष्ठा को खो देता है। बुध के पर्वत पर यह चिह्न जातक के ठग एवं चोर होने का सूचक है। मंगल पर्वत पर यह चिह्न होने से जातक झगड़े में तेज हथियार द्वारा मारा जाता है। शुक्र पर यह चिह्न जातक को कामी बना देता है तथा कभी-कभी वह स्त्री के हाथों मृत्यु का शिकार बन जाता है। 13)हस्तरेखा द्वारा विवाह निर्णय. हस्तरेखा द्वारा विवाह निर्णय प्रश्नः हस्त रेखा के आधार पर विवाह का संभावित समय कैसे निकाल सकते हैं। इस पद्धति द्वारा वैवाहिक जीवन के बारे में भविष्य कथन के नियम व विधि का विस्तारपूर्वक वर्णन करें। इस विषय पर भी चर्चा करें कि क्या वर-वधु का मिलान हस्त रेखा से संभव है? हस्तरेखा के आधार पर विवाह का संभावित समय देशकाल की परंपराओं के अनुसार जातक के विवाह की उम्र का अनुमान किया जाना चाहिये। सामान्य नियम यह है कि हृदय रेखा से कनिष्ठिका मूल तक के बीच की दूरी को पचास वर्ष की अवधि मानकर उसका विभाजन करके समय की गणना करनी चाहिये। इस संपूर्ण क्षेत्र को बीच से विभाजित करने पर पच्चीस वर्ष की आयु प्राप्त होती है। यदि इस क्षेत्र को चार बराबर भागों में विभाजित करने के लिये इसके बीच में तीन आड़ी रेखाएं खीच दी जायें तो हृदय रेखा के निकट की पहली रेखा वाले भाग से बचपन में विवाह (लगभग 14 से 18 वर्ष की अवस्था में) होता है। दूसरी रेखा वाले भाग से युवावस्था में विवाह (लगभग 21 से 28 वर्ष की अवस्था में) होता है। तीसरी रेखा वाले भाग से विवाह लगभग 28 से 35 वर्ष की अवस्था में होता है, जबकि चौथे भाग अर्थात् तीसरी रेखा व कनिष्ठिका मूल के बीच वाले भाग से प्रौढ़ावस्था में अर्थात् 35 वर्ष की आयु के बाद विवाह समझना चाहिए। विवाह की उम्र का यथार्थ बोध और समय का अनुमान जीवन रेखा, भाग्य रेखा, सूर्य रेखा व उनकी अन्य प्रभाव रेखाओं के द्वारा अधिक यथार्थ और विश्वसनीय ढंग से होता है। हस्तरेखा के आधार पर वैवाहिक जीवन के बारे में भविष्य कथन के नियम व विधि : विवाह रेखा को अनुराग रेखा, प्रेम संबंध रेखा, ललना रेखा, जीवन साथी रेखा, आसक्ति रेखा, स्पदम वि उंततपंहमए स्पदम वि स्वअमए स्पदम वि नदपवद आदि नामों से जाना जाता है। विवाह रेखा के स्थान के बारे में प्राचीन विचारक एकमत नहीं थे। कुछ विचारकों ने शुक्र क्षेत्र की रेखाओं को, तो कुछ ने चंद्र क्षेत्र की रेखाओं को विवाह रेखा के रूप में स्वीकार किया है। किंतु अधिकांश प्राचीन ग्रंथों विवेक विलास, शैव सामुद्रिक, हस्त संजीवन, प्रयोग पारिजात, करलक्खन आदि में हृदय रेखा के ऊपर बुध क्षेत्र में स्थित आड़ी रेशाओं को ही विवाह रेखा माना गया है। विवाह रेखा का आरंभ : जो रेखाएं बुध क्षेत्र के भीतर आड़ी रेखाओं की तरह हों, वे विवाह की सूचक नहीं, बल्कि बुध क्षेत्र के गुणों में विपरीत या दूषित प्रभाव उत्पन्न करती हैं। करतल के बाहर से आकर बुध क्षेत्र में प्रवेश करने वाली सीधी, स्पष्ट और सुंदर रेखाएं ही सुखद वैवाहिक जीवन का संकेत देती है। यदि विवाह रेखा का आरंभ हृदय रेखा के भीतर से हो या उच्च मंगल क्षेत्र से निकलकर बुध क्षेत्र में चाप खंड की तरह प्रवेश करे तो ऐसे जातक का विवाह अबोध अवस्था में हो जाता है। ऐसे विवाह प्रायः बेमेल होते हैं जो आगे चलकर अस्थिरता या दुख का कारण बनते हैं। यदि इस योग के साथ जातक के हाथ में मध्य बुध क्षेत्र में दूसरी स्पष्ट विवाह रेखा मौजूद हो तो दूसरे विवाह की संभावना अधिक रहती है। यदि विवाह रेखा कनिष्ठिका के मूल से निकलकर चाप खंड की तरह बुध क्षेत्र में प्रवेश करें तो जातक को वृद्धावस्था में परिस्थितियों के दबाव में विवाह करना पड़ता है। यदि विवाह रेखा का आरंभ द्वीप चिह्न से हो, तो जातक के विवाह के पीछे कोई गोपनीय रहस्य छिपा होता है। यदि किसी महिला के हाथ में इस प्रकार का योग हो, तो उसको फंसाकर या धोखा देकर, मजबूरी में शादी की जाती है, ऐसे में आरंभिक वैवाहिक जीवन कष्टकर होता है। यदि बाद में रेखा शुभ हो, तो परिस्थितियां सामान्य हो जाती हैं। यदि विवाह रेखा के आरंभ की एक शाखा कनिष्ठिका मूल की ओर जाये और दूसरी शाखा हृदय रेखा की ओर झुक जाये तो पति-पत्नी को आरंभिक वैवाहिक जीवन में एक दूसरे से दूर रहना पड़ता है। यदि आगे जाकर ये दोनों शाखाएं मिल गयी हों तो पति-पत्नी का संबंध पुनः जुड़ जाता है। विवाह रेखा का समापन : यदि विवाह रेखा सूर्य क्षेत्र में समाप्त हो, तो जातक को विवाह के कारण प्रतिष्ठा और धन-लाभ होता है। यदि विवाह रेखा ऊपर की ओर मुड़कर सूर्य रेखा से मिल जाये, तो जातक का जीवनसाथी उच्चकुल का तथा प्रतिभा से संपन्न होता है। ऐसा विवाह जातक के लिये शुभ होता है, किंतु आजीवन जीवन साथी के प्रभाव में रहना पड़ता हैं यदि सूर्य क्षेत्र तक जाने वाली विवाह रेखा नीचे मुड़कर सूर्य रेखा को काट दे, तो जातक का वैवाहिक संबंध उससे निम्न कोटि के व्यक्ति के साथ होता है और इस विवाह के कारण उसकी प्रतिष्ठा को हानि पहुंचती है व दुख उठाना पड़ता है। यदि विवाह रेखा शनि क्षेत्र तक चली जाये, तो यह एक बहुत अशुभ योग माना जाता है। ऐसी स्थिति में जातक अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिये जीवन-साथी को घायल करता है या उसे मार डालता है। यदि इस योग में शनि क्षेत्र पर भाग्य रेखा के अंत में क्रास का चिह्न हो, तो जातक को अपने जीवन-साथी की हत्या के आरोप में मृत्युदंड दिया जाता है। यदि विवाह रेखा नीचे की ओर मुड़कर हृदय रेखा की ओर झुक जाये, तो इस बात की सूचक है कि जातक के जीवन-साथी की मृत्यु उससे पहले होगी। यदि ऐसी रेखा धीरे-धीरे एक ढलान के साथ नीचे की ओर मुड़ जाये तो, ऐसा समझना चाहिये कि जीवन-साथी की मृत्यु का कारण कोई लंबी बीमारी होगी। ऐसी रेखा के ढलान में यदि क्रॉस चिह्न हो या आड़ी रेखा हो तो मृत्यु अचानक किसी रोग या दुर्घटना के कारण होती है। द्वीप चिह्न होने से शारीरिक निर्बलता या बीमारी के कारण मृत्यु होती है। यदि विवाह रेखा शुक्र क्षेत्र में जाकर समाप्त हो, और यह योग सिर्फ बायें हाथ में ही हो, तो वैवाहिक संबंध विच्छेद करने की इच्छा ही व्यक्त करता है। दोनों हाथों में यही योग हो तो निश्चित ही संबंध विच्छेद होता है। यदि विवाह रेखा बुध-क्षेत्र में ऊपर की ओर मुड़ जाये और कनिष्ठका मूल को स्पर्श करने लगे, तो जातक आजीवन अविवाहित रहता है। यदि विवाह रेखा का समापन उच्च मंगल के मैदान में हो तो जीवन साथी के व्यवहार के कारण वैवाहिक जीवन दुखी रहता है। यदि विवाह रेखा का अंत उच्च मंगल के क्षेत्र में हो और समापन स्थान पर क्रॉस चिह्न हो, तो जातक के जीवन-साथी के जीवन में अनियंत्रित ईर्ष्या व द्वेष के कारण कोई प्राण घातक दुर्घटना घटित होती है। यदि विवाह रेखा का अंत त्रिशूल चिह्न से हो, तो जातक पहले अपने प्रेम की अति कर देता है और बाद में संबंधों के प्रति उदासीन हो जाता है। विवाह रेखा की शाखाएं एवं प्रभाव रेखाएं : विवाह रेखा से हृदय रेखा की ओर गिरती हुई छोटी-छोटी शाखाएं जीवन साथी की अस्वस्थता को बताती हैं। दो शाखाओं वाली विवाह रेखा की एक शाखा मंगल के मैदान तक पहुंचे तो आपस में तलाक हो जाता है। यदि विवाह रेखा की एक शाखा हृदय रेखा को स्पर्श करे तो यह समझना चाहिए कि जातक के क्रूर व्यवहार और हृदयहीनता के चलते वैवाहिक संबंध समाप्त हो जाएगा। विवाह रेखा के आरंभ और अंत में द्विशाखाएं हों, तो कहीं दूर यात्रा में चले जाने से एक दूसरे से वियोग पीड़ा सहते हैं किंतु वैधानिक तौर पर अलग नहीं होते। यदि विवाह रेखा दो शाखाओं में विभक्त हो जाये और एक अलग रेखा सूर्य रेखा में बने हुए द्वीप तक जाए तो जातक के पद और प्रतिष्ठा की हानि होती है और वैवाहिक संबंध कलंकपूर्ण परिस्थितियों में समाप्त होता है। यदि विवाह रेखा की एक शाखा मस्तिष्क रेखा से मिल जाये तो मतांतर के कारण जीवन साथी से तलाक होता है। जब रेखा द्वीप चिह्नों से भरी हो और अंत में दो शाखाओं में विभक्त हो जाए तो वैवाहिक जीवन अत्यंत दुखद होता है। सूर्य रेखा को स्पर्श करने वाली विवाह रेखा की शाखा प्रतिष्ठा देती है। यदि विवाह रेखा की शाखा सूर्य रेखा को काटे तो विवाह के कारण पद-प्रतिष्ठा की हानि होती है। यदि विवाह रेखा दो शाखाओं में विभक्त हो और मंगल के मैदान में से निकलने वाली प्रभाव रेखा जो भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा को काटती हुई ऊपर उठे तथा विवाह रेखा को भी काट दे, तो वैवाहिक संबंध विच्छेद हो जाता है। यदि ऐसी प्रभाव रेखा द्वीप चिह्नयुक्त हो, तो विवाह विच्छेद होने का कारण अनुचित च छलकपट की भावना होती है। यदि कोई प्रभाव रेखा शुक्र क्षेत्र से आकर विवाह रेखा को काट दे ता परिवार वालों के हस्तक्षेप से वैवाहिक जीवन में बाधा आती है। यदि शुक्र क्षेत्र से उठने वाली प्रभाव रेखा जीवन रेखा की ऊर्घ्वगामी शाखा को काटती हुई बुध क्षेत्र में जाकर विवाह रेखा को काट दे, तो कानूनी ढंग से तलाक मंजूर हो जाता है, किंतु इसके पहले अदालती कार्रवाई चलती है। इस तलाक का कारण भी परिवार का हस्तक्षेप होता है। यदि कनिष्ठिका के मूल स्थान से कोई लंबवत रेखा आकर विवाह रेखा को काट दे, तो जातक के विवाह में अन्य लोगों के विरोध के कारण बाधा आती है। यदि कोई बहुत पतली रेखा, विवाह रेखा को लगभग स्पर्श करती हुई, उसके समानान्तर चलती हो, तो जातक विवाह के पश्चात् अपने जीवनसाथी को बहुत प्यार करता है। यदि बुध क्षेत्र पर विवाह रेखा पुष्टता से अंकित हो और कोई प्रभाव रेखा चंद्र क्षेत्र से आकर भाग्य रेखा से मिले, तो जातक विवाह के बाद धनवान हो जाता है। परंतु जब प्रभाव रेखा चंद्र क्षेत्र पर पहले सीधी चढ़ जाये और फिर मुड़कर भाग्य रेखा से मिले, तो विवाह संबंध में सच्चे प्रेम की भावना नहीं होती बल्कि दिखावा मात्र होता है। यदि प्रभाव रेखा भाग्य रेखा से अधिक बलवती हो तो जातक का व्यक्तित्व अपने प्रेमी के व्यक्तित्व की अपेक्षा कमजोर होता है, जिससे वह दब्बू बना रहता है। दोहरी विवाह रेखायें : व्यवहार में यह देखा गया है कि अधिकांश व्यक्तियों के हाथों में एक से अधिक विवाह रेखाएं मौजूद रहती हैं, फिर भी सामान्यतः उनकी एक ही शादी होती है। इसलिये एक या एक से अधिक विवाह रेखाओं की उपस्थिति को, अन्य प्रभाव रेखाओं के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकित करना चाहिये, विवाह रेखाओं के होने मात्र से विवाह होना संभव नहीं है, किंतु आकर्षण या प्रेम अवश्य रहता है। इसीलिये कई लोगों से प्रेम संबंध रखने वाले व्यक्तियों के हाथों में कई विवाह रेखाएं होती हैं, किंतु व्यवहार में उनकी शादी नहीं होती या मात्र एक ही होती है। इसके विपरीत जो लोग वैवाहिक संबंधों के प्रति उदासीन रहते हैं, उनके हाथों में विवाह हो जाने के बावजूद विवाह रेखा नहीं होती है। इसलिये एक से अधिक विवाह रेखा होने पर वैवाहिक संबंधों की संखया का निर्णय शुक्र क्षेत्र, चंद्र क्षेत्र व जीवन रेखा से निकलने वाली अन्य प्रभाव रेखाओं के आधार पर करना चाहिये। यदि सहायक लक्षण न हों, तो विवाह रेखाओं को आकर्षण या प्रेम रेखा मानना चाहिये। यदि बुध क्षेत्र में दो विवाह रेखाएं मौजूद हों और भाग्य रेखा से निकलकर उसकी एक शाखा हृदय रेखा में मिल जाये, तो जातक की दूसरी शादी होती है। विवाह रेखाओं के दोष : यदि विवाह रेखा अचानक खंडित हो जाये तो वैवाहिक संबंध अचानक टूट जाता है। यदि विवाह रेखा से छोटी-छोटी शाखायें ऊपर की ओर उठ रही हों, तो जिस व्यक्ति के हाथ में ऐसी रेखाएं होंगी, उसके जीवन साथी के प्रेम संबंध जातक तक ही सीमित न रहकर और अन्य लोगों के बीच विभाजित होगा। जिस महिला के हाथ में ऐसी रेखायें होती हैं, उसकी अनेक सौतें होती है। यदि विवाह रेखा से ऐसी शाखाएं हृदय रेखा की ओर गिर रही हों, तो जीवन साथी का स्वास्थ्य हमेशा खराब रहता है। विवाह रेखा को काटने वाली आड़ी रेखाएं आपसी संबंधों के टूटने, अवरूद्ध होने या जीवनसाथी के अस्वस्थ होने अथवा उसकी दुर्घटना का संकेत देती है, जिनकी वजह से वैवाहिक जीवन में अनावश्यक दिक्कतें उत्पन्न होती हैं। यदि विवाह रेखा बुध क्षेत्र तक जाये और वहां पर अंकुश की तरह नीचे की ओर झुक जाये तो ऐसा व्यक्ति जिसे प्रेम करता है, वह किसी दूसरे से प्रेम करता है। विवाह रेखा में विभिन्न चिह्न : द्वीप चिह्न : यदि विवाह रेखा के अंत और अंगूठे के मूल में द्वीप चिह्न हो, तो जातक का विवाह किसी नजदीकी रिश्तेदार से होता है। विवाह रेखा के मध्य में द्वीप चिह्न वैवाहिक जीवन में आने वाली दिक्कतों का संकेत देते हैं। क्रास चिह्न : क्रास चिह्न संबंध विच्छेद या मृत्यु का संकेत देते हैं। यदि विवाह रेखा नीचे की ओर मुड़ गई हो और उसके अंत में क्रास चिह्न हो तो जीवन-साथी की मृत्यु हो जाती है। विवाह रेखा को स्पर्श करता हुआ ऊपर की ओर स्थित क्रॉस चिह्न गर्भपात का संकेत है। बिंदू चिह्न : विवाह रेखा पर काले रंग का बिंदु चिह्न हो तो जातक के जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है। नक्षत्र चिह्न : सूर्य क्षेत्र तक जाने वाली विवाह रेखा के अंत में नक्षत्र चिह्न उच्च कुल में विवाह कराता है। यदि विवाह रेखा में नक्षत्र चिह्न हो तो जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है और अत्यंत आत्मिक कष्ट होता है। यदि विवाह रेखा कनिष्ठिका मूल की ओर मुड़ी हुई हो और उसके अंत में नक्षत्र चिह्न हो तो जातक अपने प्रेमी की कलुषित भावनाओं को सत्य के रूप में जान लेता है और उसका मोह भंग हो जाता है। वर्ग चिह्न : विवाह रेखा के ऊपर बना हुआ वर्ग चिह्न विवाह में होने वाली परेशानियों के दुष्प्रभाव को कम करता है। हस्त रेखा के आधार पर वर-वधू का मिलान हस्त रेखा के आधार पर वर-वधू के दांपत्य सुख का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसके लिये वर तथा वधू के हाथों का प्रिंट ले लेना चाहिये। सुखी वैवाहिक जीवन के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिये। मंगल रेखा जीवन रेखा के समानांतर किंतु तनिक दूर हो और पतली तथा निर्दोष हो। यदि वर तथा वधू के हाथों में विवाह रेखा निर्दोष हो, जीवन रेखा पतली तथा गोलाकार हो, भाग्य रेखा पतली और निर्दोष हो और जीवन रेखा से दूर हो, हृदय और मस्तिष्क रेखा समानांतर किंतु दूर-दूर हों, और उनकी शाखाएं एक-दूसरे में प्रवेश न करें, ऊंगलियां सीधी हों, अंगूठा बड़ा हो, तर्जनी बड़ी हो, तो वैवाहिक जीवन सुखी होता है। यदि दोनों के ही हाथों में हृदय रेखा की शाखाएं गुरु पर्वत की ओर हों तो धन, सौभाग्य की दृष्टि से सुखी विवाहित जीवन होता है। यदि दोनों के ही हाथों में भाग्य रेखा पतली और गहरी हो, दोनों के अंगूठों के मध्य की विभाजक रेखा में स्पष्ट यव हों तो वर-वधु का सुख लंबा होता है। यदि दोनों के ही हाथों में विवाह रेखा सीधी हो तो वैवाहिक जीवन सुखी होता है। यदि विवाह रेखा का रूख हल्का सा ऊंगलियों की ओर हो, तो जीवन साथी लंबी उम्र पाता है। मंगली योग : वर या कन्या के हाथ में यदि विवाह रेखा हृदय रेखा को छूकर जाये, अथवा बुध की ओर जाये तो विधवा या विधुर योग बनता है- इसे मंगली योग की संज्ञा दी गई है। (पुरुष का बायां और स्त्री का दायां हाथ देखना चाहिए) यदि विवाह रेखा नीचे की ओर हृदय रेखा को स्पर्श करे तो विवाह के कुछ दिन बाद जातक या जातिका की मृत्यु हो जाती है। – इसे मंगली योग की संज्ञा दी गई है। यदि जातक या जातिका की विवाह रेखा पर नक्षत्र चिह्न हो तो विवाह के बाद मृत्यु हो जाती हैं इसे मंगली की संज्ञा दी गई है। यदि इस नक्षत्र को कोई रेखा काट दे तो मंगली योग भंग हो जाता है। यदि किसी स्त्री की नासिका के अग भाग में काला तिल या मस्सा हो – तो स्त्री विधवा हो जाती है। इसे भी मंगली की संज्ञा दी गई है। किसी पुरुष या स्त्री के विवाह रेखा के मध्य में तिल हो उसे मंगली की संज्ञा दी गई है। जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में मंगल रेखा पर क्रॉस (गद्ध और तिल हो, उसे भी मंगली कहते हैं। यदि विवाह रेखा सर्पाकार हो, हृदय रेखा को छूती हो, तो विवाह के बाद उसके जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है। विवाह रेखा सूर्य रेखा को स्पर्श करे तो जीवन साथी से खट-पट होती है। यदि विवाह रेखा टूटी हो (– ) आगे वाली रेखा हृदय रेखा पर जाये तो जीवन साथी की मृत्यु होती है। पीछे वाली टूटी रेखा हृदय पर आये तो जीवन साथी से खट-पट का योग बना रहता है। ये सभी मंगली योग है। यदि विवाह रेखा हृदय रेखा पर मिलकर त्रिभुज की आकृति बनाये तो उसके जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है। इसे मंगली योग की संज्ञा दी गई है। यदि विवाह रेखा द्विजिह्वाकार हो और एक सूर्य पर, दूसरा हृदय पर जाये तो जातक या जातिका अविवाहित रहता है। यदि कोई रेखा मंगल पर्वत से आकर विवाह रेखा को काटे तो जीवन साथी का वियोग होता है, यह मंगली योग है। यदि विवाह रेखा पर द्वीप का चिह्न हो तो विवाह विच्छेद हो जाता है। यदि यह द्वीप हृदय रेखा से जा मिले तो जातक का जीवन साथी रोग ग्रस्त रहते हैं तथा अंत में मर जाते हैं- मंगली योग। ऐसा चिह्न पुरुष के हाथ में हो तो पत्नी प्रसव काल में मर जाती है। यदि गोपुच्छाकृत विवाह रेखा हो तो स्त्री, परपुरुष गामिनी और पुरुष परस्त्री गामी होते हैं। यदि विवाह रेखा बुध क्षेत्र पर आकर हृदय को काटते हुए, मध्य हाथ में आये तो विवाह के बाद जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है। इसे मंगली योग कहते हैं। विवाह में अड़चन : यदि रेखा कई भाग में कटी हो (—) और चंद्र पर्वत पर आड़ी तिरछी रेखायें हों। अनमेल विवाह -यदि विवाह रेखा सूर्य रेखा को काटे अथवा शुक्र पर्वत विकसित रहे तो अनमेल विवाह होता है। सुखहीन विवाह : यदि भाग्य रेखा पर क्रॉस हो, विवाह रेखा पर द्वीप हो, शुक्र पर्वत कम उभरा हुआ हो तो विवाह सुखहीन रहता है। तलाक होने का योग : विवाह रेखा के अंत में गुच्छा हो, मंगल पर्वत से कोई रेखा विवाह रेखा को काटे, विवाह रेखा से शाखा निकल कर मस्तिष्क रेखा से मिलती हो या शुक्र पर्वत से प्रभाव रेखा जीवन रेखा को काटती हुई विवाह रेखा से मिलती हो, अथवा विवाह रेखा को काटती हो तो तलाक होता है। विवाह की दिशा : जातक के मणिबंध रेखा के बीच में ∇हो तो उत्तर दिशा, किसी अंगुली के जड़ में ∇हो तो दक्षिण दिक्षा, हाथ के मध्य में ∇हो तो पूर्व दिशा और अंगुष्ठ के मूल में ∇हो तो, पश्चिम दिशा में विवाह होता है। 14)किस देवी देवता की पूजा करे- हस्त रेखाओं से जाने.. भारत की सनातन धार्मिक और पूजन परंपरा में देवताओं का मुख्य स्थान है। इनकी संख्या भी हमारे यहां 33 करोड़ बतायी गई है। महादेव शंकर भगवान हों या शक्ति और बल के देवता बजरंग बली हों या फिर मर्यादा पुरुषोम राम हों या नटखट माखन चोर भगवान कृष्ण हों सभी की अपार महिमा का वर्णन हमारे शास्त्रों में किया गया है। पुरुषों की शक्ति और महिमा की अभिव्यक्ति करने वाले इन देवताओं के बाद महिलाओं के शक्ति पुंज की भी व्याख्या हमारे यहां दुर्गा और काली तथा चामुण्डा के रूप में सदियों से होती आई है। देवताओं के लिए ऐसे महत्वपूर्ण नजरिए रखने के बाद भारत की संस्कृति और धर्म ने विश्व में एक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है। अनेक देवताओं के इस देश में शक्ति स्वरूप भगवान की पूजा करके समृद्धि और संपन्न बनने की लालसा हर एक के मन में रहती है परंतु देवताओं की ऐसी अनगिनत संख्या के बीच मनुष्य यह समझ नहीं पाता है कि कौन से देवता की प्रकृति और स्वभाव उसके संस्कार से मेल बिठा पाते हैं। सभी देवताओं की बराबर समर्पण और भक्ति के साथ पूजा नहीं की जा सकती है क्योंकि एक व्यक्ति के अंदर एक ही देवता की प्रकृति का वास होता है। जो व्यक्ति सभी देवताओं को प्रसन्न करने की शक्ति रखता होगा उसे इस संसार में पूजा करने की आवश्यकता ही नहीं वह बिना पूजा के ही संसार के सभी लोगों के प्रति प्यार की भावनाएं रखकर मुक्ति का पथ प्राप्त कर लेगा। परंतु हम बात कर रहे हैं एक सामान्य आदमी की जिसे अपने संस्कार से मेल खाते किसी एक देवता या नाम की जरूरत जीवन में पड़ती है जिसके नाम का बार-बार स्मरण करके उसे जीवन संघर्षों से विजय प्राप्त करने का संबल मिलता है। अतः व्यक्ति को अपने अंदर समाहित देवता के स्वभाव को पहचानना जरूरी हो जाता है। अक्सर देखने में आता है कि किसी के लिए महादेव भोले भण्डारी की पूजा काफी लाभदायक होती है तो पता चलता है कि कोई व्यक्ति राम भक्त हनुमान की अपार कृपा प्राप्त कर रहा है। उसी तरह किसी को संतोषी मां तो किसी को शक्ति स्वरूपा दुर्गा की शक्ति प्राप्त होती है। कुछ मनुष्य तो अपने अनुभवजन्य गुणों से अपने देवता की प्रकृति के नजदीक देर सबेर आ जाते हैं परंतु कुछ भटकते रहते हैं। ऐसे भटकने वाले पुरुष अगर किसी योग्य हस्तरेखा शास्त्री के पास जाकर जानकारी प्राप्त करें तो उन्हें इस परेशानी (भटकने) से मुक्ति मिल सकती है। जी हां हाथ की रेखाएं बता सकती हैं कि किस देवी-देवता की पूजा ज्यादा लाभकारी होगी। अमुक हाथ की रेखाओं के माध्यम से ये जाना जा सकता है कि अमुक व्यक्ति के लिए अमुक देवता लाभदायी होगा। हाथ की रेखाओं में कुछ ऐसे संस्कारों की व्याख्या होती है जो आपके अंदर छुपी देवता की प्रकृति को स्पष्ट करती है। तो आइए इस लेख में जानं कि हस्त रेखाओं से देवी देवता किस तरह संबंधित हैं। 1- यदि हाथ में शनि की अंगुली सीधी हो, शनि ग्रह मध्य हो ते ऐसे व्यक्तियों को शनि देव की स्तुति अवश्य करनी चाहिए। नित्य शनि मंत्र का 108 बार जाप करने से मनुष्य के जीवन में सुख शांति व समृद्धि आती है। मंत्र – ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सह शनिश्चराय नमः। 2- यदि हृदय रेखा पर त्रिशूल बनता हो, उंगलियां चाहे टेढ़ी-मेढ़ी हों तो इन्हें भगवान शिव की आराधना व उन्हें ही अपना आराध्य मानना चाहिए। इससे जीवन में आने वाले कष्टों से मुक्ति मिलती है। ऊँ नमः शिवाय का जाप हितकारी है। 3- यदि हृदयरेखा के अंत पर एक शाखा गुरु पर्वत पर जाती हो तो इन्हें भक्त प्रवर हनुमान जी का पूजन करना चाहिए जिससे जीवन में आने वाली विपदाएं दूर होती हैं। ऊँ नमो हनुमंता या हनुमान चालीसा का पाठ करने से सुख शांति मिलती है। 4- यदि भाग्य रेखा खंडित हो व इसमें दोष हो तो इन्हें लक्ष्मी माता का ध्यान या लक्ष्मी मंत्र का जाप लाभकारी है। इससे आर्थिक कमियों का निदान होता है और घर में धन संपŸिा आती है। मंत्र इस प्रकार है- ऊँ श्रीं, ह्रीं, श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं सिद्ध लक्ष्म्यै नमः। 5- यदि हाथ में सूर्य ग्रह दबा हुआ हो, व्यक्ति को शिक्षा में पूर्ण सफलता न मिल पा रही हो, मस्तिष्क रेखा खराब हो, तो इन्हें सूर्य को जल देना चाहिए तथा सूर्य के पूजन के साथ सरस्वती का पूजन करना चाहिए। सूर्य मंत्र- ऊँ ह्रां, ह्रीं, ह्रौं सः सूर्याय नमः। 6- यदि जीवन रेखा व भाग्य रेखा को कई मोटी रेखाएं काटें तो इनके जीवन में प्रत्येक व्यवसाय में रुकावट आती है तो इस रुकावट को दूर करने के लिए ऊपर दिये गये लक्ष्मी मंत्र का जाप विधिवत् नित्य करना चाहिए। 7- यदि सभी ग्रह सामान्य हों, जीवन रेखा टूटी हो तो ये जीवन में दुर्घटनाओं का सूचक है। इसलिए इन्हें शिव आचरण या शिव स्तोत्र या ऊँ नमः शिवाय का जाप नियमित करना चाहिए। 8- यदि हृदय रेखा खंडित हो और साथ में हृदय रेखा से काफी सारी शाखाएं मस्तिष्क रेखा पर आ रही हों तो इन्हें मां दुर्गा का पूजन तथा दुर्गा सप्तशती का नित्य पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य का विचलन शांत होता है तथा इससे उसकी निर्णय क्षमता में वृद्धि होती है। 9- यदि हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा एक हो या मस्तिष्क रेखा मंगल क्षेत्र तक जाती हो तो इन्हें भगवान कृष्ण का ध्यान करना चाहिए तथा मंत्र- ऊँ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करना चाहिए। इससे व्यक्ति को संतान सुख व वंश की प्राप्ति होती है। 10- यदि हाथ में भाग्य रेखा लंबी हो, जीवन रेखा गोल हो, हृदय रेखा सुंदर हो तो इन्हें मर्यादा पुरुषोम श्री राम का ध्यान और पूजन करना चाहिए। राम-राम के जाप से जीवन काफी सुखमय बन जाता है। इन रेखाओं के साथ हाथां में कई अन्य रेखाएं हैं जो अन्य देवताओं की कृपा दृष्टि की ओर ईशारा करती हंै। इन रेखाओं का संपूर्ण विवरण इस लेख में नहीं किया जा सकता अतः अनेक अन्य देवताओं और उनकी कृपा दृष्टि के लिए योग्य हस्तरेखा शास्त्री से परामर्श आवश्यक है। 15)कैसी रेखाएं करती है धन वर्षा. ताउम्र अथक मेहनत करने के बावजूद भी अधिकांश व्यक्ति सिर्फ अपनी जरूरतें ही पूरा करने भर के लिए धन प्राप्त कर पाते हैं, वहीं दूसरी तरफ बहुत कम मेहनत करने वाले लोग धनी हो जाते हैं और ऐश्वर्य पूर्ण जीवन जीते हैं। इसके पीछे व्यक्ति के कर्म के साथ-साथ उसके हाथ की रेखाएं जिम्मेदार हैं। यदि आपके हाथ में धन की रेखाएं अच्छी नहीं हं तो मेहनत के बावजूद भी आपके पास धन की वर्षा नहीं होगी। इस लेख में लेखिका ने हाथ की रेखाओं के माध्यम से बताया है कि कौन सी रेखा व्यक्ति के जीवन में धन वर्षा का मार्ग प्रशस्त करती हैं। 1- मस्तिष्क रेखा निर्दोष हो, शुक्र उन्नत हो तो धनवान बनने के प्रबल योग तो हैं किंतु अत्यधिक बाधाएं और संघर्ष भी है। साथ ही अगर हाथ गुलाबी, अंगुलियां सीधी व पतली हों …

3 comments:

  1. अपनी जानकारी साझा करने के लिए धन्यवाद। आपने बहुत अच्छे लेख लिखे हैं। और पढो :-Astrology

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  2. very very very nice will u give me ur mobile no,i want to talk with u

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