MONDAY, 10 JUNE 2013
क्या श्री राम जी माँसाहारी थे?
मेरे कई मित्रों ने यह शंका मेरे समक्ष रखी हैं की उनके सामने दिन प्रतिदिन वाल्मीकि रामायण में से कई श्लोक आते हैं जिनसे यह सिद्ध होता हैं की श्री राम जी माँसाहारी थे?
इस शंका का समाधान होना अत्यंत आवश्यक हैं क्यूंकि श्री राम के साथ भारतीय जनमानस की आस्था जुड़ी हैं। वैष्णव मत को मानने वाले गोस्वामी तुलसी दास द्वारा रचित रामचरित मानस के प्रभाव से , वैष्णव मत की मूलभूत मान्यता शाकाहार के समर्थन में होने से भारतीय जनमानस का यह मानना हैं की ऐसा नहीं हो सकता की श्री राम जी माँसाहारी थे। मेरा भी यही मानना हैं की श्री राम चन्द्र जी पूर्ण रूप से शाकाहारी परन्तु मेरे विश्वास का कारण स्वयं ईश्वर की वाणी वेद हैं। वेदों में अनेक मंत्र मानव को शाकाहारी बनने के लिए प्रेरित करते हैं, माँसाहारी की निंदा करते हैं, निरीह पशुयों की रक्षा करना आर्य पुरुषों का कर्तव्य बताते हैं और जो निरीह पशुयों पर अत्याचार करते हैं उनको कठोर दंड देने की आज्ञा वेद में स्पष्ट रूप से वेदों में हैं।
श्रीरामचन्द्र जी का काल पुराणों के अनुसार करोड़ो वर्षों पुराना हैं। हमारा आर्याव्रत देश में महाभारत युद्ध के काल के पश्चात और उसमें भी विशेष रूप से पिछले २५०० वर्षों में अनेक परिवर्तन हुए हैं जैसे ईश्वरीय वैदिक धर्म का लोप होना और मानव निर्मित मत मतान्तर का प्रकट होना जिनकी अनेक मान्यतें वेद विरुद्ध थी। ऐसा ही एक मत था वाममार्ग जिसकी मान्यता थी की माँस, मद्य, मीन आदि से ईश्वर की प्राप्ति होती हैं।
वाममार्ग के समर्थकों ने जब यह पाया की जनमानस में सबसे बड़े आदर्श श्री रामचंद्र जी हैं इसलिए जब तक उनकी अवैदिक मान्यताओं को श्री राम के जीवन से समर्थन नहीं मिलेगा तब तक उनका प्रभाव नहीं बढ़ेगा। इसलिए उन्होंने श्री राम जी के सबसे प्रमाणिक जीवन चरित वाल्मीकि रामायण में यथानुसार मिलावट आरंभ कर दी जिसका परिणाम आपके सामने हैं।
महात्मा बुद्ध के काल में इस प्रक्षिप्त भाग के विरुद्ध"दशरथ जातक" के नाम से ग्रन्थ की स्थापना करी जिसमें यह सिद्ध किया की श्री राम पूर्ण रूप से अहिंसा व्रत धारी थे और भगवान बुद्ध पिछले जन्म में राम के रूप में जन्म ले चुके थे। कहने का अर्थ यह हुआ की जो भी आया उसने श्री राम जी की अलौकिक प्रसिद्धि का सहारा लेने का प्रयास लेकर अपनी अपनी मान्यताओं का प्रचार करने का पूर्ण प्रयास किया।
यही से प्रक्षिप्त श्लोकों की रचना आरंभ हुई।
इस लेख को हम तीन भागों में विभाजित कर अपने विषय को ग्रहण करने का प्रयास करेगे।
१. वाल्मीकि रामायण का प्रक्षिप्त भाग
२. रामायण में माँसाहार के विरुद्ध स्वयं की साक्षी
३. वेद और मनु स्मृति की माँस विरुद्ध साक्षी
वाल्मीकि रामायण का प्रक्षिप्त भाग
इस समय देश में वाल्मीकि रामायण की जो भी पांडुलिपियाँ मिलती हैं वह सब की सब दो मुख्य प्रतियों से निकली हैं। एक हैं बंग देश में मिलने वाली प्रति जिसके अन्दर बाल, अयोध्या,अरण्यक,किष्किन्धा ,सुंदर और युद्ध ६ कांड हैं और कूल सर्ग ५५७ और श्लोक संख्या १९७९३ हैं जबकि दूसरी प्रति बम्बई प्रान्त से मिलती हैं जिसमें बाल, अयोध्या,अरण्यक,किष्किन्धा ,सुंदर और युद्ध इन ६ कांड के अलावा एक और उत्तर कांड हैं, कूल सर्ग ६५० और श्लोक संख्या २२४५२८ हैं।
दोनों प्रतियों में पाठ भेद होने का कारण सम्पूर्ण उत्तर कांड का प्रक्षिप्त होना,कई सर्गों का प्रक्षिप्त होना हैं एवं कई श्लोकों का प्रक्षिप्त होना हैं।
प्रक्षिप्त श्लोक इस प्रकार के हैं
१. वेदों की शिक्षा के प्रतिकूल:- जैसे वेदों में माँस खाने की मनाही हैं जबकि वाल्मीकि रामायण के कुछ श्लोक माँस भक्षण का समर्थन करते हैं अत: वह प्रक्षिप्त हैं।
२. श्री रामचंद्र जी के काल में वाममार्ग आदि का कोई प्रचलन नहीं था इसलिए वाममार्ग की जितनी भी मान्यताएँ हैं , उनका वाल्मीकि रामायण में होना प्रक्षिप्त हैं।
३. ईश्वर का बनाया हुआ सृष्टि नियम आदि से लेकर अंत तक एक समान हैं इसलिए सृष्टि नियम के विरुद्ध जो भी मान्यताएँ हैं वे भी प्रक्षिप्त हैं जैसे हनुमान आदि का वानर (बन्दर) होना, जटायु आदि का गिद्ध होना आदि क्यूंकि पशु का मनुष्य के समान बोलना असंभव हैं। हनुमान, जटायु आदि विद्वान एवं परम बलशाली श्रेष्ठ मनुष्य थे।
४. जो प्रकरण के विरुद्ध हैं वह भी प्रक्षिप्त हैं जैसे सीता की अग्नि परीक्षा आदि असंभव घटना हैं जिसका राम के युद्ध में विजय के समय हर्ष और उल्लास के बीच तथा १४ वर्ष तक जंगल में भटकने के पश्चात अयोध्या वापसी के शुभ समाचार के बीच एक प्रकार का अनावश्यक वर्णन हैं।
रामायण में माँसाहार के विरुद्ध स्वयं की साक्षी
श्री राम और श्री लक्ष्मण द्वारा यज्ञ की रक्षा
रामायण के बाल कांड में ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ के समक्ष जाकर उन्हें अपनी समस्या बताते हैं की जब वे यज्ञ करने लगते हैं तब मारीच और सुबाहु नाम के दो राक्षस यज्ञ में विघ्न डालते हैं एवं माँस, रुधिर आदि अपवित्र वस्तुओं से यज्ञ को अपवित्र कर देते हैं। रजा दशरथ श्री रामचंद्र एवं लक्ष्मण जी को उनके साथ राक्षसों का विध्वंस करने के लिए भेज देते हैं जिसका परिणाम यज्ञ का निर्विघ्न सम्पन्न होना एवं राक्षसों का संहार होता हैं।
जो लोग यज्ञ आदि में पशु बलि आदि का विधान होना मानते हैं, वाल्मीकि रामायण में राजा दशरथ द्वारा किये गये अश्वमेध यज्ञ में पशु बलि आदि का होना मानते हैं उनसे हमारा यह स्पष्ट प्रश्न हैं अगर यज्ञ में पशु बलि का विधान होता तो फिर ऋषि विश्वामित्र की तो राक्षस उनके यज्ञ में माँस आदि डालकर उनकी सहायता कर रहे थे नाकि उनके यज्ञ में विघ्न डाल रहे थे।
इससे तो यही सिद्ध होता हैं की रामायण में अश्वमेध आदि में पशु बलि का वर्णन प्रक्षिप्त हैं और उसका खंडन स्वयं रामायण से ही हो जाता हैं।
ऋषि वशिष्ठ द्वारा ऋषि विश्वामित्र का सत्कार
एक आक्षेप यह भी लगाया हैं की प्राचीन भारत में अतिथि का सत्कार माँस से किया जाता था।
इस बात का खंडन स्वयं वाल्मीकि रामायण में हैं जब ऋषि विश्वामित्र ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में पधारते हैं तब ऋषि वशिष्ठ ऋषि विश्वामित्र का सत्कार माँस आदि से नहीं अपितु सब प्रकार से गन्ने से बनाये हुए पदार्थ, मिष्ठान,भात खीर,दाल, दही आदि से किया। यहाँ पर माँस आदि का किसी भी प्रकार का कोई उल्लेख नहीं हैं। वाल्मीकि कांड बाल कांड सर्ग ५२ एवं सर्ग ५३ श्लोक १-६
श्री राम जी की माँसाहार की विरुद्ध स्पष्ट घोषणा
अयोध्या कांड सर्ग २ के श्लोक २९ में जब श्री राम जी वन में जाने की तैयारी कर रहे थे तब माता कौशल्या से श्री राम जी ने कहाँ मैं १४ वर्षों तक जंगल में प्रवास करूँगा और कभी भी वर्जित माँस का भक्षण नहीं करूँगा और जंगल में प्रवास कर रहे मुनियों के लिए निर्धारित केवल कंद मूल पर निर्वाह करूँगा।
इससे स्पष्ट साक्षी रामायण में माँस के विरुद्ध क्या हो सकती हैं।
श्री राम जी द्वारा सीता माता के कहने पर स्वर्ण हिरण का शिकार करने जाना
एक शंका प्रस्तुत की जाती हैं की श्री रामचंद्र जी महाराज ने स्वर्ण मृग का शिकार उसके माँस का खाने के लिए किया था।
इस शंका का उचित उत्तर स्वयं रामायण में अरण्य कांड में मिलता हैं।
माता सीता श्री रामचंद्र जी से स्वर्ण मृग को पकड़ने के लिए इस प्रकार कहती हैं-
यदि आप इसे जीवित पकड़ लेते तो यह आश्चर्य प्रद पदार्थ आश्रम में रहकर विस्मय करेगा- अरण्यक कांड सर्ग ४३ श्लोक १५
और यदि यह मारा जाता हैं तो इसकी सुनहली चाम को चटाई पर बिछा कर मैं उस पर बैठना पसंद करुँगी।-
अरण्यक कांड सर्ग ४३ श्लोक १९
इससे यह निश्चित रूप से सिद्ध होता हैं की स्वर्ण हिरण का शिकार माँस खाने के लिए तो निश्चित रूप से नहीं हुआ था।
वीर हनुमान जी का सीता माता के साथ वार्तालाप
वीर हनुमान जब अनेक बाधाओं को पार करते हुए रावण की लंका में अशोक वाटिका में पहुँच गये तब माता सीता ने श्री राम जी का कुशल क्षेम पूछा तो उन्होंने बताया की
राम जी न तो माँस खाते हैं और न ही मद्य पीते हैं। :-वाल्मीकि रामायण सुंदर कांड ३६/४१
सीता का यह पूछना यह दर्शाता हैं की कहीं श्री राम जी शोक से व्याकुल होकर अथवा गलत संगत में पढ़कर वेद विरुद्ध अज्ञान मार्ग पर न चलने लगे हो।
अगर माँस भक्षण उनका नियमित आहार होता तब तो सीता जी का पूछने की आवश्यकता ही नहीं थी।
इससे वाल्मीकि रामायण में ही श्री राम जी के माँस भक्षण के समर्थन में दिए गये श्लोक जैसे
अयोध्या कांड ५५/३२,१०२/५२,९६/१-२,५६/२४-२७
अरण्यक कांड ७३/२४-२६,६८/३२,४७/२३-२४,४४/२७
किष्किन्धा कांड १७/३९
सभी प्रक्षिप्त सिद्ध होते हैं।
वेद और मनु स्मृति की माँस विरुद्ध साक्षी
वेद में माँस भक्षण का स्पष्ट विरोध
ऋग्वेद ८.१०१.१५ – मैं समझदार मनुष्य को कहे देता हूँ की तू बेचारी बेकसूर गाय की हत्या मत कर, वह अदिति हैं अर्थात काटने- चीरने योग्य नहीं हैं.
ऋग्वेद ८.१०१.१६ – मनुष्य अल्पबुद्धि होकर गाय को मारे कांटे नहीं.
अथर्ववेद १०.१.२९ –तू हमारे गाय, घोरे और पुरुष को मत मार.
अथर्ववेद १२.४.३८ -जो(वृद्ध) गाय को घर में पकाता हैं उसके पुत्र मर जातेहैं.
अथर्ववेद ४.११.३- जो बैलो को नहीं खाता वह कस्त में नहीं पड़ता हैं
ऋग्वेद ६.२८.४ –गोए वधालय में न जाये
अथर्ववेद ८.३.२४ –जो गोहत्या करके गाय के दूध से लोगो को वंचित करे ,तलवार से उसका सर काट दो
यजुर्वेद १३.४३ –गाय का वध मत कर , जो अखंडनिय हैं
अथर्ववेद ७.५.५ –वे लोग मूढ़ हैं जो कुत्ते से या गाय के अंगों से यज्ञ करते हैं
यजुर्वेद ३०.१८-गोहत्यारे को प्राण दंड दो
स्वामी दयानंद के अनुसार मनु स्मृति में वही ग्रहण करने योग्य हैं जो वेदानुकुल हैं और वह त्याग करने योग्य हैं जो की वेद विरुद्ध हैं।
महाभारत में मनु स्मृति के प्रक्षिप्त होने की बात का समर्थन इस प्रकार किया हैं:-
महात्मा मनु ने सब कर्मों में अहिंसा बतलाई हैं, लोग अपनी इच्छा के वशीभूत होकर वेदी पर शास्त्र विरुद्ध हिंसा करते हैं। शराब, माँस, द्विजातियों का बली,ये बातें धूर्तों ने फैलाई हैं, वेद में यह नहीं कहा गया हैं। महाभारत शांति पर्व मोक्ष धर्म अध्याय २६६
माँस खाने के विरुद्ध मनु स्मृति की साक्षी
जिसकी सम्मति से मारते हो और जो अंगों को काट काट कर अलग करता हैं। मारने वाला तथा क्रय करने वाला,विक्रय करनेवाला, पकानेवाला, परोसने वाला तथा खाने वाला ये ८ सब घातक हैं। जो दूसरों के माँस से अपना माँस बढ़ाने की इच्छा रखता हैं, पितरों, देवताओं और विद्वानों की माँस भक्षण निषेधाज्ञा का भंग रूप अनादर करता हैं उससे बढ़कर कोई भी पाप करने वाला नहीं हैं।
मनु स्मृति ५/५१,५२
मद्य, माँस आदि यक्ष,राक्षस और पिशाचों का भोजन हैं। देवताओं की हवि खाने वाले ब्राह्मणों को इसे कदापि न खाना चाहिए।
मनु स्मृति ११/७५
जिस द्विज ने मोह वश मदिरा पी लिया हो उसे चाहिए की आग के समान गर्म की हुई मदिरा पीवे ताकि उससे उसका शरीर जले और वह मद्यपान के पाप से बचे। मनुस्मृति ११/९०
इसी अध्याय में मनु जी ने श्लोक ७१ से ७४ तक मद्य पान के प्रायश्चित बताये हैं।
इस सब प्रमाणों और सन्दर्भों को पढ़कर मेरे विचार से पाठकों के मन में जो शंका हैं उसका समाधान निश्चित रूप से हो गया होगा।
डॉ विवेक आर्य
31 comments:
Rohan Agrawal10 June 2013 at 07:55
Dr. Vivek Ji,
Very nice analysis. I always doubt that Valmiki Ramayan is a distorted version - original version was corrupted by mughal invaders to insult n confuse Hinduism.
One question: Why Raavan went into disguise to kidnap Mata Sita? He always think that he is much stronger, why he just did'nt confront Shri Raam & Laxman directly?
Dr Vivek Arya10 June 2013 at 21:34
जो भी व्यक्ति असत्य मार्ग का पालन कर रहा होता हैं वह घमंडी भी हो जाता हैं। रावण ने भी श्री राम और श्री लक्ष्मण के विषय में ऐसा ही सोचा था इसीलिए उनसे सीधा टकराने की बजाय सीता का हरण कर उनको नीचा दिखाने की चेष्ठा की थी। पर सत्य मार्गपर चलने वाले अनेक कष्ट सहते हुए भी शत्रु को उसकी दुष्टता का फल अवश्य देते हैं और यही श्री राम जी ने किया। रावण के घमंड ने उसका नाश करवा दिया और यही सीता हरण का कारण था।
excellent
Ritesh Pandey21 June 2013 at 18:19
(1) .Rigwed-6.28.4
gayein Vadhalaya mein na jayein.
Kya us samay Vadhalay hote the? Vedik kaal mein gay k vadhalaya hone ka kya prayojan tha??
(2). Atharvawed- 7.5.5
we log moodh hain jo gay ya kutte k ang se yagya krte hain.
Kya vedik kaal mein kuchh log pashuo k ang se yagya kriya sampann krte the?
Kyu ki agar aisa na hota to kisi ko es bare me likhne ki jrurat hi nahi padti.
(3). Aranyak kand- 43.19
Maa Sita ne kaha ki wo mrig-charm se bni chatai pr baithna pasand krti.
* jahan mans bhakshan ek paap karm mana jata hai wahin us jeev k mans ko chhod unki chamdi pr baith kr saare dharmik karya kaise kiye ja sakte hain??
Kya us jamane mein Chamde ko sukhane ya unse durgandh nikaal lene ki koi vaigyanik vidhi thi?
Ye sadharan manviya prakreeti hai, jo aadmi maans nh khata us se mans ki durgandh bhi bardast hi nahi hoti. Fir kaise Maa Sita, ya Bhagwan Bholenath, yaa aur bhi kayi saadhu bhi Mrig-charm ya BAAGH-charm pr baith bhi jaate the? Bhagwan Shiv aur kayi Rishi-muni mrig-charm pr baith kr pooja path sampann kaise krte the??
Mere sawal anyatha na lein. Main jaankari k liye pooch rha hun kyu ki mujhe kayi logo ko jabab dena pdta hai, aur aise waqt pr main niruttar ho jata hun.
Aap mujhe knowlwdge k sahi source lage isliye poochha.
Agr mujhe apna jabab Mail bhi kar dein to badi kripa hogi.
Aapka mitra
Ritesh pandey
Ritesh Pandey21 June 2013 at 18:25
Maine ek facebok page ("Indian muslim") pr ye dekha
maine ved pdha nahi, isliye mujhe iska jabaab nhi aaya
aap de sakein to aabhari hounga
*****वेद -शस्त्रों मे मांस -भक्षण के विधान ********
वैदिक साहित्य से पता चलता है की प्राचीन आर्य -ऋषि और याज्ञिक ब्राह्मण सूरा-पान और मांसाहार के बड़े शौकीन थे । यज्ञों मे पशु बाली अनिवार्य था बली किए पशु मांस पर पुरोहित का अधिकार होता था ,और वही उसका बटवारा भी करता था। बली पशुओ मे प्राय;घोडा ,गौ ,बैल अज अधिक होते थे.
******ऋग्वेद मे बली के समय पड़े जाने वाले मंत्रो के नमूने पड़िए;-
1- जिन घोड़ो को अग्नि मे बली दी जाती है ,जो जल पिता है जिसके ऊपर सोमरस रहता है ,जो यज्ञ का अनुष्ठाता है ,उसकी एवम उस अग्नि को मै प्रणाम करता हु।
( ऋग्वेद 10,91,14)
2- इंद्रा कहते है ,इंद्राणी के द्वारा प्रेरित किए गए यागिक लोग 15-20 सांड काटते और पकाते है । मै उन्हे खाकर मोटा होता हू । -ऋग्वेद 10,83,14
3- जो गाय अपने शरीर को देवों के लिए बली दिया करती है ,जिन गायों की आहुतियाँ सोम जानते है ,हे इंद्रा! उन गायों को दूध से परिपूर्ण और बच्छेवाली करके हमारे लिए गोष्ठ मे भेज दे ।
- ऋग्वेद 10,16,92
4- हे दिव्य बधिको!अपना कार्य आरंभ करो और तुम जो मानवीय बधिक हो ,वह भी पशु के चरो और आग घूमा चुकाने के बाद पशु पुरोहित को सौपदो। (एतरे ब्राह्मण )
5*-*****एतद उह व परम अन्नधम यात मांसम। (सत्पथ ब्राह्मण 11,4,1,3)
अर्थ ;- सटपथ ब्राह्मण कहता है, की जीतने भी प्रकार के खाद्द अन्न है,उन सब मे मांस सर्वोतम है
*******इस प्रकार ऐसे कई उदाहरण है जो वेदो-शास्त्रो मे मांस भक्षण के समर्थन मे आपको मिल जाएंगे ।
महर्षि याज्यावल्क्या ने षत्पथ ब्राह्मण (3/1/2/21) में कहा हैं कि: -"मैं गोमांस ख़ाता हू, क्योंकि यह बहुत नरम और स्वादिष्ट है."
आपास्तंब गृहसूत्रां Apastamb Grihsutram (1/3/10) मे कहा गया हैं,"गाय एक अतिथि के आगमन पर, पूर्वजों की'श्रद्धा'के अवसर पर और शादी के अवसर पर बलि किया जाना चाहिए."
ऋग्वेद (10/85/13) मे घोषित किया गया है,"एक लड़की की शादी के अवसर पर बैलों और गायों की बलि की जाती हैं."
पिबा सोममभि यमुग्र तर्द ऊर्वं गव्यं महि गर्णानैन्द्र
वि यो धर्ष्णो वधिषो वज्रहस्त विश्वा वर्त्रममित्रियाशवोभिः ||
वशिष्ठ धर्मसुत्रा (11/34)
लिखा हैं,"अगर एक ब्राह्मण'श्रद्धा'या पूजा के अवसर पर उसे प्रस्तुत किया गया मांस खाने से मना क
र देता है, तो वह नरक में जाता है."पिबा सोममभि यमुग्र तर्द ऊर्वं गव्यं महि गर्णानैन्द्र | वि यो धर्ष्णो वधिषो वज्रहस्त विश्वा वर्त्रममित्रियाशवोभिः ||
वशिष्ठ धर्मसुत्रा (11/34) लिखा हैं,"अगर एक ब्राह्मण'श्रद्धा'या पूजा के अवसर पर उसे प्रस्तुत किया गया मांस खाने से मना कर देता है, तो वह नरक में जाता है."
हिंदू धर्म के सबसे बड़े प्रचारक स्वामी विवेकानंद ने इस प्रकार कहा:"तुम्हें जान कर आश्चर्या होगा है कि प्राचीन हिंदू संस्कार और अनुष्ठानों के अनुसार, एक आदमी एक अच्छा हिंदू नही हो सकता जो गोमांस नहीं खाए. (The Complete Works of Swami Vivekanand, volume.3, page no. 536)
dhanyawad
aapka mitra
Ritesh pandey
IIT BHU
Dr Vivek Arya21 June 2013 at 21:29
क्या वेदों में मांसाहार हैं?
वेदों में मांसाहार एवं हवन में पशु बलि जैसे अश्वमेध में अश्व की, अजमेध में अज की , नरमेध में नर बलि का विधान हैं जिससे वेद मात्र बोझिल कर्मकांड की पुस्तक प्रतीत होती हैं
स्वामी दयानंद जी का वेदभाष्य यूँ तो कई पहलुओं में क्रांतिकारी हैं पर इसमें सबसे ज्यादा प्रभावशाली विचार मांस भक्षण ,पशुबलि, कर्मकांड आदि को लेकर जो अन्धविश्वास हमारे देश में फैला था उसका निवारण कर स्वामी जी ने साधारण जनमानस के मन में वेद के प्रति श्रद्दा भाव उत्पन्न कर दिया. सायण, महीधर आदि के वेद भाष्य में मांसाहार, हवन में पशुबलि, गाय, अश्व, बैल आदि का वध करने की अनुमति थी जिसे देख कर मोक्ष मुलर, विल्सन , ग्रिफ्फिथ आदि पाश्चात्य विद्वानों ने वेदों से मांसाहार का भरपूर प्रचार कर न केवल पवित्र वेदों को कलंकित किया अपितु लाखों निर्दोष प्राणियो को क़त्ल करवा कर मनुष्य जाति को पापी बना दिया. मध्य काल में हमारे देश में वाम मार्ग का प्रचार हो गया था जो मांस, मदिरा, मैथुन, मीन आदि से मोक्ष की प्राप्ति मानता था. आचार्य सायण आदि यूँ तो विद्वान थे पर वाम मार्ग से प्रभावित होने के कारण वेदों में मांस भक्षण एवं पशु बलि का विधान दर्शा बैठे. निरीह प्राणियों के इस तरह कत्लेआम एवं भोझिल कर्मकांड को देखकर ही महात्मा बुद्ध एवं महावीर ने वेदों को हिंसा से लिप्त मानकर उन्हें अमान्य घोषित कर दिया जिससे वेदों की बड़ी हानि हुई एवं अवैदिक मतों का प्रचार हुआ जिससे क्षत्रिय धर्म का नाश होने से देश को गुलामी सहनी पड़ी. इस प्रकार वेदों में मांसभक्षण के गलत प्रचार के कारण देश की कितनी हानि हुई इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.
सर्वप्रथम तो स्वामी दयानंद ने चार वेद संहिताओ को परम प्रमाण माना. उन्होंने कहाँ की दर्शन,उपनिषद, ब्राह्मण, सूत्र, स्मृति, रामायण, महाभारत, पुराण आदि तभी मान्य हैं जब वे वेदानुकुल हैं. स्वामी दयानंद ने आवाहन किया की चारों वेदों में कहीं भी मांस भक्षण का विधान नहीं हैं, न देवताओं को मांस खिलाने का, न मनुष्यों को खिलाने का विधान हैं.
वेदों में गाय के नाम
यजुर्वेद ८.४३ में गाय को इडा (स्तुति की पात्र) , रनता (रमयित्री), हव्या (उसके दूध की हवन में आहुति दिए जाने से ), काम्या (चाहने योग्य होने से) , चंद्रा (अह्ह्यादायानि होने से ) , ज्योति (मन आदि को ज्योति प्रदान करने से ), अदिति (अखंडनिय होने से) , सरस्वती (दुग्ध्वती होने से ) , मही (महिमा शालिनी होने से), विश्रुती (विविध रूपों में श्रुत होने से) और अघन्या (न मारी जाने योग्य) कहा गया हैं.
इन नामों से यह स्पष्ट सिद्ध होता हैं की वेदों में गाय को सम्मान की दृष्टि से देखा गया हैं क्यूंकि वो कल्याणकारी हैं.
गाय पूज्य हैं
अथर्ववेद १२.४.६-८ में लिखा हैं जो गाय के कान भी खरोंचता हैं, वह देवों की दृष्टी में अपराधी सिद्ध होता हैं. जो दाग कर निशान डालना चाहता हैं, उसका धन क्षीण हो जाता हैं. यदि किसी भोग के लिए इसके बाल काटता हैं, तो उसके किशोर मर जाते हैं.
अथर्ववेद १३.१.५६ में कहाँ हैं जो गाय को पैर से ठोकर मरता हैं उसका मैं मूलोछेद कर देता हूँ.
गाय, बैल आदि सब अवध्य हैं
ऋगवेद ८.१०१.१५ – मैं समझदार मनुष्य को कहे देता हूँ की तू बेचारी बेकसूर गाय की हत्या मत कर, वह अदिति हैं अर्थात काटने- चीरने योग्य नहीं हैं.
ऋगवेद ८.१०१.१६ – मनुष्य अल्पबुद्धि होकर गाय को मारे कांटे नहीं.
अथर्ववेद १०.१.२९ – तू हमारे गाय, घोरे और पुरुष को मत मार.
अथर्ववेद १२.४.३८ -जो (वृद्ध) गाय को घर में पकाता हैं उसके पुत्र मर जाते हैं.
अथर्ववेद ४.११.३- जो बैलो को नहीं खाता वह कस्त में नहीं पड़ता हैं
ऋगवेद ६.२८.४ – गोए वधालय में न जाये
अथर्ववेद ८.३.२४ – जो गोहत्या करके गाय के दूध से लोगो को वंचित करे , तलवार से उसका सर काट दो
यजुर्वेद १३.४३ – गाय का वध मत कर , जो अखंडनिय हैं
अथर्ववेद ७.५.५ – वे लोग मूढ़ हैं जो कुत्ते से या गाय के अंगों से यज्ञ करते हैं
यजुर्वेद ३०.१८- गोहत्यारे को प्राण दंड दो
वेदों से गो रक्षा के प्रमाण दर्शा कर स्वामी दयानन्द जी ने महीधर के यजुर्वेद भाष्य में दर्शाए गए अश्लील, मांसाहार के समर्थक, भोझिल कर्म कांड का खंडन कर उसका सही अर्थ दर्शा कर न केवल वेदों को अपमान से बचा लिया अपितु उनकी रक्षा कर मानव जाती पर भारी उपकार भी किया.
उदहारण के लिए
महीधर अपने भाष्य में यजुर्वेद २३/१९ का अर्थ इस प्रकार करते हैं- सब ऋत्विजों के सामने यजमान की स्त्री घोरे के पास सोवे, और सोती हुई घोरे से कहे की, हे अश्व ! जिससे गर्भ धारण होता हैं, ऐसा जो तेरा वीर्य हैं उसको मैं खैंच के अपनी योनी में डालूं , तथा तू उस वीर्य को मुझमें स्थापन करने वाला हैं.
Dr Vivek Arya21 June 2013 at 21:29
ऐसे अश्लील एवं व्यर्थ अर्थ को नक्कारते हुए स्वामी दयानंद इस मंत्र का सही अर्थ इस प्रकार करते हैं जो परमात्मा गणनीय पदार्थो का पालन करने हारा हैं उसको हम लोग पूज्य बुद्धि से ग्रहण करते हैं जो की हमारे मित्र और मोक्ष सुख आदि का प्रियपति तथा हमको आनंद में रख कर सदा पालन करने वाला हैं, उसको हम लोग अपना उपास्य देव जन के ग्रहण करते हैं. जो की विद्या और सुख आदि का निधि अर्थात हमारे कोशो का पति हैं, उसी सर्वशक्तिमान परमेश्वर को हम अपना राजा और स्वामी मानते हैं. तथा जो की व्यापक होके सब जगत में और सब जगत उसमें बस रहा हैं, इस कारण से उसको वसु कहते हैं. हे वसु परमेश्वर! जो आप अपने सामर्थ्य से जगत के अनादिकरण में गर्भ धारण करते हैं, अर्थात सब मूर्तिमान द्रव्यों को आप ही रचते हैं.
महीधार अपने भाष्य में यजुर्वेद २३/२० का अर्थ इस प्रकार करते हैं- यजमान की स्त्री घोरे के लिंग को पकड़ कर आप ही अपनी योनी में डाल देवे.
ऐसे अश्लील एवं व्यर्थ अर्थ को नक्कारते हुए स्वामी दयानंद इस मंत्र का सही अर्थ इस प्रकार करते हैं राजा और प्रजा हम दोनों मिल के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि के प्रचार करने में सदा प्रवित रहे. जिससे हम दोनों परस्पर तथा सब प्राणियो को सब सुख से परिपूर्ण कर देवें. जिस राज्य में मनुष्य लोग अच्छी प्रकार ईश्वर को जानते हैं, वही देश सुख युक्त होता हैं. इससे राजा और प्रजा परस्पर सुख के लिए सद्गुणों के उपदेशक पुरुष की सदा सेवा करे, और विद्या तथा बल को सदा बदावे.
यजुर्वेद के २३ वें अध्याय का इसी प्रकार महीधर ने अत्यंत अश्लील अर्थ किया हैं जिसका सही अर्थ भाष्यकार-शंका-समाधान-आदि-विषय नामक पाठ में स्वामी दयानंद द्वारा रचित ऋगवेदादि भाष्य भूमिका में पड़ा जा सकता हैं.
पाठक स्वामी दयानंद द्वारा किये गए वेदों के क्रन्तिकारी भाष्य के महत्व को समझ गए होंगे.
- डॉ विवेक आर्य
Bhai Indian Muslim log hamari nasal ke wo log hai jinke dimag me Kuran ka jahar hai. ham chahe Hindu Dharm ka satik palan nahi kar pate par khush nasib hai ki hamne punya nahi kamaye par Islamic na bane isliye paap se bhi dur hai.
Nageshwar Singh Baghel21 June 2013 at 23:17
बहुत ही सुन्दर और ज्ञान बर्धक प्रस्तुति ...!
Nageshwar Singh Baghel21 June 2013 at 23:18
पर आपकी ब्लाक को ज्वाइन कैसे करे ?
Dr Vivek Arya22 June 2013 at 04:43
apka email id bata dijiye mein follower list me use add kar dunga.
dhanyavad
dr vivek arya
Ritesh Pandey22 June 2013 at 04:19
Shayad aapka dhyan mere pahle question pr nhi gya
(1).Rigwed-6.28.4
gayein Vadhalaya mein na jayein.
Kya us samay Vadhalay hote the? Vedik kaal mein gay k vadhalaya hone ka kya prayojan tha??
(2). Atharvawed- 7.5.5
we log moodh hain jo gay ya kutte k ang se yagya krte hain.
Kya vedik kaal mein kuchh log pashuo k ang se yagya kriya sampann krte the?
Kyu ki agar aisa na hota to kisi koes bare me likhne ki jrurat hi nahi padti.
(3). Aranyak kand- 43.19
Maa Sita ne kaha ki wo mrig-charm se bni chatai pr baithna pasand krti.
* jahan mans bhakshan ek paap karm mana jata hai wahin us jeev k mans ko chhod unki chamdi pr baith kr saare dharmikkarya kaise kiye ja sakte hain??
Kya us jamane mein Chamde ko sukhane ya unse durgandh nikaal lene ki koi vaigyanik vidhi thi?
Ye sadharan manviya prakreeti hai, jo aadmi maans nh khata us se mans ki durgandh bhi bardasthi nahi hoti. Fir kaise Maa Sita, ya Bhagwan Bholenath, yaa aur bhi kayi saadhu bhi Mrig-charm ya BAAGH-charm pr baith bhi jaate the? Bhagwan Shiv aur kayi Rishi-muni mrig-charm pr baith kr pooja path sampann kaise krte the??
Mere sawal anyatha na lein. Main jaankari k liye pooch rha hun kyuki mujhe kayi logo ko jabab denapdta hai, aur aise waqt pr main niruttar ho jata hun.
Aap mujhe knowlwdge k sahi source lage isliye poochha.
Agr mujhe apna jabab Mail bhi kar dein to badi kripa hogi.
Aapka mitra
Ritesh pandey
Dr Vivek Arya22 June 2013 at 04:47
apke sabhi prasnon ke uttar mere pass hein par we pustak ke roop mein hein soft copy ke roop mein nahin hein.
agar aap in prasanon ka uttar janna chahte hein to mein apko pustakon ka bata deta hun unhe padhna apko swayam hi padega.
Dr Vivek Arya
CA. Rahesh Kandoi26 August 2013 at 11:22
निश्चय ही आपने बहुत सुंदर तथ्य जुटाये है, अच्छा अध्ययन किया है एवं धर्म सेवार्थ आपने ब्लोग बनाकर अपना काफी समय विनियोग किया है आपको साधुवाद।
जिस प्रकार बुद्ध के समय में आर्य यज्ञ आदि में बलि, माँसभक्षण आदि में रत थे जिस कारण बुद्ध ने ईश्वर प्राप्ति के लिए करूणा, अहिंसा, निरामिष भोजन का प्रचार किया।
अब मेरा आपसे निवेदन यह है कि चाहे बुद्ध हो या स्वामी दयानंद, या सायण या महीधर, या शंकराचार्य या महात्मा गाँधी, या फिर मैं हो या आप। सभी ने अपने अपने मत को ही सही मान कर दूसरों पर आरोपित करने का प्रयास किया है।
आप मेरा निवेदन स्वीकार करते हुए कुछ दिन इस बात पर विचार करें कि "क्या माँसभक्षण या मदिरापान करने वाला व्यक्ति परमात्मा को नहीं प्राप्त कर सकता?"
मेरे विचार से माँस, मछली, मदिरा आदि से शरीर में सामान्य से अधिक बल का संचार होता है।यदि साधारण मनुष्य (जिसकी चित्त वृत्तियाँ उसके संयम में न हो) इनका सेवन करेगा तो असंतुलित बल पाकर उत्पात करेगा और परिणामस्वरुप स्वयं की तथा दूसरों की हानि ही करेगा। इसलिए इन पदार्थों को त्याज्य, बुरे तथा निंदनीय कहा गया।
किंतु योग्य अधिकारी व्यक्ति समर्थ गुरु के सानिध्य में इनका सेवन करता है तो अपनी आत्म उन्नति करता है। समाज का हित करता है।
शक्ति बिना न सृजन संभव है, न साधना, न विकास और न विज्ञान।
मुझे पीङा है कि हम अहिंसा के अतिरेक पर आ गये हैं। करूणा और अहिंसा के वेष में कायरता हम पर इतनी हावी हो गई है कि माँस के लिए तो हत्या करना दूर हम आत्मरक्षा के लिए भी किसी जानवर तक को मारने में अपने आप को असहज महसूस करने लगे हैं।
कुछ व्यक्ति मैंने देखे जो रूधिर देखने मात्र से चक्कर खा पङते हैं। और वोह भी भगवान राम के भक्त। हनुमान जी के भक्त।
जो जैसा माने उसको वैसी ही स्वतंत्रता है।
आपसे निवेदन किया कि कहीं समाज का भला करने के चक्कर में समाज को नष्ट न कर बैठें।
शराब बुरी चीज है। लेकिन मेरे मित्र! इसके भी उपयोग हैं। अगर युद्ध के समय सैनिक शराब पीकर अपनी बुद्धि और विवेक को नष्ट ना करे और अपने शरीर की अमानुषि शक्तियों (चाहे आप उन्हें राक्षसी शक्ति कहो चाहे दैविय शक्ति) को ना जगाये तो वह सैनिक भी जीना चाहेगा, वेतन, भत्ते, मैडल कितने ही लालच दे दो, कतई अपनी जान जोखिम में डाल कर युद्ध के लिए नहीं जाएगा।
क्योंकि हर सैनिक की देशभक्ति की भावना इतनी उत्कृष्ट नहीं होती कि वह पूर्ण विवेक में भी देश की रक्षा के लिए मरने- मारने को तैयार हो सके तो उन्हे अपनी भावनाऔं को भङकाने के लिए उत्तेजक पदार्थों का सहारा लेना पङता है।
इसी प्रकार दृढ निष्ठावान और आत्मबल से परिपूर्ण लोग बिना किसी और अवलंबन के भी चित्त को स्थिर कर योग मार्ग का अनुसरण कर परमात्मा का साक्षात्कार किए हैं
तो फिर जिनका चित्त अपने वश में नहीं, जिनका निश्चय इतना दृढ नहीं आत्मबल इतना तेज नहीं उन्हीं लोगों के कल्याण के लिए हिंदू धर्म में माँस, मदिरा आदि का सदुपयोग किया गया है कि बाहरी अवलंबन से (शराब आदि से) चित्त को उत्तेजित करके मंत्र जप में लगा दिया जाय तो जो मन साधारण अवस्था में कई वर्षों के प्रयास से भी आत्मा में स्थिर नहीं होता, मद्य के प्रभाव से चुटकियों में होने लगता है।
जैसे समर्थ लोग पैदल ही वैष्णों देवी के दर्शन कर आते हैं तो अशक्त जन पिट्ठू या खच्चर आदि का सहारा लेकर देवी के दर्शन का लाभ लेते हैं।
अब जैसे खच्चर तो सवारी है। अच्छा या बुरा कुछ भी नहीं। आप चाहे खच्चर पर बैठ कर देवी के दर्शन के लिए जाओ चाहे किसी वेश्या के पास, आप पर निर्भर है। खच्चर को कोई आपत्ति नहीं।
एसे ही शराब पीकर झगङा करे कि बलात्कार कि मंत्रजप और साधना यह पीने वाले परनिर्भर है।
मैंने माँ जगदम्बा की कृपा से इसका काफी सदुपयोग किया है तथा अनेकों (सैंकङों) साधको की सिद्धिप्राप्ति में सहयोगी एवं मार्गदर्शक बना हूं। माँस मद्य मैथुन के खच्चर पर चढे बिना, योग्य गुरु के अभाव में आजकल के शक्तिविहिन, संकल्पविहीन साधक आत्मसाक्षात्कार तो दूर, छोटी मोटी साधनाएं करने में भी असफल होते हैं। फिर शास्त्रों को झूठा और मिलावटी बताते हैं।
आपसे निवेदन है कि सिर्फ शब्द कौशल से धर्म के तत्व की, सही गलत की व्याख्या नहीं होती। शहद भी मीठा होता है और गुङ भी।
दोनों का मिठास शब्दों से अंतर कर पाना कठिन है।
निवेदन है कि जगदंबा से प्रार्थना करें कि योग्य गुरु आपको मिले तो उसके सानिध्य में जानें कि पशुबलि या माँस का हमारे जीवन में क्या महत्व है। कैसे हम इनके सहयोग से जीवन के पार जा सकते हैं
मैंने प्रत्यक्ष अनुभव किया है। मेरे अनुभव के सामने आपके तर्क सिर्फ शब्दों का अनुभवहीन विलास प्रतीत हुए, मन में हिंदू समाज को नपुंसकता की ओर जाते देख पीङा है इसलिए आपके सामने मेरा मत रखा है। शेष जगदम्बा जाने।
Dhruv Kr Sharma4 July 2015 at 10:28
चार प्रकार के जीवित संसार में हैं स्वेदज- जिनका जन्म नमी या पसीने से हुआ। अंडज- जिनका जन्म अंडे से हुआ। जरायुज- जिनका जन्म गर्भ से हुआ। उद्भिज- जिनका जन्म धरती फाड़ कर हुआ। स्वेदज किट पतेगे आदि। अंडज उद्भिज और जरायुज मल में जन्म लेते हैं या मलीय मार्ग से जन्मते है़। सिर्फ पेड़ पौधे मल से उत्पन्न नहीं होते इसलिए खाने योग्य हैं। क्या पता क्यों बिना पढ़े लिखे लोग काबिल होने का दंभ भरने लग जाते हैे।
Ritesh Pandey22 June 2013 at 21:32
Bdi kripa hogi agar aap un pustko ki downloading link isi reply mein de skaein
ya un pustko ki copy mujhe mail kr sakein.
Mera email address
woritesh@gmail.com
ya
woritesh@yahoo.com
ya
woritesh@rediffmail.com
aap mujhe facebook pr bhi inbox mein file attach kr k bhej skte hain
www.facebook.com/woitesh
ya fir, mere gmail account ko search box me likhiyega, mera Fb account khul jayega.
Agar aap Fb ya twitter par hain to main aapko follow krna chahunga. Kripya link awashya bhejein.
Aapka mitra
Ritesh pandey
IIT BHU
Dr Vivek Arya26 June 2013 at 00:48
mera email id drvivekarya@yahoo.com hein
aap in pustakon ko download kar padhiye
http://vedickranti.in/books-details.php?action=view&book_id=39
http://vedickranti.in/books-details.php?action=view&book_id=41
Dr Vivek Arya28 June 2013 at 00:51
ritesh ji kya apne yeh dono books download kar li hein
Ritesh Pandey24 June 2013 at 21:24
Main abhi bhi aapke uttar ki pratiksha kar rha hun. .
Kripya Meri yahoo email id ko apne follower list mein shamil kr lijiyega
Ritesh Pandey28 June 2013 at 04:16
Dusri wali kar li hai mobile se hi.
Pahli wali ki size 67 MB hai, aaj main raat ko library jaa kar download kr lunga
dhanyawad
kya aapne mujhe apni followers list mein add kar liya?
Agr nahi to ab kar lijiyega
Dr Vivek Arya29 June 2013 at 05:19
ritesh ji dono pustakon ko padh kar mujhe batana avashya ki apki shanka ka samadhna hua ki nahin hua
Ritesh Pandey4 July 2013 at 18:17
Vedo se sambndhit bhrantiyo ka kafi hadd tk samadhan hua hai..kafi gyanvardhak rha ye safar, iske liye aapko dhanyawad deta..
Abhi dusri kitab puri khatm nahi hai, uske pure hone par aapko soochit awashaya karunga..
Aapke blogs padhne k bad Aarya samaj k itihas aur Swami Dayanand k baare me padhne ki bahut jigyasa utpann huyi. . Fir maine Net par Satyarth Prakash ki Pdf Search ki aur mujhe mil bhi gyi, maine pdha bhi. Ved sambhndit kayi gadbadiyo ka pta wahan se bhi chla, lekin jab main Satyarth prakash search kr rha tha usi wqt ek aur kitab mili, "haq prakash bajabab satyarth prakash"
uska link ye raha
http://archive.org/details/Ved-aur-Swami-Dayanand-ghazi-mehmud-dharmpalisi beech
usme es lekhak ne pure aaryasamaj ko chunauti di hai ki koi iske tarqo ko kaat kr dikhaye..aasharya ki muje uske tarqo k jabab internet pr bhi nahi mile..
Aapko samay mila to padhiyega aur un prashno ka jabab dene ki kosish kijiyega.
Arya-samaj hmare hindu Samaj ka boudhik rakshakk rha hai
jahan bhi baat gyan aur taqo ki aayi hai, Arya-samaj hmesha aage bdha hai en badhao se Hindu dharm ki raksha ki hai..
Aap us pustak me dekhiyega ki kaise apne ko gyani btane wale musalman ne Swami Dayanand k Gyan ko adhura saabit krne ki puri kosish ki hai..
Mujhe apne vicharo se awgat jrur krayiyega. Ek baar fir se aapka bahut bahut dhanyavad
aapka mitra
Ritesh pandey
IIT BHU
Dr. Vivek Arya
Vedon me gaay ke vadh ka nishedh hone se ye saabit nahi hota ki anya pashu ka bhi nishedh hai
Vishvamitra ke yajna me jo asur vighna daal rahe hai wo yagna ke starting se kar rahe hai
jab ki pashu bali ka apna nirdharit samay hai
vaam marg ka ramayan se kya lena dena ?
yadi ye shlok prakshepit hai to kis ne prakshepit kiya aur kyun kiya ?
aur ek nahi do nahi 7-8 aise shlok hai poore ramayan me
तुकाराम चिंचणीकर11 September 2015 at 12:27
अभ्यासपूर्ण लेखन ! प्रणाम !
और एक महत्वपूर्ण बात है ! गीताप्रेस गोरखपूर वालोंकी रामायण में इस मिथ्या आरोपोंका सुंदर खंडण किया गया है ! वे भी पढे !
तुकाराम चिंचणीकर11 September 2015 at 12:33
गीता प्रेस कि महाभारत में प्रक्षिप्त श्लोकोन्का इसप्रकार खंडन दिया है !
सुराघटसहस्त्रेण मांसभूतौदनेन च !
यक्ष्ये त्वां प्रीयतां देवि पुरीं पुनरुपागता ! ८९ !
इस श्लोक के सुरा एवं मांस शब्दकि व्युत्पत्ती ऐसी दि गयी है
सुराघटसहस्त्रेण - सुरेषु देवेषु न घटन्ते न संतीत्यर्थः, तेषां सहस्त्रं तेन सहस्त्र संख्याक सूरदुर्लभ पदार्थेनेत्यर्थः !
मांसभूतौदनेन - "मांसभूतौदनेन मा नास्ति अंसो राजभागो यस्यां सा एव भूः पृथ्वी च व्रतं वस्त्रं च ओदनं च एतेषां समाहारः, तेन च त्वां यक्ष्ये !"
Oilgas News15 September 2015 at 10:19
Its really amazing
वेदों का ज्ञान केवल जानकारी के अभाव से ही लुप्तप्राय है
और इस दिशा में कार्य और रुचि नहीं होने के कारण अब यह अप्राप्य भी दिखता है।
Unknown7 January 2016 at 03:55
mr. rakesh, tum unn dhoort kapti kutil neech aur jungli mentality k muslims par bharosa mat karo, unka hamesha yehi kam rehta hai ki kaise Ved aur hindu dharm ko badnaam kiya jaye. islam ek backward, atyachaari religion hai. yeh bilkul saaf hai ki Swamy Dayanand k Satyarth Prakash k viruddh likhi gayi uss muslim ki pustak galat aur kaminepan ki mentality se prerit hai. un sooaro(pigs) ka apna religion islam totures, hatya, khoon kharaabaa se bhara hua hai. woh muhammed k followers hai, wahi muhammad jisne 50 se jyada ki umar mein ek 6 saal ki bachhi se shadi ki aur 9 saal ki umar mein uska rape kar diya. wohi muhammed jisne hazaro bekasur logo ko kroorta se maut k ghat utaraa. islam me rape allowed hai, jhoot bolna, dhoka dena, torture karna, aurato par julm karna, aur bhi naa jane kya kya. muslim logo k liye kisi ki jaan ki koi kimat nahi hai. janwaro (animals) ko to muslim aloo-pyaj ki tarah kaat dete hai. muhammad ek hatyara, lutera, pagal admi tha. islam Ishwar li nahi shaitan ki puja karta hai. islam, muhmad aur muslims k bare mein jitna likha jaye, woh kam hai. Tum lucky ho ki tum muslim paida nahi hue. tum in baato par dhyan dena chhod do ki dusre log hamare Mahaan Vedic hindu dharm k bare mein kya ut-pataang baatein karte hai, balki tum yeh kosis karo ki kaise in pigs ko mooh tod jawab diya jaye....
ABHAY KUMAR PANDEY2 March 2016 at 21:21
ati sundar
purushotam kumar3 December 2016 at 06:34
wah
purushotam kumar3 December 2016 at 08:01
suno re sala bakawas kiye ja rahe ho. ramayan aur devi durga ka bat karate ho pahale pata hai ki ram bhitare se kab ( janm) aaya tha usaka mirtu kab huaa. kuch pata nahi hai sala kewal jai ram jai ram bak raha hai. sab kewal pakhandi brahman ne apane pesa ke liye ye devi dewata ka jal bana rakha hai.
(1.)
Madar chod sita ke bare me sab bolata hai ( maine to kabhi is pakhandi grnth ramayan padi hi nahi) ki sita darti se paida hui. ye bhi sala aaj Baigyaniki duniya me sochane wali bat hai ki darati se kaise paida ho gya.
(2)
Ye madar chod ram aur isaka bhai log ke bare me bataya jata hai ki isaka janm yagy karwane se huaa. batao aaplog ki bina sex kiye kewal o land wala jag karwane se bacha paida ho jayega.
(3)
ye pakhandi ramayan me kahata hai ki bali - ram ke bich yudh huaa, ram- kumbhkarn, ram - indrjit, aur bahut ke sath huaa to sala usaka date kyu nahi batata hai. jaise panitpat ki dusara yedh 1556 me huaa is trah se.
(4)
sab kahate hai ram ( madhar chod) bhagwan hai aur ye sab janta hai. to ye bhosadi wala jab sita ko rawan le gya tha to kyu nahi pata apane aap kiya.
(5)
durga jo sali randi thi usako sab puja karata hai. o sali 9 raat mahisasur ke sath soi aur 10 wa raat usako chhal se mar di. ab batao bhai sahab jo sali apani pati ko n hi saki o hame kya hogi. batao ek katil ko maa bolate hai to wo mahisasur ka baap kyu n bolte ho.
(6)
sarawati ko tum murkho bidya ki mata kahate ho. batao ki usaki qulification kya hai kitani padi hai? kis college se pas ki hai? usaka date of birth kya hai? koi jankari nahi hai to fir ham kyu use bidya ki devi kahu. jisako pad likh kar bhi sarm nahi isaliye apane bap se sadi hote huye bhi bidya ki devi kahi jati hai. ye bhosadi wali land ki devi hai aur kuchh nahi.
(7)
alha u akabar karke kya musalim log sabit karna chahate hai ki main bhi akabar ka khandan ka hu. sala akabar to mugal tha aur musalim yahan ki mul niwasi fir bhi aalah ko nahi chhodate.
(8)
kale kalute kirisana ko bhawan bolata hai. sala kud to chor tha.
(9)
Aur to aur sala pakhandi brahaman ne ham log ko itana tak murkh banaya ki wo madar chod is hanuman ko bhi n chhoda jo sala ek bandar tha. achha ek bat batao bhai ki us ram ke samay bandar bhi udata kaise thai bina pankh ke saala aaj baigyanik yug me koi aisa takanik nahi aaya aur us samay itana bikasit tha? saala us samay bandar bhi aadami se bolata tha aur aaj sala gung ho gya.
DEKHO AAJ SE MURTI PUJA YA DEVI DEWATA KA PUJA CHHOD KAR APNE MATA - PITA KI PUJA KARO AUR DEKHO US DEVI DURGA SE JYADA AASIRWAD MILATA HAI YA NAHI.
YE DEWATA KA JAL PAKHANDI BRAHAMAN NE APANE ROJI ROTI KE LIYE YE AASAN JAL BUNA TAKI HAM BOLE BHALE LOG US JAL ME FASAKAR USE DAN DETE RAHE AUR USAKA ROJI ROTI CHALATA RAHE.
SAB BHAGAWAN KA KISSA BAKWAS HAI. PAKHANDI BARAHAMN DWARA RACHIT HAI.
MERE PAS SAMJHANE KE LIYE BAHUT KUCHA HAI PAR IS COMENT KE JARIYE BATANA SAMBHAW NAHI HAI.
MAIN AAP SABHI SE DONO HATH JODAKAR YEHI BAAT DUHARATA HU KI AAP BHAGWAN KO CHHODAKAR APANE MATA-PITA KA PUJA KARE AUR UANAKA DAYAN RAKHE. TABHI AAPAKO SACHA AASIRWAD MILEGA.
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