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शनिवार, सितंबर 18, 2010
सौरभ आत्रेय पोस्ट शंकराचार्य को कामकला का ग्यान कैसे हुआ पर वाह भाई वाह क्यों लोगो को असत्य बताकर अपनी दूकान चला रहे हो महाराज । इस कहानी में बिलकुल भी सत्य नहीं है और ना ही ऐसा कहीं इतिहास में लिखा है । सबसे पहले तो कामकला नाम की कोई चीज़ धर्मशास्त्रों में नहीं है । यह कामकला निकृष्ट वाममार्गियों की देन है । धर्मशास्त्रों में और महापुरुषों ने स्त्री और पुरुष का सयोंग सन्तान उत्पत्ति के लिये बताया है । न कि मनोरंजन के लिये । इस तरह की कहानियाँ और कामकला सब पाखण्डियों की देन है । चलो मैं इस लेख से सम्बन्धित आपसे कुछ प्रश्न करता हूँ ।1 यह कहानी आपने कहाँ पढ़ी । और किस महापुरुष द्वारा लिखी गयी है ? इसकी क्या प्रमाणिकता है ?2 कर्म का भोक्ता कौन होता है । आत्मा या शरीर ? यदि आत्मा होती है । तो इस झूठी कहानी के अनुसार 3 क्या परस्त्री से सम्भोग करना व्यभिचार और पाप के अन्तर्गत नहीं आता ?कृपया लोगो में अन्धविश्वास और भ्रम न बढ़ाएं । यह मेरी आप से विनती है। और लोगो से यह विनती है । कि बिना सोचे समझे । बिना प्रमाण के । बिना तर्क वितर्क के किसी की बातों पर ऐसे ही विश्वास न करें ।
****************** शंकराचार्य परकाय प्रवेश विध्या के निष्णात साधक थे । जब मंडन मिश्र और शंकराचार्य का शास्त्रार्थ हुआ तो ये तय हुआ । कि इनमें से जो हारेगा । वो दूसरे का शिष्य बन जायेगा । मण्डन मिश्र भारत के विख्यात विद्धान और ग्रहस्थ थे । उनकी पत्नी सरस्वती भी अत्यन्त विद्धान थी । शंकराचार्य संन्यासी थे । और उन्होंने शास्त्रार्थ के माध्यम से भारत विजय करने के उद्देश्य से अनेक यात्रायें की थी । मगर वे सर्वश्रेष्ठ तभी माने जा सकते थे । जब वे महाविद्वान मण्डन मिश्र को पराजित करते । इन दोनों के शास्त्रार्थ का निर्णय कौन करता ? क्योंकि कोई सामान्य विद्वान तो इसका निर्णय नही कर सकता था । अतः शंकराचार्य के अनुरोध पर निर्णय के लिये मिश्र की पत्नी सरस्वती का ही चयन किया गया ।
यह शास्त्रार्थ इक्कीस दिन चला और आखिरकार मण्डन मिश्र हार गये । यह देखकर सरस्वती ने निर्णय दिया कि मिश्र जी हार गये हैं । अतः वे शंकराचार्य का शिष्यत्व स्वीकार करें और संन्यास दीक्षा लें । यह कहकर वह विद्वान पत्नी निर्णायक पद से नीचे उतरी और शंकराचार्य से कहा । मैं मण्डन मिश्र की अर्धांगिनी हूं । अतः अभी तक मिश्र जी की आधी ही पराजय हुयी है । जब आप मुझे भी पराजित कर देंगे तब मिश्र जी की पूरी पराजय मानी जायेगी । यह बात एकदम सही थी । अबकी बार मण्डन मिश्र निर्णायक बने । सरस्वती तथा शंकराचार्य में शास्त्रार्थ होने लगा । इक्कीसवें दिन जब सरस्वती को लगा कि अब उसकी पराजय होने ही वाली है । तब उसने शंकराचार्य से कहा । अब मैं आपसे अंतिम प्रश्न पूछती हूं । और इस प्रश्न का भी उत्तर यदि आपने दे दिया । तो हम अपने आपको पराजित मान लेंगे । और आपका शिष्यत्व स्वीकार कर लेंगे । शंकराचार्य के हां कर देने पर सरस्वती ने कहा । सम्भोग क्या है ? यह कैसे किया जाता है । और इससे संतान का निर्माण किस प्रकार हो जाता है । यह सुनते ही शंकराचार्य प्रश्न का मतलब और उसकी गहरायी समझ गये । यदि वे इसी हालत में और इसी शरीर से सरस्वती के प्रश्न का उत्तर देते हैं तो उनका संन्यास धर्म खन्डित होता है । क्योंकि संन्यासी को बाल बृह्मचारी को संभोग का ग्यान होना असम्भव ही है ।
अतः संन्यास धर्म की रक्षा करने के लिये उत्तर देना सम्भव ही नहीं था । और बिना उत्तर दिये । हार तय थी । लिहाजा दोनों ही तरफ़ से नुकसान था । कुछ देर विचार करते हुये शंकराचार्य ने कहा । क्या इस प्रश्न का उत्तर अध्ययन और सुने गये विवरण के आधार पर दे सकता हूं ? या इसका उत्तर तभी प्रमाणिक माना जायेगा । जबकि उत्तर देने वाला इस प्रक्रिया से व्यवहारिक रूप से गुजर चुका हो । तब सरस्वती ने उत्तर दिया । कि व्यवहारिक ग्यान ही वास्तविक ग्यान होता है । यदि आपने इसका व्यवहारिक ग्यान प्राप्त किया है । अर्थात किसी स्त्री के साथ यौनक्रिया आदि कामभोग किया है । तो आप निसंदेह उत्तर दे सकते हैं । शंकराचार्य जन्म से ही संन्यासी थे । अतः उनके जीवन में कामकला का व्यावहारिक ग्यान धर्म संन्यास धर्म के सर्वथा विपरीत था । अतः उन्होंने उस वक्त पराजय स्वीकार करते हुये कहा । कि मैं इसका उत्तर छह महीने बाद दूंगा । तब शंकराचार्य ने मंडन मिश्र की पत्नी से छ्ह माह का समय लिया । और अपने शिष्यों के पास पहुँचकर कहा कि मैं छह महीने के लिये दूसरे शरीर में प्रवेश कर रहा हूँ । तब तक मेरे शरीर की देखभाल करना । यह कहकर उन्होनें अपने सूक्ष्म शरीर को उसी समय मृत्यु को प्राप्त हुये एक राजा के शरीर में डाल दिया । मृतक राजा अनायास उठकर बैठ गया । खैर राजा के अचानक जीवित हो उठने पर सब बहुत खुश हुये । लेकिन राजा की एक रानी जो अलौकिक ग्यान के विषय में जानती थी ।
उसे कुछ ही दिनों में मरकर जीवित हुये राजा पर शक होने लगा । क्योंकि पुनर्जीवित होने के बाद राजा केवल कामवासना में ही रुचि लेता था । और तरह तरह के प्रयोग सम्भोग के दौरान करता था । रानी को इस पर कोई आपत्ति न थी । उसकी तो मौजा ही मौजा थी । पर जाने कैसे वह ताङ गई कि राजा के शरीर में जो दूसरा है वो अपना काम समाप्त करके चला जायेगा । तब ये मौजा ही मौजा खत्म न हो जाय ।इस हेतु उसने अपने विश्व्स्त सेवकों को आदेश दिया जाओ । आसपास गुफ़ा आदि में देखो कोई लाश ऐसी है । जो संभालकर रखी गयी हो । या जिसकी कोई सुरक्षा कर रहा हो । ऐसा शरीर मिलते ही नष्ट कर देना । उधर राजा के शरीर में शंकराचार्य ने जैसे ही ध्यान लगाया । उन्हें खतरे का आभास हो गया और वो उनके पहुँचने से पहले ही राजा के शरीर से निकलकर अपने शरीर में प्रविष्ट हो गये । इस तरह शंकराचार्य ने कामकला का ग्यान प्राप्त किया । इस प्रकार सम्भोग का व्यवहारिक ग्यान लेकर शंकराचार्य पुनः अपने शरीर में आ गये । इस तरह से जिस शरीर से उन्होंने संन्यास धर्म स्वीकार किया था । उसको भी खन्डित नहीं होने दिया । इसके बाद पुनः मन्डन मिश्र की पत्नी सरस्वती को उसके संभोग विषयक प्रश्न का व्यवहारिक ग्यान से उत्तर देकर उन पर विजय प्राप्त की । और उन दोनों पति पत्नी को अपनी शिष्यता प्रदान की । और अपने आपको भारत का शास्त्रार्थ विजेता सिद्ध किया ।
**************
इस कहानी ? पर आपके अनुकूल प्रतिकूल विचारों का स्वागत है । भारत की प्राचीन ग्यान परम्परा को बडाने में अपने विचारों तर्कों द्वारा योगदान दें । राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ
at 9/18/2010 09:37:00 pm 4 टिप्पणियां:
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कपिल जी मैं वाकई INFLUENCE हो गया ।
kapil पोस्ट सभी देवताओं में श्रेष्ठ कौन है ? पर MAIN BHAGWAN KO Nahi MANTA . MERA BLOG PADKAR SHAYAD AAP BHI KUCH INFLUENSE HO JAAO . isitindya.blogspot.com .
लेखकीय - आज सुबह जब computer आन किया । तो सबसे पहले ये comment देखने को मिला । kapil जी के कहे अनुसार इनके ब्लाग पर पहुंचा । तो सिर्फ़ यही एक लेख था । जिसके लिये kapil जी
ने मुझे INFLUENCE होने के लिये कहा था । खैर । भोले भाले kapil जी और इनके अन्य कुछ मित्रों
VIKRAM SINGH geetanjali HEENA Devansh के विचार पढे । और आपस में इनके तारतम्य
को समझा । त्रेता द्वापर युग की चीजों को इन्होंने कलियुग की चीजों में कैसे convert किया । ये देखकर मुझे काफ़ी अच्छा लगा । और मैने खुद को kapil जी से काफ़ी INFLUENCE महसूस किया । तो आईये
आप भी kapil जी के विचार पढकर कुछ INFLUENCE हों । इसलिये ये लेख और उनके दोस्तों के
comment यहां प्रकाशित कर रहा हूं । रामायण vs predator by kapil साभार isitindya.blogspot.com .
रामायण vs predator
रविवार का दिन । सुबह ठीक 9 बजे मेरे दादी जी मेरे कमरे में आये । काकू जल्दी टीवी on कर रामायण का समय हो गया । आँखें मलते हुए मैंने टीवी on किया और दादी जी का favorite serial रामायण शुरू । दादी जी ने ज़मीन पर चटाई बिछाई ( पता नहीं क्यों वह रामायण हमेशा चटाई पर बैठकर ही देखते हैं । ) और उन्होंने हाथ जोड़कर टीवी के साथ गायन शुरू कर दिया " श्री गुरु चरण सरोज रज निजमन .. ।रामायण देखते हुए मैंने महसूस किया कि रामायण और आजकल के sci-fi movies में ज्यादा फर्क नहीं है । अगर रामायण के पात्रों क़ी पोशाक और संवाद बदल दिए जाएँ तो यह भी english sci-fi movies Predator , war of the worlds , star wars कि श्रेणी में ही आएगी । हालाँकि मैं पूरी तरह से नास्तिक इंसान हूं । नास्तिक का यह मतलब नहीं कि मैं भगवान के खिलाफ बोलता हूं मुझे बस ये लगता है कि भगवान जैसी कोई चीज़ ही नहीं है । फिर भी मैंने रामायण महाभारत पूरे देखे हैं और कुछ हद तक पढ़े भी हैं । लेकिन मैं अभी तक ये नहीं समझ पाया कि उस समय ऐसा क्या था जो आज नहीं है जिससे आप इतना प्रभावित हो गये और इन कहानियों के पात्रों को भगवान समझने लगे ? रावण सीता का अपहरण करके उसे अपने पुष्पक विमान में लेकर गया तो आज भी तो airplanes , helicopters हैं ? जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तो क्या पता द्रौपदी के कान में bluetooth fit हो जिससे उसने कृष्ण को phone कर दिया और कृ्ष्ण उसी समय अपने private jet में सवार होकर आ गया हो । महाभारत में कौरवों के पिता ध्रतराष्ट्र अंधे थे । श्रीकृष्ण ने संजय को दिव्य दृष्टि दी ताकि वह महाभारत का युद्ध महल में ही देखकर उसका हाल ध्रतराष्ट्र को सुना सके । तो आज भी हम टीवी पर live प्रोग्राम देखते हैं । England , Australia में क्रिकेट मैच चल रहा होता है और हम घर बैठे उसका सीधा प्रसारण देखते हैं । उस समय श्रीकृष्ण के पास ब्रहम अस्त्र था जिससे वह पूरी सृष्टि का विनाश कर सकते थे तो आज Obama के पास Nuclear power है । उस समय कर्ण के पास सुरक्षा कवच था तो आज भी high resistance life jackets होती हैं । उस समय दैवीय शक्ति कहते थे आज technology कहते हैं ।हम कहते हैं न कि उस समय ऋषि मुनि दूर पहाड़ो जगलों में तप करते थे जिससे उन्हें दैवीय शक्ति ( वरदान ) मिलती थी । तो हो सकता है कि उन्होंने पहाड़ो जंगलो में अपनी labs बनाई हों जिसमें वो experiments करते थे और जैसे ही कोई नई discovery होती वो उसे वरदान कहने लगते । जब सीता का स्वयंवर हो रहा था तो क्या पता वो धनुष electromagnet से जोड़ा गया हो और उसका password सिर्फ श्रीराम के पास हो या उन्होंने password hack किया हो । बल्कि आज technology ज्यादा विकसित है । उस समय तो यह शक्तियां सिर्फ राजा महाराजाओं के पास होती थी , आज mobile , TV , Internet , aeroplanes हर एक के पास हैं । लेकिन कुछ तो बात होगी के आप उन कहानियों के पात्रों में जिससे आप इतना प्रभावित हो गये और उन्हें ईश्वर कहने लगे । जवाब आप नीचे दे सकते हैं . ।
VIKRAM SINGH said...
yaar dekh, us samay aur is samay mein jo difference hai vo bata raha hun. sabse pehle pushpak vimaan, us samay ka koi bhi airplane hawa mein tabhi fly kar sakta tha jab plane mein vayu devta ki blessings ho. yaane no science no technology only magic ( magic of creator) jis tarah hum apne ishare se computer ko nachate hai, computer mein asambhav ko sambhav banate hai usi tarah bhagwan ka computer ye duniya hai jahan vo kisi bhi plane ko bus program karke fly karvate the, aaj ka plane science se bana hai. Bhagwan ne plane mein koi magic nahi dala hai, Magic hamare dimag mein dala hai jo, plane ka invention karne layak bana, nahi to chuha, bandar har dimag wala animal khud ka plane lekar ghoomta.Ab baat aayi draupadi ke bluetooth ki, Ye BLuetooth nahi hai, Mind-2-Mind Wireless Communication hai jo us samay ke logo ko bhagwan ki blessings se mili hai, aaj blessing ka form change ho gaya hai, aaj blessing humein mili hai ki hum khud ka bluetooth bana sake.Sanajay ne jo dekha vo bhi bagwaan ki Kai powers mein se ek tha, aaj hum us power ko to pa nahi sakte par uske jaise kuch banane ki koshish zarur ki hai ( TV ).Ab ek ek baat aur kya kahu, us samay jo bhi tha vo sirf bhagwaan ka khel unki mahima thi, aaj us khel ne apna roop badal liya hai. us samay ke weapon, mantro se chalte the aaj ke fuel se chalte hai.purane samay ki koi lab nahi thi sirf tha to meditation, jis se log apne dimag ko apne kabu mein karte the, aur tha bhagwaan ka aashirvaad jo shakti pradan karta tha. Aaj ki is paapi duniya mein insaan khud ko bhagwaan samjhne laga hai aur upar jaise article likhne laga hai, par vo bhool gaya hai ki, koi hai jo har waqt har samay uske dimag ko apne according operate kar raha hai aur vo supernatural power vo shakti hai bhagwaan ki. Bhagwaan koi object nahi hai, Its a Power, which operates everything as per its wish. Shri ram ne koi password hack nahi kiya, Woh khud he balshaali the jo kuch bhi kar sakte the.
kapil said...
yaar vikram tu bhi caroron logon ki tarah bhed-chaal ka hi hissa hai ....logon ne tujhe jo dikha dia us par vishwaas karne lag gya ....teri khud ki soch 0 hai .
VIKRAM SINGH said...
main samjh sakta hun. lagatar 3-4 baar tere articles ki sachaiye main duniya ke samne laya hun. tera naaraz hona sahi hai bhai, meri soch 0 he hai, tabhi to tere article main pure padh pata hun nahi to behosh ho jata.
geetanjali said...
kapil yar.. unique soch hai...bt obviously us time kuch tou aisa hota hi hoga jo hum use itne dhyan se dekhte aur samajhte hai....aur humare parents hume vahi kahani dohrate hai.....bt anywayz.....u also depicted a new thing which has never been thought by us...gud job...keep it up...
HEENA said...
what a deep thinking kapil ! bt 2day,regarding this blog of urs,im more satisfied wid Vikram's statement!!since im completely "AASTIK" kind of personality n so strongly beleive dat in today's era of gr8 technology too,behind each n every activity in the world..THAT ONE GREATEST POWER called...THE SUPERNATURAL POWER is there ! but still very well done kapil ! good luck..
Devansh said...
well saying vikram, sach baat hai teri bilkul. kapil andhere mein teer marne chhod de. yaar majority alwayz wins.bhagwan naam ki bi koi cheez hai duniya mein.....vo zamana kuch aur tha and that was true.ab kaliyug ka hal bhi tere jaise hi nastik logon ne hi bura kiya hai. bhagwan se dar... bura mat man na but is yug ko kaliyug tumne hi banaya hai.
at 9/18/2010 09:26:00 pm 2 टिप्पणियां:
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सभी देवताओं में श्रेष्ठ कौन है ?
एक बार सारे ऋषि मुनियों में वाद विवाद हुआ कि सभी देवताओं में श्रेष्ठ कौन है ? इसकी परीक्षा करने हेतु भृगु ऋषि का चयन हुआ । क्योंकि भृगु उस समय ऋषियो में श्रेष्ठ थे । अतः उनसे कहा गया कि बृह्मा विष्णु महेश में कौन श्रेष्ठ है । इस बात का किसी युक्ति द्वारा पता लगायें ? जिससे उसे बडा माना जा सके । इसके लिये भृगु सबसे पहले बह्मलोक गये । वहां बृह्मा सृष्टि रचना के कार्य में लगे हुये थे । भृगु कुछ देर तक ये सब देखते रहे । बृह्मा ने उनको नमस्कार किया । तो भृगु ने कोई उत्तर या आशीष देने के स्थान पर लात के प्रहार से उनका सृष्टि निर्माण तोड डाला और बृह्मा की बहुत मेहनत बरबाद कर दी । बृह्मा को गुस्सा आ गया और वे भृगु की उठापटक मारामारी करने को तैयार हो गये । ये देखकर भृगु वहां से भाग गये । इसके बाद भृगु कैलाश पर्वत पर गय़े । जहां शंकर जी की कोठी बनी हुयी थी । महादेव और उनकी पत्नी पार्वती बातचीत कर रहे थे । भृगु पार्वती की पीठ पर जाकर बैठ गये । पार्वती चौंककर उठ गयी । भृगु फ़िर से उनके कंधों पर चढने की कोशिश करने लगे । शंकर जी ने भृगु का ये नाटक देखा । तो उन्हें बहुत गुस्सा आ गया । और वे भृगु को मारने त्रिशूल लेकर उनकी ओर लपके । शंकर जी भी उनके पीछे पीछे भागे । पर भृगु तेजी से भागकर रफ़ूचक्कर हो गये । इसके बाद भृगु क्षीरसागर स्थिति विष्णु के बंगले पर पहुंचे । जहां विष्णु शेषनाग के गुदगुदे बिस्तर पर as a water mattress लेटे हुये थे । और लक्ष्मी उनके पांव दबा रही थी । ( ज्यादातर धर्मशास्त्रों में ऐसा ही वर्णन मिलता है । एक बार मेरे मन में विचार आया । विष्णू को पत्नी अच्छी मिली जो फ़ालतू समय में उनके पांव दबाती रहती थीं । बृह्मा शंकर आदि इस मामले में इतने भाग्यशाली नहीं थे । एक बार इस मामले पर मेरी अपने दोस्तो से चर्चा हुयी । मैंने कहा । भाई लोगो । आपकी पत्नी जी आपके पैर दबाती हैं या नहीं ..सबका उत्तर यही था । ऐसे नसीब कहा भाई । अगर night को colourful बनाना हो तो उल्टा हमें पांव दबाना पडता है । हां गला दबाने को हमेशा तैयार रहती हैं । ) वहां भी भृगु ने जोरों की एक लात विष्णु की छाती पर मारी । विष्णु तुरन्त उठ बैठे और भृगु के पैरों को दबाने लगे । और बोले । आपके पैर अत्यन्त कोमल हैं । और मेरा सीना अत्यन्त कठोर । लात मारने से आपको चोट आयी होगी । इसका मुझे दुख है । भृगु इस नमृता के आगे झुक गये । और बोले । प्रभु मैं तो परीक्षा ले रहा था । वास्तव में आप देवताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं । क्षमा बडेन को चाहिये । छोटन को उत्पात । कहा विष्णु को घट गयो । भृगु जो मारी लात ।
at 9/18/2010 04:57:00 am 2 टिप्पणियां:
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आपका स्वागत है
KUMAR सुरति शब्द साधना। यानी महामन्त्र की साधना । रामायण । गीता आदि धार्मिक ग्रन्थों पर शोध । लोगों से आत्मग्यान पर चर्चा करना । CONTECT ME -0 94564 32709 GURUJI - 096398 92934मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
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यह पूर्ण भ्रामक और नितान्त असत्य है।
ReplyDeletehttps://deoshankarnavin.blogspot.com/2018/02/blog-post.html
भट्टाचार्य कर्मयोग मानते थे। और शंकराचार्य संन्यास योग के प्रति पाद्य थे।
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