गर्ग
भुवमन्यु (विष्णु=मंयु) के पुत्र तथा शिवि के पिता का नाम[1]।एक वैदिक ऋषि जो आंगिरस भरद्वार के वंशज 33 मत्रकारों में श्रेष्ठ थे। ऋग्वेद के छठें मंडल का 47 वाँ सूक्त इन्हीं का रचा है[2]एक प्राचीन ज्योतिवेंत्ता जिनके पुत्र का नाम गार्ग्य और पुत्री का नाम गार्गी था। यह स्वयम् उतथ्य के पुत्र थे। यह यादवों के पुरोहित थे वसुदेव की प्रार्थना पर नन्द के ब्रज गये थे। इन्होंने शेषनाग से ज्योतिषशास्त्र सीखा था। भागवतानुसार श्रीकृष्ण और बलराम का नामकरण इन्हींने किया था[3]। यह इन दोनों के उपनयन में भी संमिलित थे। इन्हीं ने उन्हें गायत्री मंत्र का उपदेश दिया था[4] और युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भी ये आमांत्रित थे[5]।ब्रह्मा के एक मानसपुत्र का नाम, गया में यज्ञ के निमित्त ब्रह्मा ने इन्हें ऋत्विक के रूप में रचा था और यह यज्ञ में ऋत्विक थे[6]धर्मशास्त्र के प्रवर्त्तक एक ऋषि।हैहय के पुरोहित जिसने जमदग्नि की गौ के अपहरण से हैहय को रोका था[7]।दिवोदाससुत प्रतर्दन के दो पुत्रों में से एक [8]।कुरुक्षेत्र निवासी परम धार्मिक कौशिक ऋषि के सात पुत्रों के गुरु। एक अकाल में इन शिष्यों ने गौ मारकर खा ली थी जिसके लिए इन्हें पाँच बार जन्म लेने का शाप मिला था[9]।एक आंगिरस गोत्रकार ऋषि[10]।स्थापत्यकला के 18 मुख्य उपदेशकों में से एक[11]।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
ऊपर जायें↑ मत्स्यपुराण 49.36:विष्णुपुराण 4.19.21-23ऊपर जायें↑ ब्रह्म पुराण 2.32.107; मत्स्यपुराण 145.101ऊपर जायें↑ भागवतपुराण 10,8.1-20; विष्णुपुराण 2.5.26; वायु पुराण 6.7-9ऊपर जायें↑ भागवतपुराण 45.26-29ऊपर जायें↑ भागवतपुराण 10.74.8ऊपर जायें↑ वायुपुराण 106.35ऊपर जायें↑ ब्रह्मपुराण 3.28.39; वायु पुराण 92.65ऊपर जायें↑ ब्रह्मपुराण 3.37.39; वायु पुराण 92.6ऊपर जायें↑ मत्स्यपुराण 20.3ऊपर जायें↑ मत्स्यपुराण 196.24ऊपर जायें↑ मत्स्यपुराण 252.3
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