Monday, 13 February 2017

  Toggle navigation गीता भक्त साहित्य संगीत/कला तीर्थ/यात्रा हिन्दी टाइपिंग  खोज संपर्क करें हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 109 श्लोक 63-84  हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: नवाधिकशततम अध्याय: श्लोक 63-84 का हिन्दी अनुवाद जो पितामह ब्रह्माजी के मुख से प्रकट हुए हैं, रौद्र हैं, रुद्रदेव के अंगों से उत्पन्न हुए हैं, कुमार कार्तिकेय के स्वेद से प्रकट हुए हैं तथा जो वैष्णव आदि ज्वर हैं, जो महा भयंकर, महापराक्रमी, दर्पयुक्त तथा महाबली हैं, क्रोधयुक्त अथवा क्रोध रहित हैं, जिनका स्वभाव कू्र है, जो देवताओं के समान स्वरूप धारण करने वाले हें, जो रात्रि में विचरने वाले हैं, जिनके गले में आयल हैं, जिनकी बड़ी-बड़ी दाढ़ें हैं, जिन्हें विग्रह प्रिय है, जिनके पेट लम्बे, कूल्हे मोटे और आँखें पिंग लवर्ण की हैं, जो विश्वरूपधारी हैं, जिनके हाथों में शक्ति, ऋष्टि, शूल, परिघ, प्रास, ढाल और तलवार आदि अस्त्र-शस्त्र शोभा पाते हैं, पिनाक, वज्र, मुसल और ब्रह्मदण्ड नामक आयुध जिन्हें प्रिय हैं, जो दण्ड और कुण्ड धारण करते हैं, शूरवीर हैं, मस्तक पर जटा और मुकुट धारण किये रहते हैं वेद और वेदांग में कुशल हैं, नित्य यज्ञोपवीतधारी हैं, माथे पर सर्प का मुकुट धारण करते हैं, जिनके कानों में कुण्डल और भुजाओं में भुजबन्ध शोभा पाते हैं, जो वीर हैं, नाना प्रकार के वस्त्र पहनते हैं, विचित्र माला और अनुलेप धारण करते हैं, जिनके मुख हाथी, घोड़े, ऊँट, रीछ, बिलाव, सिंह, व्याघ्र, सूअर, उल्लू, गीदड़, मृग, चूहों और भैसों के समान हैं, जो बौने, विकट आकार वाले, कुबड़े, विकराल तथा कटे हुए केश वाले हैं, इनके सिवा जो लाखों की संख्या में सहस्त्रों जटाएँ धारण करने वाले हैं, जिनमें से कोई कैलास पर्वत के समान श्वेत, कोई दिनकर के समान दीप्तिमान, कोई मेघों के समान काले और काई अन्चराशि के समान नील हैं, जो मांस रहित कंकाल से दिखायी देते हैं, जिनकी पिण्डलियाँ बहुत मोटी हैं, जो मुँह बायें रहने के कारण बड़े भयंकर प्रतीत होते हैं, बावड़ी, पोखरे, कुएँ, समुद्र, नदी, श्मशान भूमि, पर्वत, वृष तथा सूने घरों में निवास करने वाले हैं ये ग्रह सदा सब ओर से मेरी रक्षा करें। महागणपति, नन्‍दी, महाबली, महाकाल, लोक भयंकर माहेश्वर तथा वैष्‍णम ज्‍वर, ग्रामणी, गोपाल, भृंगरीटि, गणेश्वर, देव, वामदेव, घण्‍टाकर्ण, करंधम, श्वेतमोद, कपाली, जम्‍भक, शत्रुतापन, मज्‍जन, उन्‍मज्‍जन, संतापन, विलापन, निजघास, अघस, रथूणाकर्ण, प्रशोषण, उल्‍कामाली, धधम, ज्‍वालामाली, प्रमर्दन, संघट्टन, संकुटन, काष्ठभूत, शिवंकर, कूष्‍माण्‍ड, कुम्‍भमूर्धा, रोचन, वैकृत ग्रह, अनिकेत, सुरारिघ्र, शिव, अशिव, क्षेमक, पिशिताशी, सुरारि, हरिलोचन, भीमक, ग्राहक, अग्रमय ग्रह, उपग्रह, अर्यक, स्‍कन्‍दग्रह, चपल, असमवेताल, तामस, सुमहाकपि, हृदयोद्वर्तन, ऐड, कुण्‍डाशी, कंकणप्रिय, हरिश्‍मश्रु तथा मन और वायु के समान वेगशाली गरुत्‍मान्, पार्वती के रोष से उत्‍पन्न हुए सैकड़ों और हजारों गण, जो शक्तिमान, धैर्यवान, ब्राह्मण भक्त और सत्‍य प्रतिज्ञ हैं तथा प्रत्‍येक युद्ध में शत्रुओं की सम्‍पूर्ण कामनाओं का विनाश करने वाले हैं; इन सबका रात और दिन में दुर्गम संकट के अवसरों पर जब-जब कीर्तन किया जाय, तब-तब वे समस्‍त गणपति अपने सारे गुणों और सम्‍पूर्ण गणों के साथ सदा मेरी रक्षा करें ।  टीका टिप्पणी और संदर्भ संबंधित लेख [छिपाएँ]हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (हिन्दी) 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • 51 • 52 • 53 • 54 • 55 • 56 • 57 • 58 • 59 • 60 • 61 • 62 • 63 • 64 • 65 • 66 • 67 • 68 • 69 • 70 • 71 • 72 • 73 • 74 • 75 • 76 • 77 • 78 • 79 • 80 • 81 • 82 • 83 • 84 • 85 • 86 • 87 • 88 • 89 • 90 • 91 • 92 • 93 • 94 • 95 • 96 • 97 • 98 • 99 • 100 • 101 • 102 • 103 • 104 • 105 • 106 • 107 • 108 • 109 • 110 • 111 • 112 • 113 • 114 • 115 • 116 • 117 • 118 • 119 • 120 • 121 • 122 • 123 • 124 • 125 • 126 • 127 • 128 विष्णु पर्व (संस्कृत) प्रथम (1) • द्वितीय (2) • तृतीय (3) • चतुर्थ (4) • पंचम (5) • षष्‍ठ (6) • सप्तम (7) • अष्टम (8) • नवम (9) • दशम (10) • एकादश (11) • द्वादश (12) • त्रयोदश (13) • चतुर्दश (14) • पंचदश (15) • षोडश (16) • सप्तदश (17) • अष्टादश (18) • एकोनविंश (19) • विंश (20) • एकविंश (21) • द्वाविंश (22) • त्रयोविंश (23) • चतुर्विंश (24) • पंचविंश (25) • षड्-विंश (26) • सप्तविंश (27) • अष्टविंश (28) • एकोनत्रिंश (29) • त्रिंश (30) • एकत्रिंश (31) • द्वात्रिंश (32) • त्रयस्त्रिंश (33) • चतुस्त्रिं‍श (34) • पंचत्रिंश (35) • षट्-त्रिंश (36 ) • सप्तत्रिंश (37) • अष्‍टत्रिंश (38 • एकोनचत्‍वारिंश (39) • चत्‍वारिंश (40) • एकचत्‍वारिंश (41) • द्विचत्‍वारिंश (42) • त्रिचत्‍वारिंश (43) • चतुश्‍वत्‍वारिंश (44) • पंचत्‍वारिंश (45) • षट्चत्‍वारिंश (46) • सप्तचत्‍वारिंश (47) • अष्‍टचत्‍वारिंश (48) • एकोनपंचाशत्तम (49) • पंचाशत्तम (50) • एकपंचाशत्तम (51) • द्विपंचाशत्तम (52) • त्रिपंचाशत्तम (53) • चतु:पंचाशत्तम (54) • पंचपंचाशत्तम (55) • षट्पंचाशत्तम (56) • सप्तपंचाशत्तम (57) • अष्टपंचाशत्तम (58) • एकोनषष्टितम (59) • षष्टितम (60) • एकषष्टितम (61) • द्विषष्टितम (62) • त्रिषष्टितम (63) • चतुःषष्टितम (64) • पंचषष्टितम (65) • षट्षष्टितम (66) • सप्तषष्टितम (67) • अष्टषष्टितम (68) • एकोनसप्ततितम (69) • सप्ततितम (70) • एकसप्ततितम (71) • द्विसप्ततितम (72) • त्रिसप्ततितम (73) • चतु:सप्ततितम (74) • पंचसप्ततितम (75) • षट्सप्ततितम (76) • सप्तसप्ततितम (77) • अष्टसप्ततितम (78) • एकोनाशीतितम (79) • अष्टसप्ततितम (80) • एकाशीतितम (81) • द्वयशीतितम (82) • त्र्यशीतितम (83) • चतुरशीतितम (84) • पंचाशीतितम (85) • षडशीतितम (86) • सप्ताशीतितम (87) • अष्टाशीतितम (88) • एकोननवतितम (89) • नवतितम (90) • एकनवतितम (91) • द्विनवतितम (92) • त्रिनवतितम (93) • चतुर्नवतितम (94) • पंचनवतितम (95) • षण्‍णवतितम (96) • सप्तनवतितम (97) • अष्टनवतितम (98) • नवनवतितम (99) • शततम (100) • एकाधिकशततम (101) • द्वयधिकशततम (102) • त्र्यधिकशततम (103) • चतुरधिकशततम (104) • पंचाधिकशततम (105) • षडधिकशततम (106) • सप्ताधिकशततम (107) • अष्टाधिकशततम (108) • नवाधिकशततम (109) • दशाधिकशततम (110) • एकादशाधिकशततम (111) • द्वादशाधिकशततम (112) • त्रयोदशाधिकशततम (113) • चतुर्दशाधिकशततम (114) • पंचदशाधिकशततम (115) • षोडशाधिकशततम (116) • सप्तदशाधिकशततम (117) • अष्टादशाधिकशततम (118) • एकोनविंशत्‍यधिकशततम (119) • विंशत्‍यधिकशततम (120) • एकविंशत्‍यधिकशततम (121) • द्वाविंशत्यलधिकशततम (122) • त्रयोविंशत्याधिकशततम (123) • चतुर्विंशत्य‍धिकशततम (124) • पंचविंशत्‍यधिकशततम (125) • षडविंशत्‍यधिकशततम (126) • सप्तविंशत्यधिकशततम (127) • अष्टाविंशत्यधिकशततम (128) वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः श्रेणियाँ: हरिवंश पुराणविष्णु पर्वपुराण गीता गीता (मूल) गीता -श्रील् प्रभुपाद गीता -तिलक गीता -राधाकृष्णन गीता -अरविन्द गीता -विनोबा गीता -गांधी गीता -जयदयाल गीता -रामसुखदास भक्त चैतन्य महाप्रभु वल्लभाचार्य निम्बार्काचार्य श्रील् प्रभुपाद नरसी मेहता रूप गोस्वामी सनातन गोस्वामी कृष्णदास कविराज भक्तिकाल के कवि साहित्य संस्कृत साहित्य हिन्दी साहित्य (गद्य) हिन्दी साहित्य (पद्य) संगीत/कला वीडियो ऑडियो चित्रकला गायन नृत्य कृष्णलीला रासलीला तीर्थ/यात्रा ब्रज ब्रज के वन द्वारका चौरासी कोस की यात्रा © 2017 सर्वाधिकार सुरक्षित कृष्णकोश

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