Vivekanand and Modern Tradition
The Shrimad Bhagavat Geeta is a holy book (an established truth and science) not only for Hindu's (Sanatan Dharma) but also for every religion which gives common sense to correlate the people of all religions. According to its main statement the God is creator of every one and we should do our deed for best of the human. It gives a strong base to connect every people of the world. This was the main aim of Swami Dayanand Saraswati to Caste and Swami Vivekanand (Narendra Nath)to Religion.
Thursday, December 17, 2015
इससे ज्ञात होता है क कश्यप ऋषि का प्रयागराज/इलाहाबाद की संस्कृति से सम्बन्ध भारद्वाज और कृष्णात्रेय(दुर्वाशा) से भी आदिकालीन का सम्बन्ध(सप्तर्षि काल के बाद से ही देखने पर भी) है।>>>कश्यप ऋषि के वंसज इक्षाकु के वंसज रघु और इला में से इला के नाम से इलाहाबाद=इला आवास=इला आबाद तो कश्यप की शिष्य परम्परा में आने वाले भारद्वाज ऋषि (कश्यप और अदिति के पुत्र, आदित्य के पुत्र, वरुण के पुत्र, वाल्मीकि के शिष्य, भारद्वाज जिनके शिष्य स्वयं गर्ग ऋषि थे) से किस प्रकार कोई कम नाता कश्यप ऋषी से है इस प्रयागराज का। भगवान विष्णु जो मोहिनी रूप धारण करने में प्रवीण थे और जिनका स्थान प्रयागराज ही है उन्हीं की तर्ज पर चन्द्रवंश के प्रथम उदीय राजतन्त्र और राजा इला को भी लिंग परिवर्तन का विज्ञान ज्ञात था और वे इसका प्रयोग करते है और जब इला और रघु दोनो इक्षाकु वंशीय तो दोनों सूर्यवंशीय ही हुए क्योंकि इक्षाकु सूर्यवंशीय ही हुए और इस प्रकार यदि प्रथम चन्द्र वंशीय राजा इला सूर्यवंश वंसज इक्षाकु के ही पुत्र तो चन्द्र वंश का प्रामाणिक उद्भव सूर्यवंश ही होगा। पर जहाँ इला ने लिंग परिवर्तन विज्ञान का अपने जीवन में प्रयोग किया वही दूसरी और रघु भी इक्षाकुवंशीय होने के बाद भी लिंगपरिवर्तन विज्ञान का कभी प्रयोग नहीं किया।>>>इससे ज्ञात होता है क कश्यप ऋषि का प्रयागराज/इलाहाबाद की संस्कृति से सम्बन्ध भारद्वाज और कृष्णात्रेय(दुर्वाशा) से भी आदिकालीन का सम्बन्ध(सप्तर्षि काल के बाद से ही देखने पर भी) है।
इससे ज्ञात होता है क कश्यप ऋषि का प्रयागराज/इलाहाबाद की संस्कृति से सम्बन्ध भारद्वाज और कृष्णात्रेय(दुर्वाशा) से भी आदिकालीन का सम्बन्ध(सप्तर्षि काल के बाद से ही देखने पर भी) है।>>>कश्यप ऋषि के वंसज इक्षाकु के वंसज रघु और इला में से इला के नाम से इलाहाबाद=इला आवास=इला आबाद तो कश्यप की शिष्य परम्परा में आने वाले भारद्वाज ऋषि (कश्यप और अदिति के पुत्र, आदित्य के पुत्र, वरुण के पुत्र, वाल्मीकि के शिष्य, भारद्वाज जिनके शिष्य स्वयं गर्ग ऋषि थे) से किस प्रकार कोई कम नाता कश्यप ऋषी से है इस प्रयागराज का। भगवान विष्णु जो मोहिनी रूप धारण करने में प्रवीण थे और जिनका स्थान प्रयागराज ही है उन्हीं की तर्ज पर चन्द्रवंश के प्रथम उदीय राजतन्त्र और राजा इला को भी लिंग परिवर्तन का विज्ञान ज्ञात था और वे इसका प्रयोग करते है और जब इला और रघु दोनो इक्षाकु वंशीय तो दोनों सूर्यवंशीय ही हुए क्योंकि इक्षाकु सूर्यवंशीय ही हुए और इस प्रकार यदि प्रथम चन्द्र वंशीय राजा इला सूर्यवंश वंसज इक्षाकु के ही पुत्र तो चन्द्र वंश का प्रामाणिक उद्भव सूर्यवंश ही होगा। पर जहाँ इला ने लिंग परिवर्तन विज्ञान का अपने जीवन में प्रयोग किया वही दूसरी और रघु भी इक्षाकुवंशीय होने के बाद भी लिंगपरिवर्तन विज्ञान का कभी प्रयोग नहीं किया।>>>इससे ज्ञात होता है क कश्यप ऋषि का प्रयागराज/इलाहाबाद की संस्कृति से सम्बन्ध भारद्वाज और कृष्णात्रेय(दुर्वाशा) से भी आदिकालीन का सम्बन्ध(सप्तर्षि काल के बाद से ही देखने पर भी) है।
Dr. Vivek Kumar Pandey at 10:54 PM
No comments:
About Me
Dr. Vivek Kumar PandeyI Love Mankind and say all to behave in the manner like this: "Insaan Ka Insaan se ho Bhai Chara yahee sandesh Hamara" and "Yaree Hai Imaan Meree Yaar Meree Jindagee".View my complete profile
Powered by Blogger.
No comments:
Post a Comment