Vivekanand and Modern Tradition
The Shrimad Bhagavat Geeta is a holy book (an established truth and science) not only for Hindu's (Sanatan Dharma) but also for every religion which gives common sense to correlate the people of all religions. According to its main statement the God is creator of every one and we should do our deed for best of the human. It gives a strong base to connect every people of the world. This was the main aim of Swami Dayanand Saraswati to Caste and Swami Vivekanand (Narendra Nath)to Religion.
Friday, May 31, 2013
गर्ग, गौतम और शांडिल्य द्वीतीय क्रम में शुध्धता की श्रेणी है गोत्रों में पर प्रयाग में उत्पन्न गर्ग भारद्वाज ऋषि की शिष्य परम्परा के व्यूत्पन है और कश्मीर उत्पन्न शांडिल्य कश्यप और वाशिस्थ के व्युत्पन है अतः सप्तर्षियों में आज भी गौतम शुद्धता में सर्व श्रेष्ठ और सर्व पूज्यनीय है। 24 मन्वान्तर ऋषि (अशोक चक्र की एक तीली) जो गायत्रीमंत्र के उपासक है जिसमे कौशिक (विश्वामित्र) प्रथम और याग्वाल्क्य चौबीसवे ऋषि है के संयोग से बने 24 तीलियों वाले अशोक चक्र (जिसे समय चक्र, धर्म चक्र, समता मूलक चक्र कहते है) का निर्माण होता है जिसे बौध्ध धर्म में धम्म चक्र भी कहते हैं और अपने आसमानी रंग के साथ यह तिरंगे=त्रिमूर्ति=त्रिदेव के मध्य भाग में शुभ्र=सफेद (त्याग और पवित्रता का प्रतीक) रंग के साथ केसरिया (बलिदान का प्रतीक) और हरा (समृध्ध और उद्यम का प्रतीक) के बाच आसन पाता है। अतः गायत्री जिसे सविता या शूर्य की पत्नी या कुछ लोग सूर्य की आभा कहते हैं के उपासक है हम मतलब हम उस शूर्य के उपासक है जिसमे अथाह ऊर्जा है और वह शूर्य केवल और केवल परमब्रह्म हो सकता है जो अत्यंत शूक्ष्म रूप (निराकार) में भी जितने भी शूर्य मंडल है उनका निर्माण कर सकता है। श्रीमद्भागवत अध्याय एक-41वां श्लोक वर्ण संकर का उल्लेख है और इससे सम्बंधित अन्य विवरण 47 श्लोक तक। अध्याय दो में इसका निराकरण दिया है परमब्रह्म श्री कृष्ण द्वारा (केवल श्री कृष्ण नहीं वरन परमब्रह्म श्री कृष्ण) जिसे विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया गया है यह एक माया जनित व्यक्ति द्वारा सत्य और एक परमब्रह्म (जिसकी दुनिया में न कोई जन्म लेता है और न मरता अपितु विभिन्न प्रकार का कर्म करता हुआ अपना संसार में तैर रहा होता है) के सत्य का विसद वर्णन है अतः दोनों अपने अपने स्थान पर सत्य है। A person related with all Seven Rishis have itself characteristics of eighth Rishi, Agastya=Kumbhaj Rishi (who generated by all seven rishi). I am Kashyap by heredity, related with Durvasa/Atri place Azamgarh, remained most of life in Jamadagni/Bhrigu place Jamadagnipur=Jaunpur, Mother from Gautam Gotra, Dadi from Vashisth Gotra and also born in hous of her father, my all four Mausis=Second mothers are of Bharadwaj Gotriy in Sasural, and nationality is Indian means place of Vishvamitras and Menaka's grandson Bharat's Aryavart=Akhand Bharat now only Bharatvarsh. Thus a person belonging from Gautam, Vashisth, Kashyapa, Bharadwaj/Angarisha, Bhrigu/Jamadagni, Durvash/Atri and Vishvamitra(Kaushik) means a person related with all Seven Rishis have itself characteristics of eighth Rishi, Agastya=Kumbhaj Rishi (who generated by all seven rishi).
Dr. Vivek Kumar Pandey at 3:34 AM
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