Saturday 11 February 2017

 मेघ ऋषि

Megh Rishi - मेघ ऋषि

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Indus Valley Civilization and Megh Rishi - सिंधु घाटी सभ्यता और मेघ ऋषि

मेघ ऋषि और मेघवंश एक संक्षिप्त परिचय        


  

मेघ ऋषि के बारे में बचपन से सुनते आए थे परंतु ऋषि का रूप-रंग क्या था इसकी कोई छवि मन पर नहीं बनती थी. कॉमिक्स वगैरा में या पाठ्य पुस्तकों में ऋषियों-मुनियों के जो चित्र देखे थे उन्हीं से मिलता-जुलता बिंब मन में उभरता था लेकिन यह जानकारी नहीं मिल पाती थी कि मेघ ऋषिकौन थे, उनका जीवन कैसा था, उन्होंने क्या किया आदि. मेघ ऋषि के जन्मदिन आदि के बारे में फिलहाल कोई उत्तर संभव नहीं.ऋषि मेघ, उनकी प्रजाओं, उनके पूर्ववर्तियों एवं उत्तरवर्तियों ने सिंधु घाटी सभ्यता और हड़प्पा सभ्यता का विकास किया था. अपने समय में यह सब से अधिक विकसित सभ्यता थी जिसके निवासी खेती करना, कपड़ा बनाना,कांस्य की मूर्तियाँ बनाना जानते थे और स्थापत्य कला (architecture) में माहिर थे. विश्व में यही क्षेत्र था जिसे सोने की चिड़िया कहा जाता था.

उस साम्राज्य में प्रजाएँ सुखी थीं जैसा कि राजा महाबली(मावेली) की कथाओं से पता चलता है. बाहर से अन्न और हरे-भरे क्षेत्रों की तलाश में आ रहे जंगली कबीलों के लिए यहाँ की सभ्यता-संस्कृति और संपन्नता नई बात थी. तब मुख्य आक्रमणकारी आर्य थे. ऐसे संकेत मिलते हैं कि बंजारे और ख़ानाबदोश (Gypsies and Roma) इसी सभ्यता की शाखाएँ हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि आक्रमणकारी आर्यों ने इन्हें पहचाना और इनके विरुद्ध विषैला प्रचार किया.

 


सभ्यता के विकास में लगे और दूर-दूर बसी छोटी-छोटी बस्तियों में रहने वाले यहाँ के सभ्यता संपन्न मूलनिवासी या मेघवंशी लोगों को इन खुरदरे आर्यों के संगठित आक्रमणों के दबाव में सारे भारत भर में बिखर जाना पड़ा. यह प्रक्रिया सदियों तक चली. अधिक विस्तार के लिए इस लिंक पर जाएँ- Meghs of India :By R.L. Gottra (http://sarvjan.blogspot.com/2010/08/meghs-of-india.html)जो मेघवंशी या मेघ भगत अपना इतिहास देखना चाहते हैं उनके लिए यह पैरा विशेष तौर पर जोड़ा जा रहा है. 'मेघवंश: इतिहास और संस्कृति' नामक पुस्तक में मेघवंश के राजाओं और उनके शासन का उल्लेख मिलता है. उसे उद्धृत करते हुए एक पत्रिका में एक आलेख छपा था. उसकी फोटो प्रतियाँ नीचे दी गई हैं:-

 

अति प्राचीन शिलालेख, मूर्तियाँ, आदि समय, मौसम, धरती की हलचल ने और कुछ आक्रमणकारियों ने नष्ट किए. बाद के ग्रंथों में लिखी ऋषियों की कथाएँ ब्राह्मणवादी विचारधारा से प्रभावित हैं. हाँ चार्वाक जैसे ऋषि भी हैं जिनकी सोच आज की सोच से मिलती है. वे अपने समय से बहुत आगे बढ़ कर मानवता, समता और मानव जीवन को पूर्णतः धरती से जोड़ कर देख रहे थे. उनके साहित्य में धूर्त बुद्धि की उपज ‘पुनर्जन्म’, ‘कर्म फ़िलासफ़ी’ आदि का कोई स्थान नहीं था. 'पुनर्जन्म' और 'कर्म' के विचार मेघवंशियों को गुलाम बनाए रखने के लिए गढ़े गए थे. क्योंकि चार्वाक की यह सोच ब्राह्मणवादी विचारधारा के अनुकूल नहीं थी अतः चार्वाक का सारा साहित्य नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया. उनके अनुयायियों को हिंसक यात्नाएँ दी गईं. तथापि बौधग्रंथों में चार्वाक जीवित रहे. उनका कुछ साहित्य बचा लिया गया.

 

समय-समय पर मेघवंशी अपना राज्य वापिस लेने के लिए संघर्षशील रहे और आर्यों की घृणा और हिंसा का निशाना बने. उन्हें दास (slave) बना लिया गया. पौराणिक कथाओं में उन्हें असुरनाग, अनार्य, राक्षसदैत्य आदि कह कर उनकी छवि बिगाड़ी गई. इन समूहों के कई शासक राजा हुए हैं. उनके धर्म को अधर्म कहा गया और उनकी नीति को अनीति. (याद रहे कि धर्म और नीति सदा स्थानीय परिस्थितियों में पोषित होते हैं और जीतने वाला आक्रमणकारी उसे समाप्त करने के लिए हर तरह का दूषित प्रचार करता है और इतिहास को अपने तरीके से लिखवाता है). आर्य या ब्राह्मणवादी हिंदू इन कथाओं को आज भी सुनते-सुनाते हैं और इन मूलनिवासियों (SCs, STs and OBCs) को हिंदू दायरे के अन्य हिंदुओं की अपेक्षा हीन और नीच जाति मानते हैं और इसे प्रचारित भी करते हैं. इस परंपरा को चलाए रखने का उद्देश्य मेघवंशियों को गरीब बनाए रखना है ताकि सस्ता या बेगार का श्रम मिलता रहे.

 


'सिंधु घाटी सभ्यता', जिसे आर्कियॉलॉजिस्ट आजकल 'हड़प्पा सभ्यता' कहना पसंद करते हैं, के निर्माता मेघवंशियों को हिंसा के ज़रिए दास बनाया गया. उस समय के शिलालेख और लिपियाँ प्रमाणित करती हैं कि वह समाज शिक्षित था.

 

 

उसे दास बना कर सदियों तक शिक्षा से वंचित किया गया. केवल जीने भर के लिए अन्न दिया गया. मनुस्मृति में निर्देशित व्यवस्था को लागू करके उन्हें ग़रीब बनाए रखने को सुनिश्चित किया गया और क्रमबद्ध तरीके से उनमें हीनता का भाव भरा गया. उनके कुचले हुए अंतर्मन को सही परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए कोई वैज्ञानिक अनुसंधान या अध्ययन नहीं कराया जाता (जब कि आर्यों को सप्तसिंधु का मूल निवासी सिद्ध करने के लिए अध्ययन प्रायोजित किए हैं). अन्य देशों में यह प्रचार किया जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता अचानक लुप्त हो गई. इसके बारे में कई कहानियाँ इक्कीसवीं शताब्ती में भी परोसी जा रही हैं. यह इसलिए किया जाता है कि विदेशों में इस बात का प्रचार न हो कि इस सभ्यता के लोग आज भी जीवित हैं और ग़रीबी की हालत में गुलामों (slaves) का जीवन जीने के लिए मजबूर हैं. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के रूप में उनकी पहचान की जाती है. उनकी जनसंख्या करोड़ों में है. उनके विकास के लिए किए जाने वाले प्रत्येक कार्य का हर प्रकार से विरोध किया जाता है. उनके लिए बनी नीतियों को लागू नहीं होने दिया जाता. उनके लिए दिया जा रहा धन भ्रष्टाचार में सोख लिया जाता है. यह सब इस लिए कि वे सस्ते श्रम के रूप में उपलब्ध रहें. इसका अंधकारमय पक्ष यह है कि विश्व द्वारा मान्य मानवाधिकारों का न्यूनतम अंश भी उन तक नहीं पहुँच पाता.शिक्षा से दूर ये अधिकतर मेघवंशी समुदाय नहीं जानते कि इनका ऐसा उज्जवल अतीत और इतिहास है जिसे नष्ट और भ्रष्ट किया गया है और कि वे सिंधु घाटी सभ्यता और हड़प्पा सभ्यता को विकसित करने वाले राजऋषि मेघ (वृत्र) और उसके पूर्ववर्ती तथा उत्तरवर्तियों की संताने हैं. इन्हें विभिन्न नाम दे कर और एक-दूसरे से ऊँचा होने का झाँसा दे कर एक-दूसरे से अलग कर दिया गया था. बदलते समय और शिक्षा के साथ अब ये समुदाय एक दूसरे को पहचानने लगे हैं और इनका आपसी संपर्क बढ़ा है.

  

       

मेघवंश एक सिंहावलोकन            गढ़ा, जालंधर में मेघ ऋषि की मूर्ति

मेघवंशियों का यह संक्षिप्त इतिहास इसलिए इस भाषा में लिख दिया है कि उनकी यह जिज्ञासा शांत हो जाए कि वे कौन हैं और कहाँ से आए हैं. उन्हें अब इस विषय में कोई शक नहीं रहेगा.आज मेघवंशी एक बदले हुए राजनीतिक और सामाजिक वातावरण में रह रहे हैं. उन्हें डॉ. अंबेडकर के हाथों से निकला भारत का अनुकूल संविधान प्राप्त है. हालाँकि ब्राह्मणवाद और मनुवाद (जो हिंदू विचारधारा के अनुसार एक महापाप की पृष्ठभूमि है) ने देश को विशेष कर मेघवंशियों को बहुत हानि पहुँचाई है तथापि यह कहना ठीक नहीं होगा कि सभी ब्राह्मण बुरे हैं. दूसरे, उज्जवल अतीत होना अच्छी बात है परंतु अपने वर्तमान को शिक्षा से उज्जवल बनाना अब अधिक महत्वपूर्ण हो गया है. अपनी क्षमता और कौशल को बेहतर बनाने की बड़ी आवश्यकता है ताकि प्रतियोगिता के इस युग में प्रगति की प्रवृत्ति तेज़ होती रहे. आज राजऋषि मेघ और सम्राट महाबली अपनी संतानों से यही अपेक्षा करते.यदि मेघवंशियों का आधुनिक इतिहास लिखा जाए तो उसमें एक वाक्य अवश्य लिखा रहेगा कि इनमें एकता नहीं है. एकता न होना एक नकली चीज़ है जो गुलामी का जीवन जी चुके लोगों में पाई जाती है. यह एक मानसिकता है जो यात्नाएँ दे कर गुलामों में विकसित की जाती है. उन्हें विश्वास दिलाया जाता है कि वे न तो एक हैं और न ही एक हो सकते हैं. एक-दूसरे से अलग रहने की उन्हें आदत डाली जाती है. यदि शिक्षा द्वारा इस तथ्य को समझ लिया जाए तो इस मानसिकता से पूरी तरह पार पाया जा सकता है और एकता लाई जा सकती है. इसका लाभ यह होगा कि आत्मविश्वास बढ़ेगा और सब के साथ मिल कर चलने की शक्ति आएगी. लोकतंत्र में अपने विकास के मुद्दों पर बात कहने के लिए राजनीतिक एकता और संगठन आवश्यक है. सभी मेघवंशी इस पर अवश्य विचार करेंगे.चूँकि आधुनिक इतिहासकारों ने सिंधु घाटी सभ्यता और मेघवंश से संबंधित तथ्यों को स्थापित कर दिया है इसलिए मेघ ऋषि की ऐतिहासिक और मानवीय छवि उभर कर सामने आने लगी है जो बहुत उज्जवल है. राजस्थान के मेघवालों ने इस बारे में नेतृत्व किया. इसका श्रेय श्री गोपाल डेनवाल और श्री आर पी सिंह को जाता है. मेघ ऋषि की बहुत सी छवियाँ तैयार की गई हैं. उपलब्ध ब्यौरा नीचे दिया गया है.

 

मेघ ऋषि की मूर्ति संगमरमर से तैयार की गई.

 इसी प्रकार मेघ भगवान की छवि भी तैयार की गई.

मेघ चालीसा’ पर मेघ ऋषि की इस छवि का प्रयोग हुआ.

राजस्थान में गठित ‘मेघ सेना’ के 'शुभचिह्न' और 'कमांडर' - मेघ ऋषि.

गुजरात के मेघवार मेघ रिख (ऋषि) के नाम से अपने मसीहा को जानते हैं जिसे धणी मातंग कहा जाता है. रुचिकर है कि मातंग शब्द का अर्थ भी 'मेघ' है.

धणी मातंग देव

यह लिंक अवश्य देखें-  Origins of Meghwar and Megh Rikh

Megh Rishi Jayanti - मेघ ऋषि जयंती



(अंतिम छह चित्रों को छोड़ शेष चित्र गूगल इमेजिज़ के साभार)

(All links retrieved on 18-12-2010) 

 

Face Book पर Megh Forum में हुई एक चर्चा को नीचे कॉपी पेस्ट किया गया है ताकि पाठकों की जानकारी में वृद्धि हो सके-

Tararam Gautam

October 26 at 3:35pm

इतिहास का निर्माण मिथकों से नहीं किया जा सकता है- इधर काफी दिनों से ऐसा होने लगा है कि लोग अपने लाव-लश्कर के साथ एक नयी प्रकार की इतिहास चेतना में अपने को झोंक रहे है, जो सिवाय मिथक के कुछ नहीं है। उन्हें इस पर ध्यान देना ही चाहिए कि मेघ एक कौम है, जाति नहीं। मेघ एक समाज है, बिखरा हुआ समाज, जिसकी उत्पति किसी भी प्रकार से वैदिक ऋषि से नहीं हुई है। ऋषि का मिथक मेघों को हिन्दू धर्म में अपना स्थान बनाने के लिए, वैदिक जातियों की उत्पति की कथाओं से मेल बिठाने के लिए गढ़ा गया। किसी भी पुरातात्विक अवशेष में और साहित्यक साक्ष्य में इसका लेश मात्र भी साक्ष्य नहीं है। मुझे कश्मीर का ठीक से मालूम नहीं परन्तु मारवाड़(राजस्थान) और गुजरात के बारे में स्पष्ट है कि जिस आदि पुरुष को मेघ जाति का प्रतिष्ठापक मानते है, वह सिन्धु सभ्यता की खुदाई से पराप्त भिक्षु /ध्यानी से मेल नहीं खाता। 
मोहन जोदड़ो की खुदाई में प्राप्त ऐसी सीलों और अवशेषों पर जॉन मार्शल से लेकर अद्यतन काफी कुछ कहा जा चूका है। यह मूर्ति एक यति या भिक्षु की है। जो मानवीय चित्र आर प़ी सिंह ने दिया वह यति का ही है। उसके शरीर के उपरी भाग में ध्यान मग्न चेहरा व चीवर के पहनने का वैसा ही सलीका जैसा बौद्ध भिक्षुओं में प्रचलित है। यह ध्यान देने योग्य है कि वैदिक साहित्य में इन्हें यति/मुनि या व्रात्य कहा गया है। जओ वेदों की ऋषि परंपरा से भिन्न है। 
उसे आप मेघ ऋषि के नाम का लबादा उढ़ा कर क्या कहना चाहते है? इस वितंडा को ख़त्म करिए। 
रही बात गोकुल दास जी के द्वारा ऋषि परंपरा में मेघों को खिंच ले जाने की। ध्यान रहे अजमेर में यह आर्य समाज का प्रभाव और शुद्धिकरण के ढोंग का आवश्यक परिणाम था।

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You, Tararam GautamSatish BhagatNaag Nath Megh and 2 others like this.

Annie Bhagat Damathia sir mujhe ek baat samajh me nhi ayi k kaum aur jaati me kya farak hai

October 26 at 3:38pm · Like

Tararam Gautam आप political science & anthropology/socio पढ़िए समझ में आ जायेगा। नहीं तो बाबा की थॉट्स ओन पाकिस्तान पढ़ लीजिये। अच्छे से फर्क मालूम हो जायेगा।

October 26 at 3:42pm · Like

Tararam Gautam caste is not nation.

October 26 at 3:43pm · Like · 2

Shaku Meghwal thanks gautam sir!me kafi time se bda bad feel krti thi is megh rishi k name se nd muje hmesha dobutful lgta tha ye .bt kis se janne ki kosis ni ki aj apne kanta nikal dia yani mera dobut sahi tha.thanks a lod!

October 26 at 3:50pm · Like

Bharat Bhushan Bhagat जालंधर के गढ़ा क्षेत्र में मेघों का बनाया हुआ एक मंदिर है जिसमें किसी माता और अन्य देवी-देवताओँ की मूर्तियों के अलावा एक मूर्ति मेघ ऋषि की है. मैंने उनसे पूछा कि यह मेघ ऋषि कौन हैं तो उन्होंने बताया कि जिसका उल्लेख किसी पौराणिक कथा में आया है. मैंने उस मूर्ति की फोटो नेट पर डाल दी जिसका काफी प्रयोग हुआ है. लेकिन मुझे कोई संदेह नहीं कि पुराणों में उल्लखित कोई मेघ ऋषि अपनी वास्तविक छवि के साथ नहीं हो सकता. वह हिंदुत्व की छवि वाला कुछ है. वह फोटो नीचे दी गई है-

October 26 at 4:04pm · Like

Bharat Bhushan Bhagat जिस फोटो का उल्लेख Tararam Gautam जी ने किया है वह यह है-

October 26 at 4:05pm · Like · 2

Shaku Meghwal ji bau ji.2nd pic to ncrt ki nd punjab board k ss ki book me b hoti h bt vaha iske bare me koi detail ni di hoti.nd goutam sir agr megh ek jati ni kom h to ku6 lo meghwal ak vastwik jati vagerah kayo parchar krte h!

October 26 at 4:11pm · Like

Tararam Gautam मोहन जोदड़ो से प्राप्त यह अवशेष - किसी ने यति कहा और किसी ने पुजारी। ऋषि या मेघ ऋषि किसीने नहीं कहा। दुनिया इस बात को जानती है कि मेघ लोग कितने भोले है। उनके भोलेपन का फायदा कुछ चतुर लोग अपने हित में उठाने में हमेशा सफल हुए है। अब पढ़े लिखे भोले मेघों को मुर्ख बनाने के लिए कुछ तो होशियारी चाहिए न। वह इसमे है। जाति की बुराई और उस धर्म की बडाई। बिग contradiction??

October 26 at 4:14pm · Like

Bharat Bhushan Bhagat Shaku, आपने पंजाब में एक शब्द अकसर सुना होगा. -सिख कौम-. वे अपने आपको सिख कौम या सिख नेशन कहते हैं. हालाँकि सिखों का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. ऐसे ही मोहंजो दाड़ो के अवशेषों और प्राचीन इतिहास को देखें तो पता चलता है कि इन सभ्यताओं में बुद्धिज़्म पनपा था. आगे चल कर आर्यों और अन्य आक्रमणकारियों ने कई सदियों तक चले युद्ध के बाद यहाँ के लोगों को दास बना लिया और यहाँ की सभ्यता को नष्ट कर दिया. ये बातें पाठ्यपुस्तकों में नहीं पढ़ाई जातीं. संभव है आगे चल कर यह भी पढ़ाया जाने लगे कि आर्य आक्रमण कभी हुआ ही नहीं और कि यूरेशियन ब्राह्मण सिंधुघाटी सभ्यता के ही हैं और वे अपनी संस्कृति (सभ्यता नहीं) को नष्ट कर ही नहीं सकते थे.

October 26 at 4:24pm · Like · 1

Tararam Gautam

October 26 at 4:24pm · Unlike · 2

Tararam Gautam

October 26 at 4:25pm · Unlike · 2

Tararam Gautam From my translation of 'Brahmanism, Buddhism & Hinduism' ब्राह्मणवाद, बौद्ध धर्म और हिन्दुवाद' पुस्तक से। चित्र वाले पेज से पहले उसके नीचे वाला पेज पढ़े। पहले वाला पेज बाद में पोस्ट हुआ।

October 26 at 4:32pm · Edited · Unlike · 1

Shaku Meghwal thanks to both!bt ye b sahi h k logo ko iske bare me puri jankari nahi h or jise h vo anjan bne huye h!jagate raho sir!

October 26 at 4:29pm · Unlike · 2

Bharat Bhushan Bhagat हम जाग रहे हैं शकु और देख रहे हैं कि ब्राह्मणों ने हिंदुत्व और हिंदूवाद में अंतर करने की तैयारी कर ली होगी.

October 26 at 4:31pm · Like · 1

Bharat Bhushan Bhagat Shaku, यह भी याद रखना है कि मेघ इन पुरातन संस्कृतियों में बसा एक प्राचीन वंश है जिसे आप कौम भी कह सकती हैं जो देश भर में अलग-अलग नामों से बसी है और बिखरी हुई है.

October 26 at 4:39pm · Like

Tararam Gautam कौम को न तो भोगोलिक सीमा में बांधा जा सकता था और न धार्मिक परकोटे में, जबकि जाति धर्म आधारित।

October 26 at 4:47pm · Unlike · 2

Rattan Gottra It is an admitted fact that after reading Rigveda 'Bhashya' written by writers much earlier to 200 years back (including Sayan/14th Century) that the word, 'Megh' and word 'Vritra' (Described as Pratham Megh) have been used interchangeably. Therefore, the identity of Meghs stands verified. This very person has been called as Megh Rishi. The word Rishi appears to has been suffixed against his name to accord traditional respect attached to it. Do you deny it? Secondly, to which of the above photos in the comments you have identified as the Pratham Megh or Vritra? If the identification is surely established, then it need to be brought before the public for correction or otherwise the fact about it. It is most important point and Tararam Gautam Ji you should clarify it.

October 26 at 5:20pm · Unlike · 4

Rattan Gottra I have posted the above comments based upon my own study of Rigveda (Sayan's 'Bhashya'/14th Century) and the findings of Dr. Naval Viyogi, PhD (National Award Winner).

October 26 at 5:55pm · Unlike · 4

Shaku Meghwal or n.r sir jayadamasaledar kahaniya sun k ku6 logo ko acidity b ho gyi jiska eno aaj respected gautam sir ne pesh kia h!

October 26 at 7:01pm · Unlike · 2

Naag Nath Megh Fir bhi koi to hai, jo yah sidh karke dikhayenge ki MEGHRISHI JI Mithak nahi apitu, wastwik purush the or Dipawali ko unka birthday bhi tha. Bas unke shodh or declaration ki deri bhar hai.

Kyoki unhone mujhe challenge bhi diya.

October 26 at 8:08pm · Edited · Unlike · 1

Shaku Meghwal aise chalange ande jande rahnde ne parvah ni karidi.ek kan to suno 2 to bahar te muh ch bol k suna deo!

October 26 at 8:16pm · Like · 1

Bharat Bhushan Bhagat मेघ ऋषि का उल्लेख जिस आधार पर हुआ है, चाहे वह वेदों में हुआ हो या आरपी सिंह ने किया हो, उसे मिथ ही माना जाएगा. क्योंकि उसके पीछे ज्ञात इतिहास का आधार नहीं है. इसी लिए मैंने आरपी सिंह आदि की अवधारणा के बारे में लिख दिया था कि ये मेघऋषि के नए प्रतीक हैं. इसे प्रतीक मात्र कहना उचित है (यदि यह आस्था का प्रतीक बन चुका हो तो हम गुनाहगार हो गए Naag Nath Megh जी).

October 26 at 8:22pm · Like · 1

Naag Nath Megh I am agree sir, 'यदि यह आस्था का प्रतीक बन चुका हो तो हम गुनाहगार हो गए'.

October 26 at 8:27pm · Unlike · 1

Tararam Gautam Rattan Gottraji, question is not about vrtra or prathma but about the myth which they attach with megh as vedic rishi and grand son of brahma. Totally wrong.
The archaeological research work carried out in Asia is wonderfull and opening new orientation. In a work en-titeled 'Art in Asia' has gone through these remains. They found some sculptures and named it as 'Megh Muni' and not megh rishi as both traditions were found separate. Some of them are at Lahore museum as per the book. Some of them are at british museum and so on. I will send you that link. So

October 26 at 8:30pm · Like · 2

Bharat Bhushan Bhagat Tararam Gautam ji, कई वर्ष पहले मैंने ऋषि-मुनि के बारे में पढ़ा था. ऋषि का अर्थ किया गया था- जो देखता है. मुनि का अर्थ दिया था- जो मौन रहता है. इसका संबंध कहीं अलग-अलग परपराओं के साथ तो नहीं?

October 26 at 8:40pm · Like · 2

Tararam Gautam

October 26 at 8:54pm · Like · 2

Tararam Gautam

October 26 at 8:54pm · Like · 1

Tararam Gautam

October 26 at 8:55pm · Like · 1

Tararam Gautam

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Tararam Gautam

October 26 at 8:56pm · Like · 1

Tararam Gautam

October 26 at 8:56pm · Like · 1

Tararam Gautam

October 26 at 8:57pm · Like · 1

Tararam Gautam

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Tararam Gautam

October 26 at 8:58pm · Like · 1

Tararam Gautam

October 26 at 8:59pm · Like · 1

Shaku Meghwal gud job gautam sir!jo aap share kr rahe ho use read kr bda a6a feel ho raha ab kisi ko ya na ho!jai bhim

October 26 at 9:01pm · Like

Tararam Gautam its from my translation work on Brahmanism Buddhism And Hinduism

October 26 at 9:04pm · Like · 1

Naag Nath Megh Wooooooow......! Thank you very-very much sir.

October 26 at 9:21pm · Like · 1

Naag Nath Megh Maine yah Khajana beenne ke liye khana bhi chhod diya, wo bhi thanda ho chuka hai. Thank you sir.

October 26 at 9:25pm · Unlike · 2

Shaku Meghwal rotian da ki o ta dubara bn ju bt jo jankari sir ne diti eh dubara ni milni.

October 26 at 9:34pm · Unlike · 2

Naag Nath Megh You are Right Shaku.

October 26 at 9:40pm · Unlike · 1

Shaku Meghwal are wah punjabi smj aa gyi!great!

October 26 at 9:42pm · Unlike · 2

Naag Nath Megh Nahi maine ese hi likh diya, kyoki jo maine likha vo adhikansh positive Questions ki reply automatically ban jati hai.

October 26 at 9:55pm · Unlike · 1

Shaku Meghwal means khana to dubara mil jayega bt sir ki jankaria ni

October 26 at 9:58pm · Like · 1

Naag Nath Megh Ha, right kaha, waise mai us line ko bhi samaj chuka tha.

October 26 at 10:02pm · Like

Shaku Meghwal to abi to kah rahe the andaje se likha?ok koi gal ni!

October 26 at 10:05pm · Like · 1

Naag Nath Megh Wo ese hi likh diya, kayi bar jab koi vishwashaniya vyakti comments ya post karta hai to mai pahle hi likh deta hu ki "YOU ARE RIGHT DEAR"... uske bad me post read karta hu. Agar fir se koi naye vichar aye to edit kar deta hu.

October 26 at 10:13pm · Like

Ashok Bhagat Tararam Gautam ji, kya R P Singh ki so called research ( in the shape of a booklet) kya koi social recognition hai ya nahi. Mere paas bhi yeh booklet hai. Aap ke vichar se meri sehmati banati haiVaise bhi hamari cultural ethos me brahamanwad hi bhara parha hai. Aap ke haan ki All India Sarvmeghvansh Maahasabha bilkul hinduism mein hi phansi hui hai; BJP ke satta mein aane lagta hai woh aur bhagwe ho jayeinge.

October 26 at 11:48pm · Edited · Unlike · 1

Tararam Gautam what Mr singh has done is academic dishonesty. He has not his own idea or analysis. I don't want to comment who be fooled ignorant and poor.

October 26 at 11:57pm · Like · 1

Tararam Gautam Myths pleases them because it give artificial relief from the miseries.

Yesterday at 12:01am · Unlike · 2

Tararam Gautam What research? A pamphlet in the shape of a book to garb and use your mass very cleverly.

Yesterday at 12:03am · Like · 2

Ashok Bhagat That is why I said so called .....

Yesterday at 12:59am · Like · 1

Tararam Gautam आप यह देखिये कि वर्तमान गुजरात और मारवाड़ का जो हिस्सा सिंध के अधीन रहा, वहां मेघो की हल-चल ज्यादा रही। इस क्षेत्र में धारु मेघ नामक एक संत पुरुष हुए। जो उगम सी का चेला था। उगम सी महा मुद्रा के साधक थे। कापालिक नहीं। वे शमथ-संवर की पालना करते थे। यह कठिन मार्ग कहा गया। शील-संवर और शमथ-संवर की कठिन पालना करने व उस धर्म को रखने के कारण लोग उन्हें रिख या रख या रखिया या रिखिया आदि शब्द से संबोधित करते थे। वहीँ से मेघों के साथ रिख या रिखिया शब्द जुड़ना शुरू होता है। उसके बाद की मेघों की वाणियों में 'आदि धर्म' की महिमा और रिखियों की महिमा शुरू होती है। ध्यान देने योग्य यह है कि तब तक रिखी शब्द जाति के प्रसंग में नहीं था। 
इसी शब्द को पकड़ कर इसको संस्कृतनिष्ठ बनाया गया और इसे ऋषि शब्द से जोड़ दिया। जब यह आधार बन गया तो चालाक आर्य समाजियों की चाल काम कर गयी। दयानंद सरस्वती लाहौर से घूमते हुए अजमेर, खेतरी व जोधपुर आदि जगहों पर भी गए। इन जगहों पर कई मेघ आर्य समाजी भी बने। साधू-सन्यस्त लोगों को विशेष रूप से प्रभावित किया। डॉ आंबेडकर के गंदे धंधे छोड़ने, बेगारी नहीं करने और स्वाभिमान से जीने के आन्दोलन का असर कम करने के लिए न केवल आर्य समाजियों बल्कि कांग्रेस ने भी साधू सन्यस्त लोगों को एक साधन के रूप में प्रयुक्त करना शुरू किया। जिसमे कई लोग जुड़े, उनमे गोकुल दास जी भी एक थे। जिन्हें इनाम स्वरुप उनके दत्तक पुत्र सेवा दास को कांग्रेस का एम् एल ए बनाया। उन्होंने इस ऋषि को हिन्दू मिथकों से मिलाने का कार्य एक ब्राह्मण की सरपरस्ती में बखूबी कर दिखाया। यह ठीक वैसी ही घटना है जैसी चूहड़ा-भंगियो को वाल्मीकि के निचे खींच लाना।

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Tararam Gautam आप यह देखिये कि वर्तमान गुजरात और मारवाड़ का जो हिस्सा सिंध के अधीन रहा, वहां मेघो की हल-चल ज्यादा रही। इस क्षेत्र में धारु मेघ नामक एक संत पुरुष हुए। जो उगम सी का चेला था। उगम सी महा मुद्रा के साधक थे। कापालिक नहीं। वे शमथ-संवर की पालना करते थे। यह कठिन मार्ग कहा गया। शील-संवर और शमथ-संवर की कठिन पालना करने व उस धर्म को रखने के कारण लोग उन्हें रिख या रख या रखिया या रिखिया आदि शब्द से संबोधित करते थे। वहीँ से मेघों के साथ रिख या रिखिया शब्द जुड़ना शुरू होता है। उसके बाद की मेघों की वाणियों में 'आदि धर्म' की महिमा और रिखियों की महिमा शुरू होती है। ध्यान देने योग्य यह है कि तब तक रिखी शब्द जाति के प्रसंग में नहीं था। 
इसी शब्द को पकड़ कर इसको संस्कृतनिष्ठ बनाया गया और इसे ऋषि शब्द से जोड़ दिया। जब यह आधार बन गया तो चालाक आर्य समाजियों की चाल काम कर गयी। दयानंद सरस्वती लाहौर से घूमते हुए अजमेर, खेतरी व जोधपुर आदि जगहों पर भी गए। इन जगहों पर कई मेघ आर्य समाजी भी बने। साधू-सन्यस्त लोगों को विशेष रूप से प्रभावित किया। डॉ आंबेडकर के गंदे धंधे छोड़ने, बेगारी नहीं करने और स्वाभिमान से जीने के आन्दोलन का असर कम करने के लिए न केवल आर्य समाजियों बल्कि कांग्रेस ने भी साधू सन्यस्त लोगों को एक साधन के रूप में प्रयुक्त करना शुरू किया। जिसमे कई लोग जुड़े, उनमे गोकुल दास जी भी एक थे। जिन्हें इनाम स्वरुप उनके दत्तक पुत्र सेवा दास को कांग्रेस का एम् एल ए बनाया। उन्होंने इस ऋषि को हिन्दू मिथकों से मिलाने का कार्य एक ब्राह्मण की सरपरस्ती में बखूबी कर दिखाया। यह ठीक वैसी ही घटना है जैसी चूहड़ा-भंगियो को वाल्मीकि के निचे खींच लाना।

22 hrs · Unlike · 2

Naag Nath Megh धन्यवाद सर Tararam Gautam जी, आप मुझे 'महा मुद्रा और कापालिक साधना के बारे में संक्षेप में समझाने का श्रम करावें.

22 hrs · Unlike · 1

Tararam Gautam संवर शब्द पालना करने के लिए प्रयुक्त होता है। अर्थात जो उन नेम-धर्म यानि नियमों का पालन करे वह संवरधारी कहा जाता। आप बाबा राम देव के पीछे खड़े हरजी को देखिये। वह संवर धारी है। परन्तु फोटो में उसे चंवर धारी बना दिया। यह न केवल परंपरा से चले आ रहे शब्द के अर्थ को बदलना था बल्कि उसके अक्षर को ही बदल दिया। इसका प्रभाव यह पड़ा कि लोग समझने लगे कि जैसे हरजी अनुचर बना चंवर ढोल रहा है वैसे ही अनुचर भाव से मुक्ति हो जाएगी। खुद के अन्दर जो संवर रखना टीहा वो भूल गए। ये सब गडम गड हो गया और धीरे धीरे यह धारा वैदिक धारा में मिलती गयी और अपना वजूद खो बैठी। इसी तरह से ऋषि का मिथक मेघो की जो एक एथ्नोलोजिकल पहचान है वह ख़त्म होना तय है।

22 hrs · Like · 1

Naag Nath Megh ...अर्थात 'बोद्ध(बौद्धिक)' परम्परा का "ब्राह्मणीकरण" हो चूका है |

21 hrs · Like · 1

Tararam Gautam महा मुद्रा को समझने के लिए पहले आप बाबा राम देव की उन वाणियों का अध्ययन करें, जिसमें महा मुद्रा शब्द प्रयुक्त हुआ है।। उससे आगे समझाना सरल होगा।

21 hrs · Like · 1

Naag Nath Megh धन्यवाद सर |

21 hrs · Like

Rattan Gottra Hinduisation of any finding from mohanjodaro harappa or creation of an other Rishi indicates creation of another 'God' that may definitely lead to creation of more myths or superstitions. While in fact concept 'God' is the root cause of
superstitions, you can't expect the people to follow the path of scientific research.

20 hrs · Unlike · 3

Tararam Gautam Later or sooner people have to follow scientific way of thinking if they want to liberate and secure future of their coming generations. The world is full of insane.

18 hrs · Unlike · 1

Tararam Gautam मिथक प्रिय लोग जितना खुद का नुकसान नहीं करते उससे ज्यादा वो दूसरों का करते है। वे हमेशा उससे फायदा ही फायदा उठाते है।

18 hrs · Unlike · 2

Shaku Meghwal great gautam sir ji!

18 hrs · Like

Naag Nath Megh राजेश कुमार मेघवाल जी, सत्य लिखा सरTararam Gautam जी आपने की "मिथक प्रिय लोग जितना खुद का नुकसान नहीं करते उससे ज्यादा वो दूसरों का करते है। वे हमेशा उससे फायदा ही फायदा उठाते है।"

18 hrs · Unlike · 1

Tararam Gautam जैसा मैंने संवर शब्द के विद्रूप होने का बताया वैसे ही रिखी शब्द विद्रूप हुआ। मारवाड़ी/मुडिया/गुजराती आदि में 'ख' के लिए कई प्रसंगों में 'ष' शब्द प्रयुक्त होता रहा। यही ख(ष) एक दूसरा आधार बना- शब्द को ऋषि में बदलने का। यह तो भाषा से जुडी बात। ष अपभ्रंश या स्थानीय बोली का शब्द मानते हुए कईयों ने संस्कृत निष्ठ बना दिया। इसलिए भाषा का ध्यान रखना जरुरी है।

17 hrs · Unlike · 3

Naag Nath Megh सर Tararam Gautam जी, प्राचीन शब्दों में प्रयुक्त 'ख' और 'ष' में से क्या किसी को मूल अक्षर के रूप में भी देख सकतें है यदि ऐसा है तो 'ख' या 'ष' में से किसे प्रचलित शब्द मानें ?

17 hrs · Unlike · 1

Tararam Gautam ष मुडिया बोली में- स और ख के लिए प्रयुक्त। ख शब्द 'क' का ही दीर्घ या कठोर शब्द। ठीक वैसे ही जैसे ग हृस्व या मृदु अक्षर व घ दीर्घ या कठोर। क और ग पहले इजाद हुए ख व घ बाद में। किसी भाषा के विकास की किताब से और जान ले।

15 hrs · Edited · Unlike · 2

Naag Nath Megh Thank you sir.

15 hrs · Unlike · 1

  

Tararam Gautam

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Tararam Gautam

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Indus Valley Civilization and Megh Rishi - सिंधु घाटी सभ्यता और मेघ ऋषि

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