Saturday 11 February 2017

बाबा बालकनाथ

 HomeOur LineageContact Us  Search Article...  Home सिद्ध बाबा बालक नाथ साधना सिद्ध बाबा बालक नाथ साधना सिद्ध बाबा बालक नाथ साधना  Author AAYI PANTHI Published 09:31 TAGS सिद्ध बाबा बालक नाथ साधना हिमाचल और उसके आस पास के इलाके को सिद्ध बाबा बालक नाथ का गढ़ माना जाता है! बाबा बालक नाथ जी की जितनी उपासना हिमाचल और उसके साथ लगते पंजाब में की जाती है उतनी शायद किसी और इलाके में नहीं होती! यह पोस्ट भी यहाँ कुछ हिमाचल के भाइयो के कहने पर ही लिख रहा हूँ! इन बड़े भाइयो की बहुत समय से शिकायत थी कि मै दीवट सिद्ध बाबा बालक नाथ की साधना नहीं दे रहा हूँ! इसके पीछे एक विशेष कारण है, मैं आप लोगो की धार्मिक भावनाओ का सम्मान करता हूँ और मै यह भी जनता हूँ कि आप सब लोगो की सिद्ध बाबा बालक नाथ जी पर विशेष श्रद्धा है! मेरे प्यारे भाइयो एक है इतिहास और एक है मिथिहास दोनों में ज़मीन आसमान का अंतर है! हिमाचल और पंजाब के पहाड़ी क्षेत्र में केवल मिथिहास प्रचलित है पर सिद्ध गोष्टी और सिद्धो की परम्परा इसे नहीं मानती! बाबा बालक नाथ का जन्म पंजाब के नवाशहर में हुआ था!उनकी माता का नाम यशोदा और पिता का नाम दुर्गादत्त था! वे भार्गव ब्रह्मण थे!सिद्ध बाबा बालकनाथ का बचपन का नाम दीवट था इसलिए आज भी कुछ लोग उन्हें दीवट सिद्ध बाबा बालकनाथ कहते है!उनके माता पिता ने जब उनकी शादी का फैसला किया तो वे शादी के डर से घर से भाग गए और पूर्वजन्म के संस्कारो से योग की तरफ आकर्षित हुए! एक बार उन्होंने गुरु गोरखनाथ जी के दर्शन किये जब उनके पीछे चेलों की लम्बी भीड़ देखी तो हैरान हो गए उन चेलों में कुछ राजकुमार भी थे! बाबा बालकनाथ जी ने सोचा इन्हें ही गुरु बनाऊंगा लेकिन वे किसी बालक को अपना शिष्य नहीं बनाते थे! बाबा बालकनाथ जी जब उनके दर्शनों के लिए गए तो उन्होंने उन्हें शिष्य बनाने से मना कर दिया और कहा फिर कभी आपको शिष्य बनाने के लिए विचार करेगे!ऐसा कहकर गुरु गोरखनाथ जी आगे चले गए!सिद्ध बाबा बालकनाथ जी माँ भवानी और शिव की सेवा करते थे एक दिन उन्हें माँ भवानी के दर्शन हुए माँ भवानी ने उन्हें कहा शिवरुपी गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य बनना चाहते हो चिंता न करो मै आपको एक रास्ता बताती हूँ! एक बार राजा भरथरी ने जब सन्यास धारण किया तो वे दत्तात्रेय जी की शरण में गए और उनसे कहा मै पूर्ण योगी बनना चाहता हूँ और अमर होना चाहता हूँ तब भगवान दत्तात्रेय ने कहा जगत का कल्याण करने के लिए भगवान शिव ने स्वयं गुरु गोरखनाथ रूप में अवतार लिया है आप उनकी शरण में जाये और कहे मै दत्तात्रेय का शिष्य हूँ और आपसे योग सिखने आया हूँ!ऐसा कहकर उनसे दोबारा दीक्षा ले और योग साधना सीखे! जब भरथरी जी गुरु गोरखनाथ जी से मिले और बताया की मै दत्तात्रेय का शिष्य हूँ तो गुरु गोरखनाथ ने उन्हें आई पंथ में दीक्षित किया और गोरक्ष आखाडा हरिद्वार में जो भरथरी गुफा है उस जगह रहकर भरथरी जी ने तप किया और तीन ग्रंथो की रचना की वैराग्य शतक,श्रृंगार शतक और नीति शतक और आज भी भरथरी जी गुरु गोरखनाथ जी के साथ भ्रमण करते है मतलब गुरु गोरखनाथ जी राजा भरथरी के शिक्षा गुरु हैं ! आपको भी ऐसा ही करना है आप दत्तात्रेय जी की शरण में जाये! मै आपको उड़ने की शक्ति प्रदान करती हूँ! सिद्ध बाबा बालकनाथ जी उड़ते हुए गिरनार पर्वत जा पहुचे और भगवान दत्तात्रेय जी के दर्शन किये और अपनी इच्छा व्यक्त की दत्तात्रेय जी ने उन्हें " ॐ नमः शिवाय " इस मन्त्र को जपने की आज्ञा दी! सिद्ध बाबा बालकनाथ जी वापिस आ माँ रत्नों की गौये चराने लगे और सारा दिन इस मन्त्र का जाप करने लगे!इसी प्रकार 12 साल बीत गए!एक दिन गौये जमींदारो के खेत खा गयी और जमींदारो ने माँ रत्नों को बुरा भला कहा,माँ रत्नों ने जाकर बाबा बालकनाथ जी से कहा मै तुम्हे 12 वर्ष से रोटिया और लस्सी पिला रही हूँ तुम उसके बदले में गौये भी ठीक से नहीं चराते गौये जमींदारो के खेत खा गयी! बाबा बालकनाथ जी ने कहा उन जमींदारो के खेत तो हरे भरे है जाकर देख आओ जब उन्होंने खेतो को देखा तो खेत पहले से भी अधिक हरे भरे थे! माँ रत्नों को अपने कहे पर बहुत पछतावा हुआ, तब अपने पास खड़े वट वृक्ष की तरफ बाबाजी ने इशारा किया तो उसमे 12 साल की रोटीया और लस्सी थी और उन्होंने माता रत्नों से कहा यह रही आपकी 12 साल की रोटीया और लस्सी और इतना कहकर बाबाजी ने वे स्थान छोड़ दिया! एक दिन गुरु गोरखनाथ जी उस नगरी आये जिस जगह बाबा बालकनाथ जी विराजमान थे, तब बाबा बालकनाथ ने विचार किया इनके साथ चमत्कार करूँगा अगर वे मुझे पकड़ने में कामयाब हो गए तो इन्हें अपना गुरु मान लूँगा! यह सोचकर बाबा बालकनाथ जी उनसे मिलने गए और शिष्य बनाने के लिए प्रार्थना की पहले गुरु गोरखनाथ जी ने उन्हें समझाया और कहा नाथ पंथ बहुत कठिन है खांडे की धार है पर जब वे नहीं मने तो उन्हें शिष्य बनाने के लिए राजी हो गये ,और जब उनके कान छेदन करने वाले थे, तब बाबा बालकनाथ जी हवा में उड़ गए! यह देखकर गुरु गोरखनाथ जी ने अपनी वाम भुजा को बड़ा किया और बाबा बालकनाथ जी को पकड़ कर नीचे उतार लिया और कहा यदि कोई और शंका मन में हो तो वे भी निकाल लो मैंने तुम्हे भागने का मौका दिया था पर तुम नहीं भागे अब जिसे याद करना हो कर लो अब तो तुम्हे शिष्य बनना ही पड़ेगा! यह सुनकर बाबा बालकनाथ जी ने कहा गुरुदेव आपके सिवा कोई याद करने लायक नहीं है! आप चाहे बंधन में रखकर कान छेदन कर दे या बिना बंधन के, इतना सुन गुरु गोरखनाथ जी ने उन्हें बन्धनों से मुक्त कर दिया और उनके कान छेदन कर दिए! आज भी उनके स्थान पर भारी मेला लगता है और हजारो लोगो की मुरादे पूरी होती है,पर कुछ लोगो ने गलत प्रचार किया की बाबा बालकनाथ जी एक सन्यासी हुए है! उन्होंने गुरु गोरखनाथ जी को हरा दिया था! उनके कानो में मुद्राये नहीं थी और उनका नाथ पंथ से कोई लेना देना नहीं था! उन्होंने यह प्रचार इसलिए किया ताकि बाबा बालकनाथ जी का स्थान उनके हाथो से न निकल जाये!यह स्थान उनकी आमदनी का साधन है और लाखो रुपये वे लोग बाबा बालकनाथ जी के नाम से कमाते है!ऐसे लोगो की मिथक कथाये आपस में ही नहीं मिलती!मै इन लोगो से पूछता हूँ यदि बाबा बालकनाथ का नाथ पंथ से कोई लेना देना नहीं है तो उनके पीछे नाथ शब्द क्यों लगाया जाता है? उन लोगो का कहना है वे भगवान दत्तात्रेय जी के प्रमुख शिष्य थे, पर भगवान दत्तात्रेय ने आदिनाथ भगवान शिव के कहने से अपने कुछ विशेष शिष्यों को मिलाकर नाथ पंथ की स्थापना की थी और नौ नाथो का संघ स्थापित किया था! इन नौ नाथो में उन्होंने विश्व के श्रेष्ठ संतो को स्थान दिया था यदि बाबा बालकनाथ जी ने नाथ शिरोमणि गुरु गोरखनाथ जी को परास्त कर दिया था तो बाबा बालकनाथ जी को नौ नाथो में भगवान दत्तात्रेय ने स्थान क्यों नहीं दिया?यदि नाथ पंथ से बाबा बालकनाथ जी का कोई सम्बन्ध नहीं है तो चौरासी सिद्धो की परंपरा जो भगवान दत्तात्रेय से चली आ रही है, उन चौरासी सिद्धो में बाबा बालकनाथ जी का स्थान कैसे आ गया? कुछ लोगो ने तो यहाँ तक कह दिया कि बाबा बालकनाथ जी ने कहा था कि उनके गुरु वे होंगे जो किसी प्रकार का नशा न करते हो इसलिए उन्होंने भगवान दत्तात्रेय जी को गुरु बनाया, पर यह कहना कि भगवान दत्तात्रेय जी कोई नशा नहीं करते थे बिलकुल गलत होगा क्योंकि मदालसा तंत्र में एक जगह यह बात आती है कि भगवान दत्तात्रेय जी अपनी पत्नी के साथ बहुत शराब पिया करते थे और अपनी मस्ती में मस्त रहते थे!" गिरी संप्रदाय " भगवान दत्तात्रेय को इष्ट मानता है और भगवान शिव को प्रधान देवता गिरी संप्रदाय के कुछ संत एक विशेष पूजा में भगवान दत्तात्रेय को शराब चढाते है इसलिए यह कहना कि भगवान दत्तात्रेय जी नशा नहीं करते थे गलत है! कुछ ऐसे महान भक्त भी है बाबा बालकनाथ जी के जिन्होंने यह लिख दिया कि बाबा बालकनाथ जी का जन्म 1500 सन्न के आस पास हुआ है! यह धारणा बिलकुल गलत है क्योंकि वे स्वयं कहते है कि उनका जन्म भरथरी जी के काल में हुआ और यदि उज्जैन का इतिहास देखा जाये तो भरथरी जी और राजा बिक्रमादित्य का जन्म एक ही काल का है! राजा बिक्रमादित्य का जन्म सातवी शताब्दी के आस पास का है तो राजा भरथरी 1500 सन्न में कैसे आ गए? एक और विशेष तथ्य " छड़ी " नामक एक लोहे का औजार होता है यह लोहे की सांकल जैसा होता है, यह गुरु गोरखनाथ जी ने अपने विशेष शिष्यों को रखने का आदेश दिया था! इसी प्रकार लोहे की छड़ी " गोगा जाहरवीर " के भक्त भी रखते है, सोचने वाली बात है गुरु गोरखनाथ जी का चलाया यह प्रचलन बाबा बालकनाथ जी तक कैसे पहुच गया? गुरु गोरखनाथ जी ने अपने विशेष शिष्यों के स्थान पर लोहे का खड़ा चिराग जलाने की अनुमति दी थी! इस प्रकार के चिराग आपको गोगा जाहरवीर के मंदिर पर मिल जायेगे तो यह रिवाज़ भी बाबा बालकनाथ जी के स्थानों पर कैसे प्रचलीत हो गया? कुछ भक्तो ने तो यहाँ तक कह दिया के गुरु गोरखनाथ जी के 360 शिष्य थे पर यह गलत है क्योंकि 360 शिष्य भैरोंनाथ जी के थे और भैरोंनाथ जी स्वयं गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य थे! एक मान्यता के अनुसार गुरु गोरखनाथ जी के 1400 शिष्य थे जो सदैव उनके साथ रहते थे और इनके इलावा कुछ उनके गृहस्थ शिष्य भी थे! एक और विशेष बात जब बाबा बालकनाथ जी की पूजा की जाती है तो रविवार का दिन चुना जाता है और रविवार के दिन ही नाथो की पूजा की जाती है और पूजा में 2 रोट बनाये जाते है एक बाबा बालकनाथ जी का एक गुरु गोरखनाथ जी का दत्तात्रेय जी का रोट क्यों नहीं बनाया जाता? ऐसे और भी बहुत से तथ्य है जो यह बात साबित करते है कि बाबा बालकनाथ जी नाथ योगी थे और गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य थे पर कुछ लोगो ने झूठी कथाये बनायीं! इसी प्रकार कुछ झूठी कथाये कबीर पन्थियो ने भी गुरु गोरखनाथ जी के बारे में बनाई जो बिलकुल गलत है! अपनी इन्ही कथाओ को सच्च करने के लिए उन्होंने बिना कर्ण मुद्राओ के बाबा बालकनाथ जी की फोटो छपाई! हिमाचल और पंजाब के मेरे प्यारे भाइयो यदि मेरी वजह से आपको दुःख हुआ तो मै माफ़ी मांगता हूँ और आप सब लोगो की धार्मिक भावनाओ का सम्मान भी करता हूँ! इसी वजह से मै यह साधना नहीं लिखना चाहता था क्योंकि ज्यादातर लोग मिथिहास पर विश्वास करते है पर आप सब लोगो के कहने पर यह साधना यहाँ लिख रहा हूँ जो मेरे गुरुदेव सिद्ध रक्खा रामजी की कृपा से मुझे प्राप्त हुयी है!जिस प्रकार कान वाले कुछ लोगो को सुनाई नहीं देता क्योंकि वे बहरे होते है उनमे सुनने की शक्ति नहीं होती ठीक उसी प्रकार कानो को सुनने में मधुर लगने वाली प्रत्येक कहानी सच्च हो यह जरूरी तो नहीं! अब इन तथ्यों को छोड़ साधना की बात करते है! मन्त्र::- बालकनाथ बाबा गुफा वालेया तेरी सदा ही जय थोडा वालेया तेरी तेरी सदा ही जय बालक रिशीया धारी आया शरण तुम्हारी जगत गुरु पृथ्वी के धनी तेरे नाम की ओट विरध की लाज नाल हमेती हो तुसी नाम घुमंडी तुसी हो बनखंडी रख बाने की लाज! विधि:::- एक साफ़ सुथरी जगह तलाश करे विशेष रूप से वड़ वृक्ष ढूंढे! उसके निचे शिवलिंग की स्थापना करे! उसी स्थान पर बाबा बालकनाथ जी का चिमटा और खडाऊ स्थापित करे और घी की ज्योत जगाये और इस मन्त्र की 5 माला रात्रि में करे ऐसा 43 दिन करे! यह साधना किसी भी रविवार से शुरू की जा सकती है!हर रविवार को दो रोट लगाये एक बाबा बालकनाथ जी के नाम से और एक गुरु गोरखनाथ जी के नाम से और साथ में दूध लेकर गुरु गोरखनाथ जी और बाबा बालकनाथजी को भोग लगाये!भोग लगाने के बाद बच्चों को बाँट दे!साधना के वीच में ही आपको बाबा बालकनाथ जी का दर्शन हो जायेगा! इश्वर आपकी मनोकामना पूरण करे और आप सबको इस साधना में सफलता प्रदान करे!इसी आशा के साथ....................... जय सद्गुरुदेव ! 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