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ओम शब्द का अर्थ

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Aug 13, 2014

ओम शब्द का अर्थ

ब्लॉग द्वारा Prem Narain Gupta

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ओम (ॐ ) शब्द हिन्दुओं का सर्वाधिक पवित्र शब्द तथा  ईश्वर  का वाचक कहा गया है।  यजुर्वेद ४० / १७ में कहा गया है "ओम ख़म ब्रह्म " - ओम ही सर्वत्र व्याप्त परम ब्रह्म है।

 गुरु नानक देव  जी भी कहते हैं -  एक ओम सतनाम , करता , पुरुख - ईश्वर एक है जिसका नाम ओम है ।   अतः ओम शब्द का वास्तविक अर्थ जानने - समझने  की  जिज्ञासा बहुत पहले से पाल  रखी थी।  जो भी धर्माचार्य - विद्वान व्यक्ति मिला उससे  समझने की कोशिश की।

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  परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के महामंडलेश्वर स्वामी असंगानंद महाराज जी  से कई बार मिला।  महर्षि दयानंद सरस्वती के ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश का  अध्यन  किया।  कई बार माण्डूक्योपनिषद पढ़ गया जो ओम पर ही है । "प्रणव बोध ", "ओमकार निर्ण निर्णय "  ऐसी  पुस्तकें जो ओम पर लिखी गई  है , को  समझने की  कोशिश  की।  महर्षि पतंजलि के ग्रथ "योगदर्शन "  के २७ वें सूत्र में ओम  के लिए कहा गया  कि " तस्य वाचक प्रणवः "- ईश्वर शब्द का बोध करने वाला शब्द "ओम " है - किन्तु  लगभग 5-6 वर्ष का समय व्यतीत हो जाने पर भी मेरी जिज्ञासाओं का समाधान नहीं हो  पा   रहा था  कि  अचानक  एक दिन  मेरे एक विद्वान मित्र ने मुझे अपनी डायरी पढ़ने को दी  जिसमें मेरी नज़र गायत्री मन्त्र “ ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं. भर्गो देवस्य धीमहि, धीयो यो न: प्रचोदयात्.”  पर पड़ी  जो एक वैदिक मन्त्र है तथा   जिसका  प्रारम्भ भी "ओम " से ही होता है।  जिसमें "ओम " के साथ साथ गायत्र मंत्र का पूर्ण अर्थ दिया गया था  जो निम्नवत है तथा जिसे मैं पूर्णतया तर्कसंगत तथा  वैज्ञानिक मानता हैं।

आदि शंकराचार्य के अनुसार गायत्री  प्रणव ( ॐ  ओमकार ) का ही विस्तृत रूप है।  आध्यात्मिक जीवन का श्रीगणेश इसी मन्त्र के चिंतन से आरम्भ होता है।  किन्तु आश्चर्यं है कि  विभिन्न धर्माचार्यों ने इस मन्त्र के भिन्न भिन्न अर्थ दिए हैं।  यहाँ तक कि  "भू  ,र्भुव:,  स्व:" को  वैदिक विद्वान स्वामी दयानंद सरस्वती  ईश्वर का नाम मानते हैं ( सत्यार्थप्रकाश पेज २७ ), तो स्वामी शिवानंद भूः का अर्थ - भूलोक (Physical plane )  , भुवः  का अर्थ ( Astral plane ) अंतरिक्ष लोक तथा स्वः का अर्थ (Celestial plane ) स्वर्ग लोक  लिखते हैं।  इसी प्रकार से आचार्य श्री राम शर्मा ने गायत्री मन्त्र का अर्थ   भिन्न  प्रकार से दिया है। 

मेरी दृष्टि सदैव वैज्ञानिक रही है।  मैं विज्ञानं को आध्यत्म से अलग नहीं मानता।  यदि अध्यात्म से विज्ञानं को निकाल  दिया जाय , तो वह आध्यत्म नहीं कचड़ा है।  अतः अपने मित्र के डायरी से   पढ़ा  इस परम पवित्र मन्त्र का अर्थ तथा ॐ  का अर्थ जो वैज्ञानिक है तथा तर्कसंगत भी है देने का प्रयास कर रहा हूँ –

(अ ) - नाम की खोज -    ॐ  -   ओम  प्रणव अक्षर

                                भूः  -   भू मंडल , भूलोक

                               भुवः -  अंतरिक्ष लोक, गृह मंडल

                               स्वः  -  स्वर्ग लोक , अंतरिक्ष में भगति हुई  आकाश गंगाएँ

( ब ) रूप की खोज -     तत   -  वह  परमात्मा       

                                     सवित    - ईश्वर ,बनाने वाला  (सूरज)

                              वरेण्यम - बंदना करने योग्य

(स )  उपासना  -        भर्गो     -  तेज का , प्रकाश का ,

                            देवस्य  -  देवताओं का

                            धीमहि -   ध्यान करते हैं

(द )   प्रार्थना -          धियो    - बुद्धि

                           यो       - जो कि

                           नः       - हमारी

                            प्रचोदयात - सन्मार्ग पर प्रेरित करें

ॐ   तथा गायत्री मन्त्र का पूर्ण अर्थ

हमारा पृथ्वी मंडल ,गृह मंडल , अंतरिक्ष मंडल तथा सभी आकाश गंगाओं की गतिशीलतास से उत्पन्न महान शोर ही ईश्वर की प्रथम पहचान प्रणव अक्षर ' ओम' है।  और वह परमात्मा जो अनेकारूप  प्रकाश के रूप में प्रकट है , बंदनीय है।  उस परमात्मा के प्रकाश का हम ध्यान करें  और यह प्रार्थना भी करें कि  वह हमारी बुद्धि  को सन्मार्ग पर लगाये रखे ताकि सद्बुद्धि हमारे चंचल मन को नियंत्रण में रख सके और साधक को ब्रह्म की अनुभति करा सके। 

उपर्युक्त गायत्री मन्त्र के अर्थ में कहा गया कि  हमारा पृथ्वी मंडल ,गृह मंडल , अंतरिक्ष मंडल तथा सभी आकाश गंगाओं की गतिशीलतास से उत्पन्न महान शोर ही ईश्वर की प्रथम पहचान प्रणव अक्षर ' ओम' है।  वास्तव में हमारे आध्यात्मिक ग्रंथों में ओम शब्द की व्याख्या दो प्रकार से की गई है  तथा दोनों ही परब्रह्म के वाचक तथा सर्वव्यापी कहे गए हैं। 

पहला - अक्षरात्मक , जिसका वर्णन वेद , उपनिषद विशेषकर माण्डूक्योपनिषद  जिसके १२ मन्त्रों में केवल ओम के विभिन्न पदों , उसके स्वरुप , उसकी विभिन्न मात्राओं  तथा तन्मात्रों आदि का वर्णन है। 

दूसरा - ध्वन्यात्मक - जिसका वर्णन करते हुए महर्षि पतंजलि समाधिपाद के २७ वें सूत्र में कहते हैं कि  "तस्य वाचक  प्रणवः "- उस ईश्वर नमक चेतन तत्व विशेष के अस्तित्व का बोध करने वाला शब्द  ध्वन्यात्मक ओम है ।

अनेक संत महात्माओं ने भी ओम के ध्वन्यात्मक स्वरुप (Sound vibrations) को  ही   ब्रह्म माना  है  तथा ओम को" शब्द ब्रह्म" भी कहा है ।

हम ओम कहें , शब्द  ब्रह्म कहें , शब्द या  शबद  कहें  , नाद या अनाहतनाद  या नाम  कहें या  ईसा  का वर्ड  कहें सब वस्तुतः इक दूसरे के पर्यायवाची  हैं। अब मुख्य प्रश्न यह है कि  यदि " ओम "  एक दिव्य ध्वनि (Divine sound)  है तो इसका उद्गम क्या है ? यदि   ब्रह्माण्ड  में कतिपय ध्वनि तरंगे (sound vibrations ) व्याप्त हैं तो इनका  कारक  क्या है क्योंकि यह तो विज्ञानं का  सामान्य  नियम है कि  कोई भी ध्वनि स्वतः उत्पन्न नहीं हो सकती।  जहाँ हरकत(Movement)  होगी वहीँ  ध्वनि उत्पन्न होगी चाहे वह इन स्थूल  कानों से सुनाई दे या नहीं।उपर्युक्त गायत्री मन्त्र के अर्थ में कहा गया कि  हमारा पृथ्वी मंडल ,गृह मंडल , अंतरिक्ष मंडल तथा सभी आकाश गंगाओं की गतिशीलतास से उत्पन्न महान शोर ही ईश्वर की प्रथम पहचान प्रणव अक्षर ' ओम' है।आइये , इस पर थोड़ा वैज्ञानिक चिंतन भी करते हैं।  

विभिन्न ग्रहों से आ रही विभिन्न ध्वनियों को ध्यान की   उच्चतम  स्थित में जब मन पूरी तरह विचार शून्य हो, सुना जा सकता है। ऋग्वेद  के नाद बिंदु उपनिषद में आंतरिक और आत्मिक मंडलों में शब्द की ध्वनि (Sound vibrations ) को समुद्र की लहरों , बादल  , ढोल , पानी के झरनों , घंटे जैसी  आवाज़ के रूप में सुने जाने का वर्णन है।  हठ योग प्रदीपका में भंवर की गुंजार , घुंगरू , शंख ,घंटी ,खड़ताल , मुरली , मृदंग , बांसुरी और शेर की गरज जैसी ध्वनियों का वर्णन है। स्वामी शिवानंद ने अपनी पुस्तक “जप योग” में लिखा है ध्यान के किसी सुविधाजनक आसान में बैठ जाओ , अंगूठे से कानों को बंद कर लो , विभिन्न प्रकार के आवाज़े  जैसे  बंसरी , वायलिन , नक्कारा, शंख, घंटे आदि  की आवाज़े सुनाई पड़ेगी।  इन ध्वनियों  या नाद ( sound vibrations ) को ब्रह्माण्ड के  बाहर  शून्य से आता हुआ  में कहा गया  गया है  किन्तु वास्तव में यह विभिन्न ग्रहों की गतिशीलता (Movement ) से उत्पन्न ध्वनियां हैं.| चूँकि प्रतयेक गृह का आकार , गति तथा पृथ्वी से दुरी भिन्न भिन्न होती है, यह ध्वनिया भी भिन्न भिन्न होती हैं।

ध्यान रहे यह २१ वीं  सदी है।  विज्ञानं अब बहुत अधिक प्रगति कर चूका है।  गायत्री मन्त्र में ॐ  (ओम ) को परिुभाषित करते हुए कहा गया है कि हमारे पृथ्वी मंडल , गृह मंडल एवं अंतरिक्ष में स्थित  आकाश गंगाओं की गतिशीलता से उत्पन्न सामूहिक ध्वनिया  ही ओम की दिव्य ध्वनि है।  अब यह कल्पना नहीं वास्तविकता है।  विभिन ग्रहों के धव्नियों  को नासा के वैज्ञानिकों ने रिकॉर्ड किया है  जिन्हें Planet  Sounds  के नाम से इंटरनेट पर सुना जा सकता है।

“Many thought that our galaxy planet and universe were silent but they are not with NASA sound capture  technology  its now possible to record the sound   from space! Just amazing. “

विभिन्न ग्रहों की गतिशीलता से उत्पन्न ध्वनियां ही हमें निरन्तर इस बात का एहसास कराती  हैं कि प्रत्येक  गृह अपनी धुरी पर एवं सूर्य के चारों ऒर  एक निश्चित  गति से निरंतर चक्कर  लगाते  रहते हैं, जिनसे यह अनंत ब्रह्माण्ड  अनंत कल से गतिशील है।  भौतिक नियमों के अन्तर्गत , पृथ्वी की गतिशीलता से , दिन-  रात  एवं ऋतुओं में परिवर्तन आदि होता है।  ग्रहों  की गतिशीलता से उत्पन्न यह ध्वनि तरंगे  जो समस्त ब्रह्माण्ड में सदा व्याप्त रहती हैं, सृष्टि की निरंतरता का हमें बोध कराती हैं तथा  इन्ही  से सृष्टि का निर्माण एवं सृजन होता है।

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Satish Todkari

हरि ओम

1 वर्ष पहले

Vidya Babla

वेदों में गायत्री मंत्र के साथ ओं जुड़ा हुआ नहीं है. ओम किसी भी मन्त्र के पूर्व लगाया जा सकता है.

3 वर्ष पहले

Dilmani Ram Sharma

---- " ओम " जीवात्मा को ब्रह्म से जोड़ने का शीतल सूत्र है..

3 वर्ष पहले

Arti S

एडमिन द्वारा ब्लॉक

3 वर्ष पहले

 

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